| गंगा भारत की पवित्रतम नदी है। सूर्यवंशी राजा भगीरथ के प्रयासों से यह भारत-भूमि परअवतरित हुई। उत्तरप्रदेश के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री शिखर पर गोमुख इसका उद्गम स्थान है। गंगोत्री के हिम से पुण्यसलिला गंगा अनवरत जल प्राप्त करती रहती है। यह गांग-जल की ही विशेषता है कि अनेक वर्षों तक रखा रहने पर भी यह दूषित नहीं होता। गंगा-जल का एक छींटा पापी को भी पवित्र करने की क्षमता रखता है। गंगा के तट पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी, पाटलिपुत्र आदि पवित्र नगर श्रद्धालुजनों को आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करते हैं। गंगा भागीरथी, जाह्नवी, देवनदी आदि नामों से भी पुकारी जाती है। यमुना, गण्डक, सोन, कोसी के जल को समेटते हुए गंगा समुद्र में मिलने से लगभग 300 कि मी. पहले ही कई शाखाओं में विभक्त होकर ब्रह्मपुत्र के साथ मिलकर विश्व के सबसे बड़े त्रिभुजाकार तटवर्ती मैदान (डेल्ट) का निर्माण करती से लगभग 125कि. मी. दक्षिण में गांगासागर नाम का पवित्र स्थल है, यहीं पर कपिल मुनि का आश्रम था जहाँ सगर-पुत्रों की भस्मी को आत्मसात कर गंगा ने उनका उद्धार किया था। गोमुख गंगोत्री से 1450 कि.मी. लम्बी यात्रा पूर्ण कर पतितपावनी गंगा गंगासागर में मिल जाती है। हिन्दू की मान्यता है कि गंगा के किनारे किये गये पुण्य कर्मों का फल कई गुना अधिक हो जाता है। गंगा-तट पर पहुँचकर पापी के हुदय में अच्छे भावों का संचार होने लगता है।आषाढ़, कार्तिक, माघ, वैशाख की पूर्णिमा, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, माघ शुक्ल सप्तमी तथा सोमवती अमावस्या को गंगा में स्नान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। ऋग्वेद, महाभारत, भागवत पुराण, रामायण आदि में गंगा का महात्म्य विस्तार से वर्णित है। सच्चाई तो यह है कि गांगा सब तीर्थों का प्राण है। भागवत पुराण के अनुसार गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से मैदान में निर्गम ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हुआ। | | गंगा भारत की पवित्रतम नदी है। सूर्यवंशी राजा भगीरथ के प्रयासों से यह भारत-भूमि परअवतरित हुई। उत्तरप्रदेश के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री शिखर पर गोमुख इसका उद्गम स्थान है। गंगोत्री के हिम से पुण्यसलिला गंगा अनवरत जल प्राप्त करती रहती है। यह गांग-जल की ही विशेषता है कि अनेक वर्षों तक रखा रहने पर भी यह दूषित नहीं होता। गंगा-जल का एक छींटा पापी को भी पवित्र करने की क्षमता रखता है। गंगा के तट पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी, पाटलिपुत्र आदि पवित्र नगर श्रद्धालुजनों को आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करते हैं। गंगा भागीरथी, जाह्नवी, देवनदी आदि नामों से भी पुकारी जाती है। यमुना, गण्डक, सोन, कोसी के जल को समेटते हुए गंगा समुद्र में मिलने से लगभग 300 कि मी. पहले ही कई शाखाओं में विभक्त होकर ब्रह्मपुत्र के साथ मिलकर विश्व के सबसे बड़े त्रिभुजाकार तटवर्ती मैदान (डेल्ट) का निर्माण करती से लगभग 125कि. मी. दक्षिण में गांगासागर नाम का पवित्र स्थल है, यहीं पर कपिल मुनि का आश्रम था जहाँ सगर-पुत्रों की भस्मी को आत्मसात कर गंगा ने उनका उद्धार किया था। गोमुख गंगोत्री से 1450 कि.मी. लम्बी यात्रा पूर्ण कर पतितपावनी गंगा गंगासागर में मिल जाती है। हिन्दू की मान्यता है कि गंगा के किनारे किये गये पुण्य कर्मों का फल कई गुना अधिक हो जाता है। गंगा-तट पर पहुँचकर पापी के हुदय में अच्छे भावों का संचार होने लगता है।आषाढ़, कार्तिक, माघ, वैशाख की पूर्णिमा, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, माघ शुक्ल सप्तमी तथा सोमवती अमावस्या को गंगा में स्नान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। ऋग्वेद, महाभारत, भागवत पुराण, रामायण आदि में गंगा का महात्म्य विस्तार से वर्णित है। सच्चाई तो यह है कि गांगा सब तीर्थों का प्राण है। भागवत पुराण के अनुसार गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से मैदान में निर्गम ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हुआ। |