| शास्त्र कहता है कि इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि ज्ञान प्राप्त करने वाले करण, जिनका ज्ञान प्राप्त करते हैं वे सारे पदार्थ, जो प्राप्त होता है वह अनुभव, सब मूल रूप में आत्मा ही है । इस त्रिपुटी को अर्थात् ज्ञाता, जय और ज्ञान तीनों को आत्मतत्व ही कहा गया है । आत्मतत्व अपने अव्यक्त रूप में अजर अर्थात् जो कभी वृद्ध नहीं होता, अक्षर अर्थात् जिसका कभी क्षरण नहीं होता, अचिंत्य अर्थात् जिसका चिंतन नहीं किया जा सकता, अविनाशी अर्थात् जिसका कभी विनाश नहीं होता, अनादि अर्थात् जिसका कोई प्रारम्भ नहीं है, अनंत अर्थात् जिसका कोई अन्त नहीं है ऐसा एकमेवाद्धितीय है। वह अदृश्य, अस्पर्श्य, अश्राव्य है। वह अपरिवर्तनशील है। वह निर्गुण है। वह निराकार है। परन्तु सारे गुण,सारे आकार, सारे इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि तथा वृक्ष वनस्पति प्राणी आदि सब उसमें समाये हुए हैं । इसलिये उसका वर्णन वह है भी और नहीं भी इस प्रकार किया जाता है। | | शास्त्र कहता है कि इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि ज्ञान प्राप्त करने वाले करण, जिनका ज्ञान प्राप्त करते हैं वे सारे पदार्थ, जो प्राप्त होता है वह अनुभव, सब मूल रूप में आत्मा ही है । इस त्रिपुटी को अर्थात् ज्ञाता, जय और ज्ञान तीनों को आत्मतत्व ही कहा गया है । आत्मतत्व अपने अव्यक्त रूप में अजर अर्थात् जो कभी वृद्ध नहीं होता, अक्षर अर्थात् जिसका कभी क्षरण नहीं होता, अचिंत्य अर्थात् जिसका चिंतन नहीं किया जा सकता, अविनाशी अर्थात् जिसका कभी विनाश नहीं होता, अनादि अर्थात् जिसका कोई प्रारम्भ नहीं है, अनंत अर्थात् जिसका कोई अन्त नहीं है ऐसा एकमेवाद्धितीय है। वह अदृश्य, अस्पर्श्य, अश्राव्य है। वह अपरिवर्तनशील है। वह निर्गुण है। वह निराकार है। परन्तु सारे गुण,सारे आकार, सारे इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि तथा वृक्ष वनस्पति प्राणी आदि सब उसमें समाये हुए हैं । इसलिये उसका वर्णन वह है भी और नहीं भी इस प्रकार किया जाता है। |
− | इस आत्मतत्व ने ही इस सृष्टि का रूप धारण किया है। इसलिये इस सृष्टि को परमात्मा का विश्वरूप कहते हैं । आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है ? परमात्मा ने व्यक्त होने के लिये आत्मा का रूप धारण किया । परमात्मा का यह रूप शबल ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है । शबल ब्रह्म अर्थात् आत्मा ने प्रकृति के साथ मिलकर इस सृष्टि का रूप धारण किया । प्रकृति जड़ है, शबल ब्रह्म चेतन है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों है । परमात्मा में जड़ और चेतन ऐसा भेद नहीं है, द्वंद्व नहीं है । | + | इस आत्मतत्व ने ही इस सृष्टि का रूप धारण किया है। इसलिये इस सृष्टि को परमात्मा का विश्वरूप कहते हैं । आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर है ? परमात्मा ने व्यक्त होने के लिये आत्मा का रूप धारण किया । परमात्मा का यह रूप शबल ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है । शबल ब्रह्म अर्थात् आत्मा ने प्रकृति के साथ मिलकर इस सृष्टि का रूप धारण किया । प्रकृति जड़़ है, शबल ब्रह्म चेतन है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों है । परमात्मा में जड़़ और चेतन ऐसा भेद नहीं है, द्वंद्व नहीं है । |
− | चेतन और जड़ का मिलन होता है उसमें से सृष्टि का सृजन होता है । चेतन और जड़ के इस मिलन को चिज्जड़ ग्रंथि अर्थात् चेतन और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ सृष्टि में सर्वत्र होती है । इसका अर्थ यह है कि सृष्टि के सारे पदार्थ चेतन और जड़ दोनों हैं । परमात्मा निर्द्वंद्व है परन्तु सृष्टि द्वंद्वात्मक है। | + | चेतन और जड़़ का मिलन होता है उसमें से सृष्टि का सृजन होता है । चेतन और जड़़ के इस मिलन को चिज्जड़़ ग्रंथि अर्थात् चेतन और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ सृष्टि में सर्वत्र होती है । इसका अर्थ यह है कि सृष्टि के सारे पदार्थ चेतन और जड़़ दोनों हैं । परमात्मा निर्द्वंद्व है परन्तु सृष्टि द्वंद्वात्मक है। |