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− | सुख ही मनुष्य की सभी गतिविधियों की प्रेरणा है। समस्याएँ दु:ख फैलातीं हैं। वर्तमान में मानव जीवन छोटी मोटी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है। जीवन का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो समस्याओं को झेल नहीं रहा। समस्याओं का निराकरण ही सुख की आश्वस्ति है। समस्याएँ यद्यपि अनेकों हैं। एक एक समस्या का निराकरण करना संभव नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है। कुछ जड़ की बातें ऐसीं होतीं हैं जो कई समस्याओं को जन्म देतीं हैं। इन्हें समस्या मूल कह सकते हैं। समस्याओं के मूल संख्या में अल्प होते हैं। इन समस्या मूलों का निराकरण करने से सारी समस्याओं का निराकरण हो जाता है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४१, लेखक - दिलीप केलकर</ref> | + | सुख ही मनुष्य की सभी गतिविधियों की प्रेरणा है। समस्याएँ दु:ख फैलातीं हैं। वर्तमान में मानव जीवन छोटी मोटी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है। जीवन का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो समस्याओं को झेल नहीं रहा। समस्याओं का निराकरण ही सुख की आश्वस्ति है। समस्याएँ यद्यपि अनेकों हैं। एक एक समस्या का निराकरण करना संभव नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं है। कुछ जड़़ की बातें ऐसीं होतीं हैं जो कई समस्याओं को जन्म देतीं हैं। इन्हें समस्या मूल कह सकते हैं। समस्याओं के मूल संख्या में अल्प होते हैं। इन समस्या मूलों का निराकरण करने से सारी समस्याओं का निराकरण हो जाता है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४१, लेखक - दिलीप केलकर</ref> |
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| == समस्याओं की सूची == | | == समस्याओं की सूची == |
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| # बढती अश्लीलता | | # बढती अश्लीलता |
| # अणू, प्लॅस्टिक जैसे लाजबाब कचरे | | # अणू, प्लॅस्टिक जैसे लाजबाब कचरे |
− | # बढते शहर -उजडते गाँव | + | # बढते शहर -उजड़ते गाँव |
| # तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग | | # तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग |
| # बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी | | # बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी |
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| जीवन की सारी समस्याओं का प्रारंभ स्वार्थ भावना के कारण होता है। आत्मीयता बढने से स्वार्थ में कमी आती है। जीवन में सुख चैन बढते हैं। स्वार्थ भावना से मोक्ष की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है। परोपकार की नि:स्वार्थ भावना और व्यवहार से मोक्षगामी हुआ जाता है। इसलिये स्वार्थ पर आधारित जीवन को मर्यादा डालकर आत्मीयता को बढावा देने वाले जीवन के प्रतिमान का विकास और स्वीकार करना होगा। मनुष्य जन्म लेता है तब उसे केवल अधिकारों की समझ होती है। उस की केवल अधिकारों की समझ दूर कर उस के स्थान पर कर्तव्यों की समझ निर्माण करने से समाज सुखी बन जाता है। यह काम सामाजिक व्यवस्थाओं का है। कौटुम्बिक भावना का संबंध कर्तव्यों से होता है। समाज जीवन की सारी व्यवस्थाएँ कौटुम्बिक भावनापर आधारित होने से, कौटुम्बिक भावना के लिये पूरक होने से समाज में सुख, शांति, एकात्मता व्याप्त हो जाती है। जीवन के धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान का आधार ‘आत्मीयता याने कुटुम्ब भावना” है। | | जीवन की सारी समस्याओं का प्रारंभ स्वार्थ भावना के कारण होता है। आत्मीयता बढने से स्वार्थ में कमी आती है। जीवन में सुख चैन बढते हैं। स्वार्थ भावना से मोक्ष की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है। परोपकार की नि:स्वार्थ भावना और व्यवहार से मोक्षगामी हुआ जाता है। इसलिये स्वार्थ पर आधारित जीवन को मर्यादा डालकर आत्मीयता को बढावा देने वाले जीवन के प्रतिमान का विकास और स्वीकार करना होगा। मनुष्य जन्म लेता है तब उसे केवल अधिकारों की समझ होती है। उस की केवल अधिकारों की समझ दूर कर उस के स्थान पर कर्तव्यों की समझ निर्माण करने से समाज सुखी बन जाता है। यह काम सामाजिक व्यवस्थाओं का है। कौटुम्बिक भावना का संबंध कर्तव्यों से होता है। समाज जीवन की सारी व्यवस्थाएँ कौटुम्बिक भावनापर आधारित होने से, कौटुम्बिक भावना के लिये पूरक होने से समाज में सुख, शांति, एकात्मता व्याप्त हो जाती है। जीवन के धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान का आधार ‘आत्मीयता याने कुटुम्ब भावना” है। |
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− | उपर्युक्त सभी बिन्दुओं के अध्ययन से यह ध्यान में आएगा कि सभी समस्याओं की जड़ स्वार्थ आधारित जीवनदृष्टि है। सामाजिक संगठन और व्यवस्थाएँ भी जीवन दृष्टि से सुसंगत ही होती हैं। संक्षेप में कहें तो सारी समस्याओं का मूल वर्तमान में हम जिस जीवन के प्रतिमान में जी रहे हैं वह जीवन का अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान है। इस प्रतिमान को केवल नकारने से समस्याएं नहीं सुलझनेवाली। साथ ही में जीवन के निर्दोष धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान की प्रतिष्ठापना भी करनी होगी। | + | उपर्युक्त सभी बिन्दुओं के अध्ययन से यह ध्यान में आएगा कि सभी समस्याओं की जड़़ स्वार्थ आधारित जीवनदृष्टि है। सामाजिक संगठन और व्यवस्थाएँ भी जीवन दृष्टि से सुसंगत ही होती हैं। संक्षेप में कहें तो सारी समस्याओं का मूल वर्तमान में हम जिस जीवन के प्रतिमान में जी रहे हैं वह जीवन का अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान है। इस प्रतिमान को केवल नकारने से समस्याएं नहीं सुलझनेवाली। साथ ही में जीवन के निर्दोष धार्मिक (धार्मिक) प्रतिमान की प्रतिष्ठापना भी करनी होगी। |
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| ==References== | | ==References== |