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लेख सम्पादित किया
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==== बस्ते के सम्बन्ध में विचारणीय बातें ====
 
==== बस्ते के सम्बन्ध में विचारणीय बातें ====
 
विद्यार्थियों के बस्ते के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार विचार करना चाहिये ।
 
विद्यार्थियों के बस्ते के सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार विचार करना चाहिये ।
* शैक्षिक दृष्टि से विचार करें तो भाषा और गणित के अलावा एक भी विषय पुस्तकों से नहीं पढ़ा जाता । इसलिये इन पुस्तकों को विद्यालय में ले जाने की आवश्यकता ही नहीं है ।
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* शैक्षिक दृष्टि से विचार करें तो भाषा और गणित के अलावा एक भी विषय पुस्तकों से नहीं पढ़ा जाता । इसलिये इन पुस्तकों को विद्यालय में ले जाने की आवश्यकता ही नहीं है ।  
प्राथमिक विद्यालयों में प्रथम एक भाषा होती है, क्रमशः बढ़ते-बढ़ते यह संख्या चार तक पहुँच जाती है । कई विद्यालयों में सामान्य गणित के साथ वैदिक गणित पढ़ाया जाता है। यदि चार भाषा और गणित ऐसे पांच विषय दिन की समयसारिणी में हैं तो एक साथ पांच पुस्तकें ले जानी पड़ेंगी । समयसारिणी के नियोजन से यह संख्या आधी हो सकती है ।
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** प्राथमिक विद्यालयों में प्रथम एक भाषा होती है, क्रमशः बढ़ते-बढ़ते यह संख्या चार तक पहुँच जाती है । कई विद्यालयों में सामान्य गणित के साथ वैदिक गणित पढ़ाया जाता है। यदि चार भाषा और गणित ऐसे पांच विषय दिन की समयसारिणी में हैं तो एक साथ पांच पुस्तकें ले जानी पड़ेंगी । समयसारिणी के नियोजन से यह संख्या आधी हो सकती है ।  
 
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** लेखन पुस्तिका के साथ-साथ स्वाध्याय पुस्तिका का प्रचलन भी बढ़ा है । यदि दिन की समयसारिणी में सात विषय हैं तो चौदह पुस्तिकायें ले जानी पढड़ेंगी । यह अत्याचार है । स्वाध्याय पुस्तिका अनिवार्य नहीं है। अभ्यास पुस्तिका भी नहीं । इसे कम कर देने से बोझ आधा हो जायेगा । मानसिकता तो यह बनानी चाहिये कि इन सारी पुस्तकों तथा सामग्री की अध्ययन के लिये कोई आवश्यकता ही नहीं है ।
लेखन पुस्तिका के साथ-साथ स्वाध्याय पुस्तिका का प्रचलन भी बढ़ा है । यदि दिन की समयसारिणी में सात विषय हैं तो चौदह पुस्तिकायें ले जानी पढड़ेंगी । यह अत्याचार है । स्वाध्याय पुस्तिका अनिवार्य नहीं है। अभ्यास पुस्तिका भी नहीं । इसे कम कर देने से बोझ आधा हो जायेगा । मानसिकता तो यह बनानी चाहिये कि इन सारी पुस्तकों तथा सामग्री की अध्ययन के लिये कोई आवश्यकता ही नहीं है ।
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** लेखन पुस्तिकाओं के कद और संख्या भी कम की जा सकती है ।
 
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लेखन पुस्तिकाओं के कद और संख्या भी कम की जा सकती है ।
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* विद्यार्थियों का अनवधान भी बस्ता भारी होने का बड़ा कारण होता है ।
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विद्यार्थी समयसारिणी देखते ही नहीं और जितनी पुस्तकें तथा अन्य सामग्री होती है, सारी बस्ते में भर देते हैं और उठाकर ले आते हैं। वाहन के कारण से उन्हें बहुत दूर तक उठाने की आवश्यकता भी नहीं होती है, इसलिये उन्हें चिन्ता नहीं होती ।
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इस विषय में कभी-कभी विद्यालय की समयसारिणी में भी अचानक परिवर्तन हो जाता है और विद्यार्थी नहीं लाये हैं, ऐसी सामग्री की आवश्यकता पड जाती है । तब विद्यार्थियों का मानस सबकुछ एक साथ उठा कर लाने का बन जाता है ।
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विद्यार्थियों के बस्ते में विद्यालय के कार्य से सम्बन्धित नहीं हैं, ऐसी भी चीजें होती हैं । गेंद, कंचे, सी.डी., स्टीकर, एक्टरों और क्रिकेटरों के चित्र, फिल्म की पत्रिकायें, मोबाइल आदि हम कल्पना भी न कर सकें, ऐसी वस्तुरयें वे साथ लेकर आते हैं । इन वस्तुओं के कारण भी बोझ बढ जाता है । साथ में पानी की बोतल, भोजन का डिब्बा, तौलिया, कम्पासपेटिका, चित्रपुस्तिका आदि भी बोझ बढ़ाते हैं ।
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वास्तव में बस्ते के शारीरिक बोझ की नहीं अपितु इस अव्यवस्थितता की चिन्ता करने की आवश्यकता है । शारीरिक बोझ के सम्बन्ध में तो लोग सैद्धान्तिक रूप से ही परेशान हैं । वह खास किसी को उठाना नहीं पड़ता इसलिये कोई चिन्ता भी नहीं करता । अव्यवस्थितता दूर करना मुख्य विषय है ।
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** विद्यार्थियों का अनवधान भी बस्ता भारी होने का बड़ा कारण होता है ।
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*** विद्यार्थी समयसारिणी देखते ही नहीं और जितनी पुस्तकें तथा अन्य सामग्री होती है, सारी बस्ते में भर देते हैं और उठाकर ले आते हैं। वाहन के कारण से उन्हें बहुत दूर तक उठाने की आवश्यकता भी नहीं होती है, इसलिये उन्हें चिन्ता नहीं होती ।
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*** इस विषय में कभी-कभी विद्यालय की समयसारिणी में भी अचानक परिवर्तन हो जाता है और विद्यार्थी नहीं लाये हैं, ऐसी सामग्री की आवश्यकता पड जाती है। तब विद्यार्थियों का मानस सबकुछ एक साथ उठा कर लाने का बन जाता है ।
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*** विद्यार्थियों के बस्ते में विद्यालय के कार्य से सम्बन्धित नहीं हैं, ऐसी भी चीजें होती हैं । गेंद, कंचे, सी.डी., स्टीकर, एक्टरों और क्रिकेटरों के चित्र, फिल्म की पत्रिकायें, मोबाइल आदि हम कल्पना भी न कर सकें, ऐसी वस्तुयें वे साथ लेकर आते हैं । इन वस्तुओं के कारण भी बोझ बढ जाता है । साथ में पानी की बोतल, भोजन का डिब्बा, तौलिया, कम्पासपेटिका, चित्रपुस्तिका आदि भी बोझ बढ़ाते हैं ।
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*** वास्तव में बस्ते के शारीरिक बोझ की नहीं अपितु इस अव्यवस्थितता की चिन्ता करने की आवश्यकता है । शारीरिक बोझ के सम्बन्ध में तो लोग सैद्धान्तिक रूप से ही परेशान हैं। वह खास किसी को उठाना नहीं पड़ता इसलिये कोई चिन्ता भी नहीं करत । अव्यवस्थितता दूर करना मुख्य विषय है ।
 
==== बोझ कम करने के उपाय ====
 
==== बोझ कम करने के उपाय ====
 
विद्यालय और माता-पिता को मिलकर कुछ इस प्रकार उपाय करने चाहिये
 
विद्यालय और माता-पिता को मिलकर कुछ इस प्रकार उपाय करने चाहिये
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* कौन सी सामग्री क्यों लाना है और क्यों नहीं लाना है, यह भी उचित समय पर समझाना चाहिये ।
 
* कौन सी सामग्री क्यों लाना है और क्यों नहीं लाना है, यह भी उचित समय पर समझाना चाहिये ।
 
* केवल सूचना देना पर्याप्त नहीं है । सबके पास अपनी अपनी कक्षा की समयसारिणी है कि नहीं, यह देखना चाहिये । सबके पास हो इसका आग्रह भी रखा जाना चाहिये ।
 
* केवल सूचना देना पर्याप्त नहीं है । सबके पास अपनी अपनी कक्षा की समयसारिणी है कि नहीं, यह देखना चाहिये । सबके पास हो इसका आग्रह भी रखा जाना चाहिये ।
* विद्यालय ने स्वयं एक बार अच्छी तरह से निश्चित कर लेना चाहिये कि हर कक्षा के विद्यार्थी के पास अधिक से अधिक और कम से कम कितनी सामग्री हो सकती है, उसमें से सप्ताह में कब सबसे अधिक सामग्री लाने की आवश्यकता पड़ती है और वह कितनी है । साथ ही एक साथ अधिक सामग्री न लानी पड़े इस प्रकार से नियोजन भी करना चाहिये |
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* विद्यालय को स्वयं एक बार अच्छी तरह से निश्चित कर लेना चाहिये कि हर कक्षा के विद्यार्थी के पास अधिक से अधिक और कम से कम कितनी सामग्री हो सकती है, उसमें से सप्ताह में कब सबसे अधिक सामग्री लाने की आवश्यकता पड़ती है और वह कितनी है । साथ ही एक साथ अधिक सामग्री न लानी पड़े इस प्रकार से नियोजन भी करना चाहिये |
 
* इसके बाद विद्यार्थियों को बस्ता कैसे जमाना यह भी प्रायोगिक पद्धति से सिखाना चाहिये । उत्तम पद्धति से बस्ता जमाना एक कुशलता है और सबको उसे प्राप्त करना ही चाहिये । विद्यार्थियों ने अपना बस्ता स्वयं जमाना चाहिये और स्वयं उठाना चाहिये । घर में माता-पिता ने इसका ध्यान रखना चाहिये |
 
* इसके बाद विद्यार्थियों को बस्ता कैसे जमाना यह भी प्रायोगिक पद्धति से सिखाना चाहिये । उत्तम पद्धति से बस्ता जमाना एक कुशलता है और सबको उसे प्राप्त करना ही चाहिये । विद्यार्थियों ने अपना बस्ता स्वयं जमाना चाहिये और स्वयं उठाना चाहिये । घर में माता-पिता ने इसका ध्यान रखना चाहिये |
 
* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।  
 
* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।  
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# छात्रों के लिये कौन कौन सी साधनसामग्री होती है?
 
# छात्रों के लिये कौन कौन सी साधनसामग्री होती है?
 
# इन चीजों की उपयोगिता क्या क्या है - (१) पुस्तकें (२) कापी (३) लेखनी, पेन्सिल रंगीन पेन्सिल आदि
 
# इन चीजों की उपयोगिता क्या क्या है - (१) पुस्तकें (२) कापी (३) लेखनी, पेन्सिल रंगीन पेन्सिल आदि
# कंपासपेटिक
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# कंपासपेटिका
# मार्दर्शिकायें , स्वाध्याय, पुस्तिकायें,  सहायक पुस्तिकार्यें आदि
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# मार्गदर्शिकाएं, स्वाध्याय, पुस्तिकायें,  सहायक पुस्तिकायें आदि
# यांत्रिक उपकरण यथा कैल्क्यूलेटर, संगणक,  टेपरेकोर्डर, ऑडियो, वीडियो कैसेट्स ।
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# यांत्रिक उपकरण यथा कैल्क्यूलेटर, संगणक,  टेपरिकोर्डर, ऑडियो, वीडियो कैसेट्स ।
 
# विद्यालय में लाने योग्य एवं घर में उपयोग करने योग्य कौन कौन सी सामग्री उपयोगी है, कौन सी निरुपयोगी है और कौन सी हानिकारक है ?
 
# विद्यालय में लाने योग्य एवं घर में उपयोग करने योग्य कौन कौन सी सामग्री उपयोगी है, कौन सी निरुपयोगी है और कौन सी हानिकारक है ?
 
# आर्थिक दृष्टि से साधनसामग्री के विषय में किस प्रकार से विचार करना चाहिये ?
 
# आर्थिक दृष्टि से साधनसामग्री के विषय में किस प्रकार से विचार करना चाहिये ?
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== छात्रों के लिए साधन सामग्री : प्राप्त उत्तर ==
 
== छात्रों के लिए साधन सामग्री : प्राप्त उत्तर ==
विद्यार्थियों की शिक्षण प्रक्रिया को अधिक सुलभ एवं सुस्पष्ट बनाने के लिए जो सामग्री उपयोग में ली जाती है उसे साधन-सामग्री कहते हैं ऐसी व्याख्या सबने की है । पैन पेंसिल, कॉपी, रजिस्टर, कम्पास, किताबें, एटलस, शब्दकोष आदि । इसी प्रकार यांत्रिक उपकरणों में संगणक, लेपटोप, टेब, केल्क्यूलेटर, ऑडियो-विडिओ सीडीज आदि सभी उपकरण साधन सामग्री के अन्तर्गत ही आते हैं । कौनसी आयु में कौनसी सामग्री उपयुक्त है और कौनसी हानिकारक है इसका विवेक करना आना चाहिए । दृष्टि कमजोर है तो ऐनक आवश्यक हो जाती है, लेकिन दृष्टि बिल्कुल ठीक है फिर भी केवल फेशन के लिए एनक पहना जायेगा तो निश्चित है कि यह हानि पहुँचायेगा । अतः स्तर के अनुसार साधनों का वर्गीकरण करना चाहिए :
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विद्यार्थियों की शिक्षण प्रक्रिया को अधिक सुलभ एवं सुस्पष्ट बनाने के लिए जो सामग्री उपयोग में ली जाती है उसे साधन-सामग्री कहते हैं ऐसी व्याख्या सबने की है । पैन पेंसिल, कॉपी, रजिस्टर, कम्पास, किताबें, एटलस, शब्दकोष आदि । इसी प्रकार यांत्रिक उपकरणों में संगणक, लेपटोप, टेब, केल्क्यूलेटर, ऑडियो-विडिओ सीडीज आदि सभी उपकरण साधन सामग्री के अन्तर्गत ही आते हैं । कौनसी आयु में कौनसी सामग्री उपयुक्त है और कौनसी हानिकारक है इसका विवेक करना आना चाहिए । दृष्टि कमजोर है तो ऐनक आवश्यक हो जाती है, लेकिन दृष्टि बिल्कुल ठीक है फिर भी केवल फैशन के लिए ऐनक पहना जायेगा तो निश्चित है कि यह हानि पहुँचायेगा । अतः स्तर के अनुसार साधनों का वर्गीकरण करना चाहिए :
    
==== अभिमत : ====
 
==== अभिमत : ====
धार्मिक शिक्षा पद्धति की विस्मृति के कारण प्राथमिक विद्यालयों में स्लेट पेंसिल को छोड़कर अन्य साधन-सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती यह बात हमें समझ में ही नहीं आती । इसके विपरीत विद्यालय में क्या पढ़ाया और घर पर क्या गृहकार्य किया इसकी ओर ही सारा ध्यान रहता है। अतः शिशुवाटिका से ही कॉपी- किताबों का बोझ बच्चों को सहना पड़ता है । वास्तव में अभिभावक और शिक्षक के परस्पर विश्वास और सहयोग से ही बालक की शिक्षा एवं विकास संभव होता है । स्लेट का उपयोग करके पर्यावरण की अपरिमित हानि हम रोक सकते हैं । 'शिक्षक' रूपी चेतनायुक्त मार्गदर्शक होते हुए भी विषयों की गाइडबुक उपयोग में लानी पड़े यह विपरीत विचार ही है । माध्यमिक विद्यालयों में ओडियो-वीडियों सीडीज़ कुछ मात्रा में उपयोगी होते हैं। परन्तु उसमें ज्ञानार्जन का प्रमाण कम और मनोरंजन का प्रमाण अधिक होता है । संगणक, केलक्युलेटर आदि उच्च शिक्षा में उपयोगी हो सकते हैं, अन्यत्र हानिकारक ही होते हैं । विवेक जाग्रत होने से पहले इन साधनों का उपयोग करने से विकास नहीं विनाश की ही अधिक सम्भावना है।
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धार्मिक शिक्षा पद्धति की विस्मृति के कारण प्राथमिक विद्यालयों में स्लेट पेंसिल को छोड़कर अन्य साधन-सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती यह बात हमें समझ में ही नहीं आती । इसके विपरीत विद्यालय में क्या पढ़ाया और घर पर क्या गृहकार्य किया इसकी ओर ही सारा ध्यान रहता है। अतः शिशुवाटिका से ही कॉपी- किताबों का बोझ बच्चों को सहना पड़ता है । वास्तव में अभिभावक और शिक्षक के परस्पर विश्वास और सहयोग से ही बालक की शिक्षा एवं विकास संभव होता है । स्लेट का उपयोग करके पर्यावरण की अपरिमित हानि हम रोक सकते हैं । 'शिक्षक' रूपी चेतनायुक्त मार्गदर्शक होते हुए भी विषयों की गाइडबुक उपयोग में लानी पड़े यह विपरीत विचार ही है । माध्यमिक विद्यालयों में ओडियो-वीडियों सीडीज़ कुछ मात्रा में उपयोगी होते हैं। परन्तु उसमें ज्ञानार्जन का प्रमाण कम और मनोरंजन का प्रमाण अधिक होता है । संगणक, केलक्युलेटर आदि उच्च शिक्षा में उपयोगी हो सकते हैं, अन्यत्र हानिकारक ही होते हैं । विवेक जाग्रत होने से पहले इन साधनों का उपयोग करने से विकास नहीं विनाश की ही अधिक सम्भावना है।
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इसका अर्थ यह नहीं है कि धार्मिक शिक्षा पद्धति में शैक्षिक साधन-सामग्री के लिए कोई स्थान ही नहीं है । स्थान है, परन्तु वह विषय सापेक्ष है । यथा संगीत सीखना है तो तानपुरा, हार्मानियम, तबला आवश्यक है । जबकि निर्स्थक साधन-सामग्री का उपयोग वर्जित है। होना तो यह चाहिए कि ईश्वर प्रदत्त साधन ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्ट्रियों का विकास करें, उन्हें सक्षम बनायें और उपकरणों का उपयोग कम से कम करें । यही श्रेष्ठ धार्मिक विचार है । महँगे साधनों का उपयोग करके ही हमने शिक्षा को महँगी बना दी है । विद्यालय आरम्भ होने से पहले ही कॉपी-किताब, बस्ता, गणवेश आदि साधन-सामग्री का व्यवसाय आरम्भ हो जाता है और लाखों रूपयों का व्यवहार होता है । कुछ भी हो यह अनुभव सिद्ध है कि साधन-सामग्री कभी भी शिक्षक का विकल्प नहीं बन सकती ।
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इसका अर्थ यह नहीं है कि धार्मिक शिक्षा पद्धति में शैक्षिक साधन-सामग्री के लिए कोई स्थान ही नहीं है । स्थान है, परन्तु वह विषय सापेक्ष है । यथा संगीत सीखना है तो तानपुरा, हार्मानियम, तबला आवश्यक है । जबकि निरर्थक साधन-सामग्री का उपयोग वर्जित है। होना तो यह चाहिए कि ईश्वर प्रदत्त साधन ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों  का विकास करें, उन्हें सक्षम बनायें और उपकरणों का उपयोग कम से कम करें । यही श्रेष्ठ धार्मिक विचार है । महँगे साधनों का उपयोग करके ही हमने शिक्षा को महँगी बना दी है । विद्यालय आरम्भ होने से पहले ही कॉपी-किताब, बस्ता, गणवेश आदि साधन-सामग्री का व्यवसाय आरम्भ हो जाता है और लाखों रूपयों का व्यवहार होता है। कुछ भी हो यह अनुभव सिद्ध है कि साधन-सामग्री कभी भी शिक्षक का विकल्प नहीं बन सकती ।
    
==== शिक्षक द्वारा प्रयुक्त साधन-सामग्री : प्राप्त उत्तर ====
 
==== शिक्षक द्वारा प्रयुक्त साधन-सामग्री : प्राप्त उत्तर ====

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