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− | वेद का अर्थ परम ज्ञान है। आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं। भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं। इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है। वेद ज्ञान तो पहले से ही था। समाधि अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियों ने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तर पर समझनेवाले लोगों के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है। वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है। | + | वेद का अर्थ परम ज्ञान है। आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं। भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं। इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है। वेद ज्ञान तो पहले से ही था। समाधि अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियों ने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तर पर समझनेवाले लोगोंं के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है। वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है। |
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| वेद भारत के ही नहीं, विश्व के सबसे प्राचीन मूल ग्रन्थ हैं। वेद केवल आध्यात्मिक ही नहीं, अपितु लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं। हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं। वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं: | | वेद भारत के ही नहीं, विश्व के सबसे प्राचीन मूल ग्रन्थ हैं। वेद केवल आध्यात्मिक ही नहीं, अपितु लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं। हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं। वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं: |
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− | वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए '''शिक्षा''', यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु '''कल्प''', शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु '''व्याकरण''', शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए '''निरुक्त''', पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए '''छंद''' और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लिए '''ज्योतिष''' ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है। जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है। <blockquote>शब्दशास्त्रं मुखं ज्योतिषं चक्षुषी, श्रोत्रमुक्तं निरुक्तश्च कल्पः करौ ॥ </blockquote><blockquote>या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासिका, पादपद्मद्वयं छन्द-अाद्यैर्बुधैः ॥<ref>सिद्धान्तशिरोमणिः (भास्कराचार्य कृत)</ref></blockquote><blockquote>अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं।</blockquote>वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है। इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगों ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं। इस दृष्टि से एक भी अधार्मिक (अधार्मिक) का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है। | + | वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए '''शिक्षा''', यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु '''कल्प''', शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु '''व्याकरण''', शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए '''निरुक्त''', पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए '''छंद''' और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लिए '''ज्योतिष''' ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है। जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है। <blockquote>शब्दशास्त्रं मुखं ज्योतिषं चक्षुषी, श्रोत्रमुक्तं निरुक्तश्च कल्पः करौ ॥ </blockquote><blockquote>या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासिका, पादपद्मद्वयं छन्द-अाद्यैर्बुधैः ॥<ref>सिद्धान्तशिरोमणिः (भास्कराचार्य कृत)</ref></blockquote><blockquote>अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं।</blockquote>वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है। इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगोंं ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं। इस दृष्टि से एक भी अधार्मिक (अधार्मिक) का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है। |
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| === [[Brahmana (ब्राह्मणम्)|ब्राह्मण ग्रन्थ]] === | | === [[Brahmana (ब्राह्मणम्)|ब्राह्मण ग्रन्थ]] === |
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| १८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं। अतः वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं। कृष्ण के स्तर से नहीं। | | १८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं। अतः वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं। कृष्ण के स्तर से नहीं। |
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− | १९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगों के लिए है। लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगों के लिए नहीं है। | + | १९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगोंं के लिए है। लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगोंं के लिए नहीं है। |
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| २०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है। | | २०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है। |