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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
भारत में अंग्रेजी शिक्षा को स्थापित हुए अब २०० वर्षों से अधिक काल हो गया है। इस काल में हमने अंग्रेजी या पाश्चात्य जीवनदृष्टि का लगभग स्वीकार कर लिया दिखाई देता है। केवल पाश्चात्य जीवनदृष्टि ही नहीं तो उस के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार और व्यवस्थाओं का भी हमने स्वीकार कर लिया है। जैसे हमने अंग्रेजों जैसे कपडे पहनना स्वीकार कर लिया है। कपडों को किया हुआ लोहा नहीं बिगडे इस लिये अब हम कुर्सी पर बैठकर, टेबल पर खाना रख कर खाते है। भारतीय स्वास्थ्य विचार के अनुसार भोजन की यह स्थिति अत्यंत गलत है। किंतु हम अब उस आदत के इतने गुलाम बन गये है कि नीचे बैठकर पालखी मार कर हम खाना नहीं खा सकते। हम ऐसी आदतों के इतने आदि हो गये है कि अब हमें हम कुछ गलत कर रहे है इस का ज्ञान भी नहीं है।  
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भारत में अंग्रेजी शिक्षा को स्थापित हुए अब २०० वर्षों से अधिक काल हो गया है। इस काल में हमने अंग्रेजी या पाश्चात्य जीवनदृष्टि का लगभग स्वीकार कर लिया दिखाई देता है। केवल पाश्चात्य जीवनदृष्टि ही नहीं तो उस के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार और व्यवस्थाओं का भी हमने स्वीकार कर लिया है। जैसे हमने अंग्रेजों जैसे कपड़े पहनना स्वीकार कर लिया है। कपडों को किया हुआ लोहा नहीं बिगडे इस लिये अब हम कुर्सी पर बैठकर, टेबल पर खाना रख कर खाते है। भारतीय स्वास्थ्य विचार के अनुसार भोजन की यह स्थिति अत्यंत गलत है। किंतु हम अब उस आदत के इतने गुलाम बन गये है कि नीचे बैठकर पालखी मार कर हम खाना नहीं खा सकते। हम ऐसी आदतों के इतने आदि हो गये है कि अब हमें हम कुछ गलत कर रहे है इस का ज्ञान भी नहीं है।  
    
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की प्रतिष्ठापना के प्रयास भी १९ वीं सदी से ही आरम्भ हो गये थे। यह प्रयास रवींद्रनाथ ठाकुर, स्वामी दयानंद सरस्वती, मदन मोहन मालवीय, लोकमान्य टिळक, बिपिनचंद्र पाल , महात्मा गांधी जैसे दिग्गजों ने किये थे। किंतु शिक्षा राष्ट्रीय नहीं बनीं। स्वाधीनता के उपरांत भी यह प्रयास हुए। विद्या भारती के द्वारा, गायत्री परिवार के द्वारा, अन्यान्य संतों द्वारा हजारों की संख्या में भारत में विद्यालय और गुरुकुल चलाए जाते है। किंतु शिक्षा भारतीय बनती दिखाई नहीं देती।
 
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की प्रतिष्ठापना के प्रयास भी १९ वीं सदी से ही आरम्भ हो गये थे। यह प्रयास रवींद्रनाथ ठाकुर, स्वामी दयानंद सरस्वती, मदन मोहन मालवीय, लोकमान्य टिळक, बिपिनचंद्र पाल , महात्मा गांधी जैसे दिग्गजों ने किये थे। किंतु शिक्षा राष्ट्रीय नहीं बनीं। स्वाधीनता के उपरांत भी यह प्रयास हुए। विद्या भारती के द्वारा, गायत्री परिवार के द्वारा, अन्यान्य संतों द्वारा हजारों की संख्या में भारत में विद्यालय और गुरुकुल चलाए जाते है। किंतु शिक्षा भारतीय बनती दिखाई नहीं देती।
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## दुर्बल का शोषण (एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ द वीक)। स्त्री, प्रकृति या पर्यावरण, अन्य पुरूष, अन्य समाज,  अन्य देश, सारी दुनिया इन से मैं यदि बलवान हूं तो इन का शोषण करना मेरा अधिकार है।
 
## दुर्बल का शोषण (एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ द वीक)। स्त्री, प्रकृति या पर्यावरण, अन्य पुरूष, अन्य समाज,  अन्य देश, सारी दुनिया इन से मैं यदि बलवान हूं तो इन का शोषण करना मेरा अधिकार है।
 
## अमर्याद व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनलिमिटेड इंडिविज्युअल लिबर्टि)। बलवान अपना स्वार्थ साध सके इस लिये अमर्याद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता आवश्यक है।
 
## अमर्याद व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनलिमिटेड इंडिविज्युअल लिबर्टि)। बलवान अपना स्वार्थ साध सके इस लिये अमर्याद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता आवश्यक है।
# जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगोंं से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पडेगा। बलवान लोगोंं से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पडेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है।
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# जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगोंं से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पड़ेगा। बलवान लोगोंं से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पड़ेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है।
 
# अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा।
 
# अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा।
 
# भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग) सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा आरम्भ हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड़ से बनीं है। चेतना तो उस जड़ का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना। भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से विज्ञान को टुकडों में बाँटा है विश्व में विज्ञान विश्व नाशक बन गया है। शुध्द विज्ञान (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित विज्ञान (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द विज्ञान के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द विज्ञान किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था 'यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता'।
 
# भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग) सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा आरम्भ हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड़ से बनीं है। चेतना तो उस जड़ का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना। भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से विज्ञान को टुकडों में बाँटा है विश्व में विज्ञान विश्व नाशक बन गया है। शुध्द विज्ञान (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित विज्ञान (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द विज्ञान के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द विज्ञान किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था 'यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता'।

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