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− | === विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ ===
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− | शिक्षा का भौतिकीकरण आज की समस्या है <ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ३: अध्याय १३, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। भौतिक पक्ष सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं और प्राणवान प्रक्रियाओं और तत्त्वों को भी अपने ही जैसा जड़ बनाने का प्रयास करते हैं । इस तथ्य को लेकर आज सब त्रस्त हो गये हैं । धार्मिक मानस शिक्षा को जिस रूप में समझता है, जिस रूप की अपेक्षा करता है इससे यह वर्तमान स्थिति सर्वथा विपरीत है । आवश्यकता है शिक्षा का प्राणतत्त्व कैसे बलवान बने इसका विचार करने की । इसके लिये हमें भौतिक व्यवस्थाओं को भी शैक्षिक दृष्टि से देखना होगा । भौतिक व्यवस्थाओं को शैक्षिक प्रक्रियाओं से अलग कर उनका स्वतन्त्र विचार करने से बात नहीं बनेगी । भौतिक व्यवस्थाओं का शैक्षिक दृष्टि से निरूपण करने का प्रयास इस पर्व में किया गया है ।
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− | शिक्षा जिसका नियमन करती है ऐसे अर्थ ने स्वयं शिक्षा को ही कैसे जकड लिया है इसका विचार करने पर स्थिति अत्यन्त विषम है यह बात ध्यान में आती है । अतः शिक्षा को प्रथम तो अर्थ के नियमन से मुक्त करना होगा, बाद में वह मुक्ति का मार्ग दिखायेगी । अर्थ के चंगुल से शिक्षा को कैसे मुक्त किया जा सकता है इसका विचार यहाँ किया गया है । इस विचार को अधिक मुखर, अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है इसका भी संकेत किया गया है ।
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| == विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ == | | == विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ == |
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| === विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ एवं वातावरण === | | === विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ एवं वातावरण === |
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| ==== (१) विद्यालय सरस्वती का पावन मंदिर है ==== | | ==== (१) विद्यालय सरस्वती का पावन मंदिर है ==== |
− | विद्यालय ईंट और गारे का बना हुआ भवन नहीं है, विद्यालय आध्यात्मिक संगठन है । विद्यालय पतित्र मन्दिर है, जहाँ विद्या की देवी सरस्वती की निरन्तर आराधना होती है । विद्यालय साधनास्थली है, जहाँ चरित्र का विकास होता है । विद्यालय ज्ञान-विज्ञान, कला और संस्कृति का गतिशील केन्द्र है, जो समाज में जीवनीशक्ति का संचार करता है । | + | विद्यालय ईंट और गारे का बना हुआ भवन नहीं है, विद्यालय आध्यात्मिक संगठन है<ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ४: अध्याय १३, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> । विद्यालय पतित्र मन्दिर है, जहाँ विद्या की देवी सरस्वती की निरन्तर आराधना होती है । विद्यालय साधनास्थली है, जहाँ चरित्र का विकास होता है । विद्यालय ज्ञान-विज्ञान, कला और संस्कृति का गतिशील केन्द्र है, जो समाज में जीवनीशक्ति का संचार करता है । |
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| ==== (२) विद्यालय परिसर प्रकृति की गोद में हो ==== | | ==== (२) विद्यालय परिसर प्रकृति की गोद में हो ==== |