Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "जड" to "जड़"
Line 47: Line 47:  
<blockquote>'''<big>प्रकृतिः पञ्च भूतानि ग्रहा लोका स्वरास्तथा।दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुवन्तु मङ्गलम् ।।२।।</big>'''</blockquote>'''अर्थ : -''' (तीन गुणों से युक्त) प्रकृति,पाँच भूत, (नौ) ग्रह, (तीन) लोक अथवा (सात) ऊध्र्वलोक और (सात) अधोलोक, (सात) स्वर, (दसों) दिशाएं और (तीनों) काल सदा सबका मंगल करें ॥२ ॥  
 
<blockquote>'''<big>प्रकृतिः पञ्च भूतानि ग्रहा लोका स्वरास्तथा।दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुवन्तु मङ्गलम् ।।२।।</big>'''</blockquote>'''अर्थ : -''' (तीन गुणों से युक्त) प्रकृति,पाँच भूत, (नौ) ग्रह, (तीन) लोक अथवा (सात) ऊध्र्वलोक और (सात) अधोलोक, (सात) स्वर, (दसों) दिशाएं और (तीनों) काल सदा सबका मंगल करें ॥२ ॥  
   −
प्रकृति सृष्टी का मुल उपादान कारण , जो संख्या दर्शन के अनुसार जड़ (अचेतन)<sub>,</sub> अमूर्त (निराकार) और त्रिगुणात्मक है, प्रकृति के नाम से ज्ञात है। उसके तीन गुण हैं – सत्व,रज और तम,जिनकी साम्यावस्था में सब कुछ अमूर्त रहता है। किन्तु चेतन तत्व (ईश्वर या आत्मा) के सान्निध्य में जड़ प्रकृति में चेतनाभास उत्पन्न हो जाने से वह साम्य भंग हो जाता है और तीनों गुण एक दूसरे को दबाकर स्वयं प्रभावी होने का प्रयत्न करने लगते हैं। इसके साथ ही सृष्टि का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। अद्वैत दर्शन में सृष्टि को मायाजनित विवर्त (मिथ्या आभास) माना जाता है। वस्तुत: भारतीय विचारधारा में प्रकृति और माया एक ही शक्ति के दो नाम हैं।  
+
प्रकृति सृष्टी का मुल उपादान कारण , जो संख्या दर्शन के अनुसार जड़़ (अचेतन)<sub>,</sub> अमूर्त (निराकार) और त्रिगुणात्मक है, प्रकृति के नाम से ज्ञात है। उसके तीन गुण हैं – सत्व,रज और तम,जिनकी साम्यावस्था में सब कुछ अमूर्त रहता है। किन्तु चेतन तत्व (ईश्वर या आत्मा) के सान्निध्य में जड़़ प्रकृति में चेतनाभास उत्पन्न हो जाने से वह साम्य भंग हो जाता है और तीनों गुण एक दूसरे को दबाकर स्वयं प्रभावी होने का प्रयत्न करने लगते हैं। इसके साथ ही सृष्टि का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। अद्वैत दर्शन में सृष्टि को मायाजनित विवर्त (मिथ्या आभास) माना जाता है। वस्तुत: भारतीय विचारधारा में प्रकृति और माया एक ही शक्ति के दो नाम हैं।  
    
पंचभूत भारत का सामान्य जन भी इस दार्शनिक अवधारणा से सुपरिचित है कि सारे संसार और हमारे शरीर का भी निर्माण“क्षिति जल पावक गगन समीरा" अर्थात पृथ्वी ,जल,अग्नि, वायु और आकाश – इन पाँच भूतों से हुआ है। सांख्य दर्शन के अनुसार भौतिक सृष्टि के क्रम में तीन गुणों की साम्यावस्था भंग होने पर प्रधान प्रकृति के प्रथम विकार महत् से शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध – ये पाँच तन्मात्र (गुण) और इन तन्मात्रों से क्रमश: आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी नामक पंचभूतों की सृष्टि होती है जिनसे यह विश्व बना है। ये पाँचों भूत सूक्ष्म मूल पदार्थ हैं,स्थूल मिट्टी, पानी, आग इत्यादि नहीं।  
 
पंचभूत भारत का सामान्य जन भी इस दार्शनिक अवधारणा से सुपरिचित है कि सारे संसार और हमारे शरीर का भी निर्माण“क्षिति जल पावक गगन समीरा" अर्थात पृथ्वी ,जल,अग्नि, वायु और आकाश – इन पाँच भूतों से हुआ है। सांख्य दर्शन के अनुसार भौतिक सृष्टि के क्रम में तीन गुणों की साम्यावस्था भंग होने पर प्रधान प्रकृति के प्रथम विकार महत् से शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध – ये पाँच तन्मात्र (गुण) और इन तन्मात्रों से क्रमश: आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी नामक पंचभूतों की सृष्टि होती है जिनसे यह विश्व बना है। ये पाँचों भूत सूक्ष्म मूल पदार्थ हैं,स्थूल मिट्टी, पानी, आग इत्यादि नहीं।  
Line 741: Line 741:  
'''<big>कपिल</big>'''
 
'''<big>कपिल</big>'''
   −
सांख्य सूत्रों के रचयिता दार्शनिक, जिन्हें श्रीमद्भागवत में विष्णु के 24 अवतारों में स्थान मिला है। इनकेमाता-पिता कानामकर्दम ऋषि औरदेवहूतिबतायागयाहै। प्रचलित सांख्यदर्शन के येप्रवर्तक माने जाते हैं। कपिल वेदान्तदर्शन की भाँति ब्रह्म या आत्मा को ही एकमात्र सत् नहीं मानते थे। उन्होंने असंख्य जीवों या 'पुरुषों' तथा प्रकृति को भी स्वतंत्र तत्च माना। चेतन पुरुष और जड़ प्रकृति कपिल के मत में मुख्य तत्व हैं। प्रकृति नित्य है,जगत् की सारी वस्तुएँउसी के विकारहैं। पुरुष की समीपता मात्र से और उसके ही लिए प्रकृति में क्रियाउत्पन्न होती है,जिससे विश्व की वस्तुओं की उत्पत्ति और विनाश होता है। कपिल के उपदेशों का एक बड़ा संग्रह ‘षष्टितंत्र' कहा जाताहै। 'सांख्य सूत्र' और'सांख्य कारिका'सांख्यदर्शन केप्रमुख ग्रंथहैं। पुराणों में कपिल मुनि का वर्णन महान् तपस्वी सिद्धपुरुष के रूप में हैं।  
+
सांख्य सूत्रों के रचयिता दार्शनिक, जिन्हें श्रीमद्भागवत में विष्णु के 24 अवतारों में स्थान मिला है। इनकेमाता-पिता कानामकर्दम ऋषि औरदेवहूतिबतायागयाहै। प्रचलित सांख्यदर्शन के येप्रवर्तक माने जाते हैं। कपिल वेदान्तदर्शन की भाँति ब्रह्म या आत्मा को ही एकमात्र सत् नहीं मानते थे। उन्होंने असंख्य जीवों या 'पुरुषों' तथा प्रकृति को भी स्वतंत्र तत्च माना। चेतन पुरुष और जड़़ प्रकृति कपिल के मत में मुख्य तत्व हैं। प्रकृति नित्य है,जगत् की सारी वस्तुएँउसी के विकारहैं। पुरुष की समीपता मात्र से और उसके ही लिए प्रकृति में क्रियाउत्पन्न होती है,जिससे विश्व की वस्तुओं की उत्पत्ति और विनाश होता है। कपिल के उपदेशों का एक बड़ा संग्रह ‘षष्टितंत्र' कहा जाताहै। 'सांख्य सूत्र' और'सांख्य कारिका'सांख्यदर्शन केप्रमुख ग्रंथहैं। पुराणों में कपिल मुनि का वर्णन महान् तपस्वी सिद्धपुरुष के रूप में हैं।  
    
'''<big>कणाद</big>'''  
 
'''<big>कणाद</big>'''  

Navigation menu