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| # आजकल सब इन्जिनीयर बनना चाहते हैं । ऐसी मान्यता है कि इन्जिनीयरों को जल्दी नौकरी मिल जाती है, अधिक वेतनवाली नौकरी मिलती है। इसलिये इन्जिनीयरिंग कॉलेज में प्रवेश लेने वालों की संख्या बढ जाती है। यह देखकर इन्जिनीयरिंग कॉलेज आरम्भ करने वाले भी मैदान में आ जाते हैं । अनेक महाविद्यालय नये खुलते हैं। धीरे धीरे इन्जिनीयरों की संख्या बढती है परन्तु उनकी अब आवश्यकता नहीं होती है । वे नौकरी के लिये मारे मारे फिरते हैं और अल्पतम वेतन वाली नौकरी करते हैं, जो इन्जिनीयर का काम ही नहीं है ऐसी बाबूगीरी भी कर लेते हैं । | | # आजकल सब इन्जिनीयर बनना चाहते हैं । ऐसी मान्यता है कि इन्जिनीयरों को जल्दी नौकरी मिल जाती है, अधिक वेतनवाली नौकरी मिलती है। इसलिये इन्जिनीयरिंग कॉलेज में प्रवेश लेने वालों की संख्या बढ जाती है। यह देखकर इन्जिनीयरिंग कॉलेज आरम्भ करने वाले भी मैदान में आ जाते हैं । अनेक महाविद्यालय नये खुलते हैं। धीरे धीरे इन्जिनीयरों की संख्या बढती है परन्तु उनकी अब आवश्यकता नहीं होती है । वे नौकरी के लिये मारे मारे फिरते हैं और अल्पतम वेतन वाली नौकरी करते हैं, जो इन्जिनीयर का काम ही नहीं है ऐसी बाबूगीरी भी कर लेते हैं । |
| # यही बात शिक्षकों के लिये, पाइलोटों के लिये कम्प्यूटरी सीखने वालों के लिये, डॉक्टरों के लिये सत्य है। इन सबको नौकरी मिलती नहीं है और स्वतन्त्र व्यवसाय करने की न हिम्मत है, न क्षमता है न अनुकूलता है । | | # यही बात शिक्षकों के लिये, पाइलोटों के लिये कम्प्यूटरी सीखने वालों के लिये, डॉक्टरों के लिये सत्य है। इन सबको नौकरी मिलती नहीं है और स्वतन्त्र व्यवसाय करने की न हिम्मत है, न क्षमता है न अनुकूलता है । |
− | # इन सबको काम देने वालों की हमेशा शिकायत रहती है कि ये लोग काम करने के लायक ही नहीं है । इनको न काम आता है न काम करने की उनकी नीयत है । इन्हें मतलब काम से नहीं है, पैसे से ही है । | + | # इन सबको काम देने वालों की सदा शिकायत रहती है कि ये लोग काम करने के लायक ही नहीं है । इनको न काम आता है न काम करने की उनकी नीयत है । इन्हें मतलब काम से नहीं है, पैसे से ही है । |
| # शिक्षित या अशिक्षित युवकों को मोबाइल, बाईक और जिन्स पैण्ट न्यूनतम आवश्यकता है । नौकरी मिले या न मिले ये सब तो मिलने ही चाहिये ऐसा मानस है । येन केन प्रकारेण उन्हें प्राप्त करने का “पुरुषार्थ' भी चलता रहता है । | | # शिक्षित या अशिक्षित युवकों को मोबाइल, बाईक और जिन्स पैण्ट न्यूनतम आवश्यकता है । नौकरी मिले या न मिले ये सब तो मिलने ही चाहिये ऐसा मानस है । येन केन प्रकारेण उन्हें प्राप्त करने का “पुरुषार्थ' भी चलता रहता है । |
| # इन युवाओं को कार्यसंस्कृति का ज्ञान नहीं होता है । नौकरी या. व्यवसाय करने में नीतिमत्ता, व्यावसायिकता, उत्कृष्टता, जिम्मेदारी, प्रगति आदि के पैसे के अलावा कोई सन्दर्भ मालूम नहीं होते हैं । दिन के बारह घण्टे काम करने के बाद ही निर्वाह के लिये कुछ मिलता है । ऐसे में संस्कार और संस्कृति की तो कल्पना तक नहीं की जा सकती । | | # इन युवाओं को कार्यसंस्कृति का ज्ञान नहीं होता है । नौकरी या. व्यवसाय करने में नीतिमत्ता, व्यावसायिकता, उत्कृष्टता, जिम्मेदारी, प्रगति आदि के पैसे के अलावा कोई सन्दर्भ मालूम नहीं होते हैं । दिन के बारह घण्टे काम करने के बाद ही निर्वाह के लिये कुछ मिलता है । ऐसे में संस्कार और संस्कृति की तो कल्पना तक नहीं की जा सकती । |
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| आचार्य विद्यार्थी के साथ साथ समाज का मार्गदर्शन करने को भी अपना कर्तव्य समझता है । | | आचार्य विद्यार्थी के साथ साथ समाज का मार्गदर्शन करने को भी अपना कर्तव्य समझता है । |
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− | आचार्य हमेशा प्रसन्न रहता है । शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है । रोगी, संशयग्रस्त, पूर्वग्रहों से युक्त, चिडचिड़ा, लालची, प्रमादी नहीं होता । ऐसी स्थिति में वह कभी छात्रों के सामने उपस्थित नहीं होता । | + | आचार्य सदा प्रसन्न रहता है । शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है । रोगी, संशयग्रस्त, पूर्वग्रहों से युक्त, चिडचिड़ा, लालची, प्रमादी नहीं होता । ऐसी स्थिति में वह कभी छात्रों के सामने उपस्थित नहीं होता । |
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| व्यावहारिकता की बात तो यह है कि, शिशु, बाल, किशोर छात्रों के लिए अपंग, अंध, अस्पष्ट उच्चार वाला, गंदे दांतवाला आचार्य नहीं चलता। सशक्त, प्रभावी व्यक्तित्व वाला आचार्य ही विद्यार्थी को प्रेरणा दे सकता है । | | व्यावहारिकता की बात तो यह है कि, शिशु, बाल, किशोर छात्रों के लिए अपंग, अंध, अस्पष्ट उच्चार वाला, गंदे दांतवाला आचार्य नहीं चलता। सशक्त, प्रभावी व्यक्तित्व वाला आचार्य ही विद्यार्थी को प्रेरणा दे सकता है । |