कलियुग की 46वीं (अर्थात् ईसवी 15वीं) शताब्दी के प्रसिद्ध आचार्य, जिनका मत 'शुद्धाद्वैतवाद' के नाम से और जिनका भक्ति-मार्ग ‘पुष्टिमार्ग' के नाम से विख्यात है। आन्ध्र प्रदेश में जन्मे श्री वल्लभाचार्य गृहस्थ आचार्य थे। छोटी आयु में ही काशी में शास्त्राध्ययन पूर्ण कर चुकने पर ये वृन्दावन चले गये और कुछ दिन ब्रजवास करके तीर्थाटन को निकले। श्री विट्ठलनाथ इन के पुत्र थे। कहा जाता है कि वल्लभाचार्य की श्री चैतन्य महाप्रभु से भी भेंट हुई थी। भगवान् का अनुग्रह ही पुष्टि है और इसी अनुग्रह से भक्ति का उदय होताहै,ऐसी श्री वल्लभाचार्य की मान्यता थी। इन्होंने 'अणुभाष्य' नाम से ब्रह्मसूत्र का भाष्य लिखा। 52 वर्ष की अवस्था में ये वाराणसी में ज्योतिरूप में विलीन हो गये। | कलियुग की 46वीं (अर्थात् ईसवी 15वीं) शताब्दी के प्रसिद्ध आचार्य, जिनका मत 'शुद्धाद्वैतवाद' के नाम से और जिनका भक्ति-मार्ग ‘पुष्टिमार्ग' के नाम से विख्यात है। आन्ध्र प्रदेश में जन्मे श्री वल्लभाचार्य गृहस्थ आचार्य थे। छोटी आयु में ही काशी में शास्त्राध्ययन पूर्ण कर चुकने पर ये वृन्दावन चले गये और कुछ दिन ब्रजवास करके तीर्थाटन को निकले। श्री विट्ठलनाथ इन के पुत्र थे। कहा जाता है कि वल्लभाचार्य की श्री चैतन्य महाप्रभु से भी भेंट हुई थी। भगवान् का अनुग्रह ही पुष्टि है और इसी अनुग्रह से भक्ति का उदय होताहै,ऐसी श्री वल्लभाचार्य की मान्यता थी। इन्होंने 'अणुभाष्य' नाम से ब्रह्मसूत्र का भाष्य लिखा। 52 वर्ष की अवस्था में ये वाराणसी में ज्योतिरूप में विलीन हो गये। |