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| === पारिवारिक अस्थिरता व व्यक्ति का अकेलापन === | | === पारिवारिक अस्थिरता व व्यक्ति का अकेलापन === |
− | विश्व में ऐसा कोई भी राष्ट्र अथवा सभ्यता नहीं दिखाई देंगी, जहाँ माँ-बाप के लिए बच्चों के प्रति निस्वार्थ समर्पण या बच्चों के मन में माँ-बाप का महत्व बिलकुल ही न हो। चाहे पुरातन सभ्यता के प्रतिनिधि ट्राईब्स हों, अथवा आधुनिकता में ढली आज की पीढ़ी, परिवार के बिना किसी भी समाज की कल्पना हो ही नहीं सकती, भले ही कोई इस बात को कितना भी नकारे । जब हम राष्ट्र के रूप में समाज के स्थाई स्वरूप को खड़ा करने की बात कहते हैं, तो परिवार की धुरी को बिना स्थापित किये, ऐसा कभी भी संभव नहीं है। ऐसे में, समाज की आर्थिक व्यवस्था का विचार करते समय, क्या परिवार को बाजार से कम आंक कर सोचा जा सकता है ? कहीं न कहीं, वैश्विक समस्याओं के जड़़ में यह एक बिन्दु है जो पश्चिम के विचारकों द्वारा उपेक्षित हो गया ऐसा लगता है। परिवार तो निस्वार्थ प्यार का दूसरा नाम है, इसका बाजार की लेन-देन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है । ऐसे में सामर्थ्यवान होने के लिए सिर्फ 'आर्थिक' शब्द का उपयोग बहुत भ्रामक प्रतीत होता है। ऐसे में मात्र अर्थ को ही सफलता की परिभाषा देने की जो चूक पश्चिम के चिंतकों या राष्ट्र को चलाने वाले नेताओं ने की है, उसका ही नतीजा है कि आज सारा विश्व 'परिवार के बिखराव' की समस्या से बुरी तरह पीड़ित है । ऐसे समाज का निर्माण कैसे हो जहाँ धन, समाज व परिवार में आत्मीयता के तत्व को सर्वोपरि रखते हुए मनुष्य की उन्नति का साधन बन कर बढ़ता रहे । तभी ऐसे बाजार की व्यवस्था संभव होगी जहाँ आर्थिक बढ़ोतरी एक दूसरे को लूट कर नहीं, प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर नहीं, बल्कि मानवीय सभ्यता के जो मापदंड हों उनकी बढ़ोतरी से जुडी हो। | + | विश्व में ऐसा कोई भी राष्ट्र अथवा सभ्यता नहीं दिखाई देंगी, जहाँ माँ-बाप के लिए बच्चोंं के प्रति निस्वार्थ समर्पण या बच्चोंं के मन में माँ-बाप का महत्व बिलकुल ही न हो। चाहे पुरातन सभ्यता के प्रतिनिधि ट्राईब्स हों, अथवा आधुनिकता में ढली आज की पीढ़ी, परिवार के बिना किसी भी समाज की कल्पना हो ही नहीं सकती, भले ही कोई इस बात को कितना भी नकारे । जब हम राष्ट्र के रूप में समाज के स्थाई स्वरूप को खड़ा करने की बात कहते हैं, तो परिवार की धुरी को बिना स्थापित किये, ऐसा कभी भी संभव नहीं है। ऐसे में, समाज की आर्थिक व्यवस्था का विचार करते समय, क्या परिवार को बाजार से कम आंक कर सोचा जा सकता है ? कहीं न कहीं, वैश्विक समस्याओं के जड़़ में यह एक बिन्दु है जो पश्चिम के विचारकों द्वारा उपेक्षित हो गया ऐसा लगता है। परिवार तो निस्वार्थ प्यार का दूसरा नाम है, इसका बाजार की लेन-देन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है । ऐसे में सामर्थ्यवान होने के लिए सिर्फ 'आर्थिक' शब्द का उपयोग बहुत भ्रामक प्रतीत होता है। ऐसे में मात्र अर्थ को ही सफलता की परिभाषा देने की जो चूक पश्चिम के चिंतकों या राष्ट्र को चलाने वाले नेताओं ने की है, उसका ही नतीजा है कि आज सारा विश्व 'परिवार के बिखराव' की समस्या से बुरी तरह पीड़ित है । ऐसे समाज का निर्माण कैसे हो जहाँ धन, समाज व परिवार में आत्मीयता के तत्व को सर्वोपरि रखते हुए मनुष्य की उन्नति का साधन बन कर बढ़ता रहे । तभी ऐसे बाजार की व्यवस्था संभव होगी जहाँ आर्थिक बढ़ोतरी एक दूसरे को लूट कर नहीं, प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर नहीं, बल्कि मानवीय सभ्यता के जो मापदंड हों उनकी बढ़ोतरी से जुडी हो। |
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| प्रश्न यह है, जैसे कि यदि यू.एस.ए. को आर्थिक व वैज्ञानिक उन्नति का बड़ा श्रेय प्राप्त हुआ है, तो उसकी स्थिति महत्वपूर्ण गैर-आर्थिक विषयों में क्या है? और यदि इनमें से कुछ विषयों में, जैसे कि पारिवारिक-स्थिरता, या कि सामाजिक-समरसता इत्यादि में वह पिछड़ा हुआ दिखे तो क्या आप यू.एस.ए. को सच में उन्नत कह सकेंगे ? | | प्रश्न यह है, जैसे कि यदि यू.एस.ए. को आर्थिक व वैज्ञानिक उन्नति का बड़ा श्रेय प्राप्त हुआ है, तो उसकी स्थिति महत्वपूर्ण गैर-आर्थिक विषयों में क्या है? और यदि इनमें से कुछ विषयों में, जैसे कि पारिवारिक-स्थिरता, या कि सामाजिक-समरसता इत्यादि में वह पिछड़ा हुआ दिखे तो क्या आप यू.एस.ए. को सच में उन्नत कह सकेंगे ? |
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| ===== पारिवारिक समस्याएँ ===== | | ===== पारिवारिक समस्याएँ ===== |
− | पारिवारिक स्थिरता अर्थात् बच्चों के जीवन में माँबाप व अन्य सदस्यों की भावनात्मक भूमिका, तलाक़ का प्रतिशत, समाज में भावनात्मक मित्रता का स्तर, संकट काल में परिवार व मित्रों का आपस में आर्थिक अवलंबन, किसी भी राष्ट्र की मूल धुरी होती है। यदि पारिवारिक स्थिरता चरमराने लगे तो राष्ट्र अन्दर से खोखला होता जाता है। पश्चिमी राष्ट्र पारिवारिक टूटन को अनदेखा कर उनसे उपजी समस्याओं से छुटकारा नहीं पा सकते हैं। अस्थिर परिवार न केवल बच्चों के समुचित विकास में ही बाधक है, बल्कि समाज में विभिन्न प्रकार की समस्याओं, चाहे वे बेरोजगारी की हो, सामाजिक असुरक्षा की हो, या मानसिक रोगों की, को जन्म देने का मूल कारण है । | + | पारिवारिक स्थिरता अर्थात् बच्चोंं के जीवन में माँबाप व अन्य सदस्यों की भावनात्मक भूमिका, तलाक़ का प्रतिशत, समाज में भावनात्मक मित्रता का स्तर, संकट काल में परिवार व मित्रों का आपस में आर्थिक अवलंबन, किसी भी राष्ट्र की मूल धुरी होती है। यदि पारिवारिक स्थिरता चरमराने लगे तो राष्ट्र अन्दर से खोखला होता जाता है। पश्चिमी राष्ट्र पारिवारिक टूटन को अनदेखा कर उनसे उपजी समस्याओं से छुटकारा नहीं पा सकते हैं। अस्थिर परिवार न केवल बच्चोंं के समुचित विकास में ही बाधक है, बल्कि समाज में विभिन्न प्रकार की समस्याओं, चाहे वे बेरोजगारी की हो, सामाजिक असुरक्षा की हो, या मानसिक रोगों की, को जन्म देने का मूल कारण है । |
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| ===== सामाजिक समरसता ===== | | ===== सामाजिक समरसता ===== |
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| जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित अनुभव करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें। ठीक इसी तरह जो राष्ट्र उन्नति के शिखर की ओर आगे बढ़ते हों वे अपने साथ छोटे व कमजोर राष्ट्रों को बल प्रदान करें तभी मानवता का विकास सम्भव है। कोई अकेला नहीं है हम सब जुड़े हुए हैं। एक की पीड़ा कहीं न कहीं सबकी पीड़ा बन कर कब खड़ी हो जाये कोई नहीं बता सकता । ऐसे में यदि ताकतवर राष्ट्र दूसरों का शोषण करना चाहें अथवा उन्हें अपना पिठ्ठू बनाना चाहें तो विश्व में कभी शांति नहीं हो सकती। हर समय स्वार्थ, अविश्वास व अस्थिरता का वातावरण बना ही रहता है। बड़प्पन त्याग और देने से ही होता है, ताकत के इस्तेमाल से नहीं। | | जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित अनुभव करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें। ठीक इसी तरह जो राष्ट्र उन्नति के शिखर की ओर आगे बढ़ते हों वे अपने साथ छोटे व कमजोर राष्ट्रों को बल प्रदान करें तभी मानवता का विकास सम्भव है। कोई अकेला नहीं है हम सब जुड़े हुए हैं। एक की पीड़ा कहीं न कहीं सबकी पीड़ा बन कर कब खड़ी हो जाये कोई नहीं बता सकता । ऐसे में यदि ताकतवर राष्ट्र दूसरों का शोषण करना चाहें अथवा उन्हें अपना पिठ्ठू बनाना चाहें तो विश्व में कभी शांति नहीं हो सकती। हर समय स्वार्थ, अविश्वास व अस्थिरता का वातावरण बना ही रहता है। बड़प्पन त्याग और देने से ही होता है, ताकत के इस्तेमाल से नहीं। |
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− | नई पीढ़ी में सामाजिक व राष्ट्रीय सोच, जिम्मेदारी उठाने की क्षमता, व्यक्ति में मानवीय गुणों व क्षमताओं का विकास, मीडिया का सामाजिकता व व्यक्ति के विकास में योगदान, असामाजिक तत्वों व विषयों की स्थिति, बच्चों व नयी पीढ़ी में व्यसन व अराजकता; जेल, कैदियों, व सुरक्षाकर्मी की आवश्यकता; सट्टे द्वारा प्राप्त धन व उसके प्रति समाज की सोच, आदि चिन्ता के विषय हैं। | + | नई पीढ़ी में सामाजिक व राष्ट्रीय सोच, जिम्मेदारी उठाने की क्षमता, व्यक्ति में मानवीय गुणों व क्षमताओं का विकास, मीडिया का सामाजिकता व व्यक्ति के विकास में योगदान, असामाजिक तत्वों व विषयों की स्थिति, बच्चोंं व नयी पीढ़ी में व्यसन व अराजकता; जेल, कैदियों, व सुरक्षाकर्मी की आवश्यकता; सट्टे द्वारा प्राप्त धन व उसके प्रति समाज की सोच, आदि चिन्ता के विषय हैं। |
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| === बौद्धिक-भ्रष्टाचार === | | === बौद्धिक-भ्रष्टाचार === |