− | निरोगी समाज में वैद्य को स्थान नहीं यह कहना जितना ठीक है, उतना ही हिन्दुधर्म में समाजसेवा का आदर्श नहीं था, कहना ठीक होगा ऐसा एक प्रकार से कह सकते हैं। हिन्दु समाज व्यवस्था सम्पूर्ण नहीं थी इसका तो स्वीकार करना ही पडेगा। परन्तु तुम्हें समाजसेवा के मुख्य मुख्य अंग कौन से हैं, इसकी एक सूची पहले तैयार करनी होगी, फिर उन उन अंगों की हमारे यहाँ क्या क्या व्यवस्था की गई थी, उन्हें खोजना होगा। | + | निरोगी समाज में वैद्य को स्थान नहीं यह कहना जितना ठीक है, उतना ही हिन्दुधर्म में समाजसेवा का आदर्श नहीं था, कहना ठीक होगा ऐसा एक प्रकार से कह सकते हैं। हिन्दु समाज व्यवस्था सम्पूर्ण नहीं थी इसका तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। परन्तु तुम्हें समाजसेवा के मुख्य मुख्य अंग कौन से हैं, इसकी एक सूची पहले तैयार करनी होगी, फिर उन उन अंगों की हमारे यहाँ क्या क्या व्यवस्था की गई थी, उन्हें खोजना होगा। |
| शिक्षा, यह समाजसेवा का प्रथम अंग जो न्याति के आधार पर भिन्न होते हए भी सभी वर्गों को समान शिक्षा नहीं मिलती थी, ऐसा नहीं था। प्लेटो कहता है कि सामान्यजन को परम्परा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। आज की भाषा में कहेंगे तो प्रत्येक व्यक्ति को समाजशास्त्र का प्राथमिक ज्ञान होना चाहिए। हमारे यहाँ वर्णधर्म की चर्चा में एवं पुराणश्रवण में यह ज्ञान बराबर मिलता था। समाजशिक्षा की Popular National School उस गाँव का मंदिर था। जहाँ संगीत, चित्रकला, स्थापत्य, पूजा विधि, उत्सव, सभा का विवेक, सामाजिक Hierachy (सामाजिक वर्गों की सा, रे, ग, म) | | शिक्षा, यह समाजसेवा का प्रथम अंग जो न्याति के आधार पर भिन्न होते हए भी सभी वर्गों को समान शिक्षा नहीं मिलती थी, ऐसा नहीं था। प्लेटो कहता है कि सामान्यजन को परम्परा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। आज की भाषा में कहेंगे तो प्रत्येक व्यक्ति को समाजशास्त्र का प्राथमिक ज्ञान होना चाहिए। हमारे यहाँ वर्णधर्म की चर्चा में एवं पुराणश्रवण में यह ज्ञान बराबर मिलता था। समाजशिक्षा की Popular National School उस गाँव का मंदिर था। जहाँ संगीत, चित्रकला, स्थापत्य, पूजा विधि, उत्सव, सभा का विवेक, सामाजिक Hierachy (सामाजिक वर्गों की सा, रे, ग, म) |