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=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए।वास्तव में विद्यालय मे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में आचार्य और छात्रो के मध्य आंतरक्रिया चलती है; अतः इन दोनो का ही विद्यालय होता है। प्रबंध समिती, शासन, प्रधानाचार्य अन्य कर्मचारी अभिभावक ये पाँच घटक पूरक बनना चाहिये।विद्यालय का परिचय गुरु के ही नाम से होता है ऐसी परंपरा भारत मे रही है। वसिष्ठ, सांदिपनी, द्रोणाचार्य इनके गुरुकुल उनके ही नाम से पहचाने जाते थे। टैगोर जी का शान्तिनिकेतन, तिलक जी का न्यूइंग्लिश स्कूल, गांधीजी का बुनियादी विद्यालय रहा है। इसलिए आचार्य और छात्र दोनों का ही विद्यालय अभिप्रेत है।
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इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए।वास्तव में विद्यालय मे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में आचार्य और छात्रो के मध्य आंतरक्रिया चलती है; अतः इन दोनो का ही विद्यालय होता है। प्रबंध समिती, शासन, प्रधानाचार्य अन्य कर्मचारी अभिभावक ये पाँच घटक पूरक बनना चाहिये।विद्यालय का परिचय गुरु के ही नाम से होता है ऐसी परंपरा भारत मे रही है। वसिष्ठ, सांदिपनी, द्रोणाचार्य इनके गुरुकुल उनके ही नाम से पहचाने जाते थे। टैगोर जी का शान्तिनिकेतन, तिलक जी का न्यूइंग्लिश स्कूल, गांधीजी का बुनियादी विद्यालय रहा है। अतः आचार्य और छात्र दोनों का ही विद्यालय अभिप्रेत है।
    
प्रबंध समिति भवन आदि व्यवस्था करे। आज शासन अनुदान द्वारा आचार्यों की वेतनपूर्ति, प्रधानाचार्य आचार्यों को शैक्षिक मार्गदर्शन, अन्य कर्मचारी प्रशासकीय व्यवस्थाएँ सम्भालना, अभिभावक विद्यालय की आपूर्ति करना, इसमे सहायक बने। परंतु आज प्रबंधन समिति एवं शासन अपना अधिकार जमाने का कार्य करते है। इन सब घटकों का व्यवहारिक स्वरूप के संदर्भ मे प्रबंध समिति एवं शासन विद्यालय के संरक्षक प्रधानाचार्य आचार्य एवं कर्मचारियों के मार्गदर्शक तथा शासन प्रबंध समिती और विद्यालय के मध्य सेतू के रूप में कार्य करे, अभिभावक का आचार्यों के साथ आत्मीय सबंध हो। विद्यालय मे श्रद्धा हो ऐसा मत प्रकट हुआ।
 
प्रबंध समिति भवन आदि व्यवस्था करे। आज शासन अनुदान द्वारा आचार्यों की वेतनपूर्ति, प्रधानाचार्य आचार्यों को शैक्षिक मार्गदर्शन, अन्य कर्मचारी प्रशासकीय व्यवस्थाएँ सम्भालना, अभिभावक विद्यालय की आपूर्ति करना, इसमे सहायक बने। परंतु आज प्रबंधन समिति एवं शासन अपना अधिकार जमाने का कार्य करते है। इन सब घटकों का व्यवहारिक स्वरूप के संदर्भ मे प्रबंध समिति एवं शासन विद्यालय के संरक्षक प्रधानाचार्य आचार्य एवं कर्मचारियों के मार्गदर्शक तथा शासन प्रबंध समिती और विद्यालय के मध्य सेतू के रूप में कार्य करे, अभिभावक का आचार्यों के साथ आत्मीय सबंध हो। विद्यालय मे श्रद्धा हो ऐसा मत प्रकट हुआ।
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==== विद्यालय साधनास्थली है ====
 
==== विद्यालय साधनास्थली है ====
विद्यालय शिक्षक एवं छात्रो की साधनास्थली है। तपस्थली है। अतः वह पवित्र स्थान है। जहाँ छात्र का शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास होता है वह गौरवप्राप्त विद्यालय होता है। पर्यावरण, स्वच्छता, अन्याय का प्रतिकार करना इस प्रकार समाज को सुल्यवस्थित रखनेवाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जिसका सक्रीय सहयोग हो वह प्रतिष्ठित विद्यालय है । विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र है इसलिए समाज को मार्गदर्शन करना उसका दायित्व बनता है। हिन्दुत्व का दूष्टीकोन एवं हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह रखनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होता है।
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विद्यालय शिक्षक एवं छात्रो की साधनास्थली है। तपस्थली है। अतः वह पवित्र स्थान है। जहाँ छात्र का शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास होता है वह गौरवप्राप्त विद्यालय होता है। पर्यावरण, स्वच्छता, अन्याय का प्रतिकार करना इस प्रकार समाज को सुल्यवस्थित रखनेवाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जिसका सक्रीय सहयोग हो वह प्रतिष्ठित विद्यालय है । विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र है अतः समाज को मार्गदर्शन करना उसका दायित्व बनता है। हिन्दुत्व का दूष्टीकोन एवं हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह रखनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होता है।
    
परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है। अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है। प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है। प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है। बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है। अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है। ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना धार्मिक शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है।
 
परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है। अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है। प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है। प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है। बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है। अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है। ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना धार्मिक शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है।

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