Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "हमेशा" to "सदा"
Line 36: Line 36:  
इस कारण से कितना भी अपरिचित या असंभव लगता हो तो भी हमें पुनर्विचार तो करना ही होगा | पुनर्विचार का प्रारंभ अध्ययन से करना चाहिए। हमारी व्यवस्थायें कैसी थीं इसका परिचय प्राप्त करना प्रथम चरण होगा | अध्ययन प्रारंभ करने से पूर्व ही कुछ आस्था तो रखनी ही पड़ेगी। अध्ययन करते करते आस्था बढ़ेगी। हमें उस व्यवस्था की परिणामकारकता भी दिखाई देने लगेगी | अध्ययन के आधार पर वर्तमान समय के अनुकूल नई व्यवस्थाओं का विचार करना होगा। आर्थिक क्षेत्र बहुत अधिक मात्रा में ठीक करना होगा।
 
इस कारण से कितना भी अपरिचित या असंभव लगता हो तो भी हमें पुनर्विचार तो करना ही होगा | पुनर्विचार का प्रारंभ अध्ययन से करना चाहिए। हमारी व्यवस्थायें कैसी थीं इसका परिचय प्राप्त करना प्रथम चरण होगा | अध्ययन प्रारंभ करने से पूर्व ही कुछ आस्था तो रखनी ही पड़ेगी। अध्ययन करते करते आस्था बढ़ेगी। हमें उस व्यवस्था की परिणामकारकता भी दिखाई देने लगेगी | अध्ययन के आधार पर वर्तमान समय के अनुकूल नई व्यवस्थाओं का विचार करना होगा। आर्थिक क्षेत्र बहुत अधिक मात्रा में ठीक करना होगा।
   −
पर्यावरण के संकट को ठीक से पहचान कर उसे भारतीय दृष्टि से दूर करने की योजना जनानी होगी | पर्यावरण के संकट के साथ हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संकट कितना गहरा जुड़ा है यह भी समझना होगा। इन दोनों संकटों के कारण चिकित्सा उद्योग, औषध उद्योग, वकीलों का उद्योग और न्यायालयों की संख्या कितनी अधिक बढ़ गई है इसका गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा । शिक्षा का बाजार कितना घातक हो गया है यह भी समझना होगा | इन सारी बातों को ध्यान में लेकर नई रचना बनानी होगी। थोड़ी दीर्घकालीन योजना बनानी होगी । दीर्घकालीन हो या त्वरित, कुटुम्बजीवन को केन्द्र में रखकर यह पुनर्विचार होने की आवश्यकता है | इस कार्य में दो संस्थायें पहल कर सकती हैं | एक है विश्वविद्यालय और दूसरी है मन्दिर संस्था या धर्मसंस्था । भारतीय समाज और भारतीय शिक्षा हमेशा धर्मानुसारी रही हैं। धर्म ही सुरक्षा और विकास की गारण्टी दे सकता है । यदि हम ऐसा करते हैं तो हमारी स्थिति भी ठीक होगी और विश्व को भी एक अच्छा प्रारूप मिल सकता है।
+
पर्यावरण के संकट को ठीक से पहचान कर उसे भारतीय दृष्टि से दूर करने की योजना जनानी होगी | पर्यावरण के संकट के साथ हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का संकट कितना गहरा जुड़ा है यह भी समझना होगा। इन दोनों संकटों के कारण चिकित्सा उद्योग, औषध उद्योग, वकीलों का उद्योग और न्यायालयों की संख्या कितनी अधिक बढ़ गई है इसका गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा । शिक्षा का बाजार कितना घातक हो गया है यह भी समझना होगा | इन सारी बातों को ध्यान में लेकर नई रचना बनानी होगी। थोड़ी दीर्घकालीन योजना बनानी होगी । दीर्घकालीन हो या त्वरित, कुटुम्बजीवन को केन्द्र में रखकर यह पुनर्विचार होने की आवश्यकता है | इस कार्य में दो संस्थायें पहल कर सकती हैं | एक है विश्वविद्यालय और दूसरी है मन्दिर संस्था या धर्मसंस्था । भारतीय समाज और भारतीय शिक्षा सदा धर्मानुसारी रही हैं। धर्म ही सुरक्षा और विकास की गारण्टी दे सकता है । यदि हम ऐसा करते हैं तो हमारी स्थिति भी ठीक होगी और विश्व को भी एक अच्छा प्रारूप मिल सकता है।
    
==References==
 
==References==

Navigation menu