इस विचार में जड़ को समझने की, यंत्रों को समझने की सटीकता तो है। किन्तु चेतन को नकारने के कारण चेतन के क्षेत्र में इस का उपयोग मर्यादित रह जाता है। चेतन का निर्माण जड़ पंचमहाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार तथा आत्म तत्व इन के योग से होता है। परिवर्तन तो जड़ में ही होता है। लेकिन वह चेतन की उपस्थिति के बिना नहीं हो सकता। इस लिये चेतन का जितना भौतिक हिस्सा है उस हिस्से के लिये साईंस को प्रमाण मानना उचित ही है। इस भौतिक हिस्से के मापन की भी मर्यादा है। जड़ भौतिक शरीर के साथ जब मन की या आत्म शक्ति जुड जाति है तब वह केवल जड़ की भौतिक शक्ति नहीं रह जाती। और प्रत्येक जीव यह जड़ और चेतन का योग ही होता है। इस लिये चेतन के मन, बुद्धि, अहंकार आदि विषयों में फिझिकल साईंस की कसौटीयों को प्रमाण नहीं माना जा सकता। | इस विचार में जड़ को समझने की, यंत्रों को समझने की सटीकता तो है। किन्तु चेतन को नकारने के कारण चेतन के क्षेत्र में इस का उपयोग मर्यादित रह जाता है। चेतन का निर्माण जड़ पंचमहाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार तथा आत्म तत्व इन के योग से होता है। परिवर्तन तो जड़ में ही होता है। लेकिन वह चेतन की उपस्थिति के बिना नहीं हो सकता। इस लिये चेतन का जितना भौतिक हिस्सा है उस हिस्से के लिये साईंस को प्रमाण मानना उचित ही है। इस भौतिक हिस्से के मापन की भी मर्यादा है। जड़ भौतिक शरीर के साथ जब मन की या आत्म शक्ति जुड जाति है तब वह केवल जड़ की भौतिक शक्ति नहीं रह जाती। और प्रत्येक जीव यह जड़ और चेतन का योग ही होता है। इस लिये चेतन के मन, बुद्धि, अहंकार आदि विषयों में फिझिकल साईंस की कसौटीयों को प्रमाण नहीं माना जा सकता। |