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२. भारत की व्यवस्था से यह सर्वथा विपरीत है । भारत में जीवन से सम्बन्धित समाज की सारी व्यवस्थायें परिवार को इकाई मानकर की जाती रही हैं । परिवार में सम्बन्ध और व्यवस्था दोनों निहित हैं । अर्थात् पारिवारिक सम्बन्ध और परिवार की व्यवस्था दोनों महत्त्वपूर्ण हैं ।
२. भारत की व्यवस्था से यह सर्वथा विपरीत है । भारत में जीवन से सम्बन्धित समाज की सारी व्यवस्थायें परिवार को इकाई मानकर की जाती रही हैं । परिवार में सम्बन्ध और व्यवस्था दोनों निहित हैं । अर्थात् पारिवारिक सम्बन्ध और परिवार की व्यवस्था दोनों महत्त्वपूर्ण हैं ।
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३. परिवार को इकाई मानने का तात्पर्य कया है ? परिवार में तो एक से अधिक व्यक्ति होते हैं । एक से अधिक संख्या इकाई कैसे हो सकती है खाना, पीना, सोना, काम करना सब तो सबका अलग अलग होता है । फिर सबकी मिलकर एक इकाई कैसे होगी ? भावनात्मक दृष्टि से तो ठीक है परन्तु व्यवस्था में यह कैसे बैठ सकता है ?
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३. परिवार को इकाई मानने का तात्पर्य क्या है ? परिवार में तो एक से अधिक व्यक्ति होते हैं । एक से अधिक संख्या इकाई कैसे हो सकती है खाना, पीना, सोना, काम करना सब तो सबका अलग अलग होता है । फिर सबकी मिलकर एक इकाई कैसे होगी ? भावनात्मक दृष्टि से तो ठीक है परन्तु व्यवस्था में यह कैसे बैठ सकता है ?
४. यही बात धार्मिक मनीषियों की प्रतिभा का नमूना है। अध्यात्म को व्यावहारिक कैसे बनाना इसका उदाहरण है । आज यह हमारी कल्पना से बाहर हो गया है यह बात अलग है, परन्तु हमारा चिन्तन तो ऐसा ही रहा है ।
४. यही बात धार्मिक मनीषियों की प्रतिभा का नमूना है। अध्यात्म को व्यावहारिक कैसे बनाना इसका उदाहरण है । आज यह हमारी कल्पना से बाहर हो गया है यह बात अलग है, परन्तु हमारा चिन्तन तो ऐसा ही रहा है ।