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| यह कोई नियमित व्यवस्था नहीं होती। यह जाग्रत, नि:स्वार्थी, सर्वभूतहित में सदैव प्रयासरत रहनेवाले पंडितों का समूह होता है। यह समूह सक्रिय होने से समाज ठीक चलता है। आवश्यकतानुसार इस समूह की जिम्मेदारियां बढ़ जातीं है। ऐसे आपद्धर्म के निर्वहन के लिए भी यह समूह पर्याप्त सामर्थ्यवान हो। | | यह कोई नियमित व्यवस्था नहीं होती। यह जाग्रत, नि:स्वार्थी, सर्वभूतहित में सदैव प्रयासरत रहनेवाले पंडितों का समूह होता है। यह समूह सक्रिय होने से समाज ठीक चलता है। आवश्यकतानुसार इस समूह की जिम्मेदारियां बढ़ जातीं है। ऐसे आपद्धर्म के निर्वहन के लिए भी यह समूह पर्याप्त सामर्थ्यवान हो। |
| # कालानुरूप धर्म को व्याख्यायित करना। | | # कालानुरूप धर्म को व्याख्यायित करना। |
− | # वर्णों के ‘स्व’धर्मों का पालन करने की व्यवस्था की पस्तुति कर शिक्षा और शासन की सहायता से समाज में उन्हें स्थापित करना। व्यक्तिगत और सामाजिक धर्म/संस्कृति के अनुसार व्यवहार का वातावरण बनाना। जब वर्ण-धर्म का पालन लोग करते हैं तब देश में संस्कृति का विकास और रक्षण होता है। जिनकी ओर देखकर लोग वर्ण धर्म का पालन कर सकें ऐसे ‘श्रेष्ठ’ लोगों का निर्माण करना। | + | # वर्णों के ‘स्व’धर्मों का पालन करने की व्यवस्था की पस्तुति कर शिक्षा और शासन की सहायता से समाज में उन्हें स्थापित करना। व्यक्तिगत और सामाजिक धर्म/संस्कृति के अनुसार व्यवहार का वातावरण बनाना। जब वर्ण-धर्म का पालन लोग करते हैं तब देश में संस्कृति का विकास और रक्षण होता है। जिनकी ओर देखकर लोग वर्ण धर्म का पालन कर सकें ऐसे ‘श्रेष्ठ’ लोगोंं का निर्माण करना। |
| # स्वाभाविक, शासनिक और आर्थिक ऐसी सभी प्रकार की स्वतन्त्रता की रक्षा करना। | | # स्वाभाविक, शासनिक और आर्थिक ऐसी सभी प्रकार की स्वतन्त्रता की रक्षा करना। |
| # शासन पर अपने ज्ञान, त्याग, तपस्या, लोकसंग्रह तथा सदैव लोकहित के चिंतन के माध्यम से नैतिक दबाव निर्माण करना। शासन को सदाचारी, कुशल और सामर्थ्य संपन्न बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन करना। अधर्माचरणी शासन को हटाकर धर्माचरणी शासन को प्रतिष्ठित करना। | | # शासन पर अपने ज्ञान, त्याग, तपस्या, लोकसंग्रह तथा सदैव लोकहित के चिंतन के माध्यम से नैतिक दबाव निर्माण करना। शासन को सदाचारी, कुशल और सामर्थ्य संपन्न बनाए रखने के लिए मार्गदर्शन करना। अधर्माचरणी शासन को हटाकर धर्माचरणी शासन को प्रतिष्ठित करना। |
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| === शासन व्यवस्था === | | === शासन व्यवस्था === |
− | # अंतर्बाह्य शत्रुओं से लोगों की शासनिक स्वतन्त्रता की रक्षा करना। | + | # अंतर्बाह्य शत्रुओं से लोगोंं की शासनिक स्वतन्त्रता की रक्षा करना। |
| # धर्म के दायरे में रहकर दुष्टों और मूर्खों को नियंत्रण में रखना। | | # धर्म के दायरे में रहकर दुष्टों और मूर्खों को नियंत्रण में रखना। |
| # दंड व्यवस्था के अंतर्गत न्याय व्यवस्था का निर्माण करना। किसी पर अन्याय हो ही नहीं, ऐसी दंड व्यवस्था के निर्माण का प्रयास करना। | | # दंड व्यवस्था के अंतर्गत न्याय व्यवस्था का निर्माण करना। किसी पर अन्याय हो ही नहीं, ऐसी दंड व्यवस्था के निर्माण का प्रयास करना। |
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| === धर्म के अनुपालन के अवरोध === | | === धर्म के अनुपालन के अवरोध === |
| धर्म के अनुपालन में निम्न बातें अवरोध-रूप होतीं हैं: | | धर्म के अनुपालन में निम्न बातें अवरोध-रूप होतीं हैं: |
− | # भिन्न जीवनदृष्टि के लोग : शीघ्रातिशीघ्र भिन्न जीवनदृष्टि के लोगों को आत्मसात करना आवश्यक होता है। अन्यथा समाज जीवन अस्थिर और संघर्षमय बन जाता है। | + | # भिन्न जीवनदृष्टि के लोग : शीघ्रातिशीघ्र भिन्न जीवनदृष्टि के लोगोंं को आत्मसात करना आवश्यक होता है। अन्यथा समाज जीवन अस्थिर और संघर्षमय बन जाता है। |
| # स्वार्थ / संकुचित अस्मिताएँ : आवश्यकताओं की पुर्ति तक तो स्वार्थ भावना समर्थनीय है। अस्मिता या अहंकार यह प्रत्येक जीवंत ईकाई का एक स्वाभाविक पहलू होता है। किन्तु जब किसी ईकाई के विशिष्ट स्तर की यह अस्मिता अपने से ऊपर की ईकाई जिसका वह हिस्सा है, उसकी अस्मिता से बड़ी लगने लगती है तब समाज जीवन की शांति नष्ट हो जाती है। अतः यह आवश्यक है कि मजहब, रिलिजन, प्रादेशिक अलगता, भाषिक भिन्नता, धन का अहंकार, बौद्धिक श्रेष्ठता आदि जैसी संकुचित अस्मिताएँ अपने से ऊपर की जीवंत ईकाई की अस्मिता के विरोध में नहीं हो। | | # स्वार्थ / संकुचित अस्मिताएँ : आवश्यकताओं की पुर्ति तक तो स्वार्थ भावना समर्थनीय है। अस्मिता या अहंकार यह प्रत्येक जीवंत ईकाई का एक स्वाभाविक पहलू होता है। किन्तु जब किसी ईकाई के विशिष्ट स्तर की यह अस्मिता अपने से ऊपर की ईकाई जिसका वह हिस्सा है, उसकी अस्मिता से बड़ी लगने लगती है तब समाज जीवन की शांति नष्ट हो जाती है। अतः यह आवश्यक है कि मजहब, रिलिजन, प्रादेशिक अलगता, भाषिक भिन्नता, धन का अहंकार, बौद्धिक श्रेष्ठता आदि जैसी संकुचित अस्मिताएँ अपने से ऊपर की जीवंत ईकाई की अस्मिता के विरोध में नहीं हो। |
| # विपरीत शिक्षा : विपरीत या दोषपूर्ण शिक्षा यह तो सभी समस्याओं की जड़ होती है। | | # विपरीत शिक्षा : विपरीत या दोषपूर्ण शिक्षा यह तो सभी समस्याओं की जड़ होती है। |