संयुक्त परिवार, वर्ण, जाति, ग्रामकुल, राष्ट्र ऐसी प्राकृतिक आवश्यकताओं का आधार लेकर प्रकृति सुसंगत बातों को पुष्ट और धर्मानुकूल बनाने से ही ये प्रणालियाँ ठीक चला रही थीं और राष्ट्र संगठन अबतक टिका हुआ था| लेकिन हमारे दुर्लक्ष के कारण हिंदू समाज का संगठन पूरी तरह से चरमरा रहा है। संयुक्त परिवार व्यवस्था के, वर्ण व्यवस्था के, जाति व्यवस्था के, अंग्रेजपूर्व भारत में बहुत बडी संख्या में अस्तित्व में थे ऐसे लाखों ग्रामकुल और राष्ट्रीयता आदि की रक्षा और सबलीकरण के सीधे और पैने प्रयासों की आवश्यकता निर्माण हुई है। जिस गति से वर्तमान जीवन का अभारतीय प्रतिमान हमें भ्रष्ट और नष्ट कर रहा है उस गति से अधिक गति हमें जीवन के भारतीय प्रतिमान की प्रतिष्ठापना के कार्य को देनी होगी। यह कठिन बहुत है। लेकिन असंभव तो कतई नहीं है। | संयुक्त परिवार, वर्ण, जाति, ग्रामकुल, राष्ट्र ऐसी प्राकृतिक आवश्यकताओं का आधार लेकर प्रकृति सुसंगत बातों को पुष्ट और धर्मानुकूल बनाने से ही ये प्रणालियाँ ठीक चला रही थीं और राष्ट्र संगठन अबतक टिका हुआ था| लेकिन हमारे दुर्लक्ष के कारण हिंदू समाज का संगठन पूरी तरह से चरमरा रहा है। संयुक्त परिवार व्यवस्था के, वर्ण व्यवस्था के, जाति व्यवस्था के, अंग्रेजपूर्व भारत में बहुत बडी संख्या में अस्तित्व में थे ऐसे लाखों ग्रामकुल और राष्ट्रीयता आदि की रक्षा और सबलीकरण के सीधे और पैने प्रयासों की आवश्यकता निर्माण हुई है। जिस गति से वर्तमान जीवन का अभारतीय प्रतिमान हमें भ्रष्ट और नष्ट कर रहा है उस गति से अधिक गति हमें जीवन के भारतीय प्रतिमान की प्रतिष्ठापना के कार्य को देनी होगी। यह कठिन बहुत है। लेकिन असंभव तो कतई नहीं है। |