− | आज विद्यालय एवं परिवार में जैसे संबंध होते हैं उसी के आधार पर जवाब मिले । छात्र का विकास विद्यालय एवं घर दोनों मे होता है। दोनों की भूमिका जब कि भिन्न हैं। घर संस्कार केन्द्र और विद्यालय बालक का ज्ञानकेन्द्र होता है। ऐसी भूमिका जब दोनों के मन में होती है तब छात्र का समग्र विकास सहजता से होता है यह धार्मिक सोच है । इसलिए विद्यालय और परिवार के संबंध घनिष्ठ एवं आत्मीय होने चाहिये । बिना कहे परिवार ने विद्यालय की आवश्यकताएं जानना एवं उनकी पूर्तता करना । और विद्यालय ने परिवार को योग्य मार्गदर्शन करना । शिक्षक परिवार के एवं बालक के गुरु हैं और परिवार, समाज अपना अन्नदाता है यह भावना होनी चाहिये । फिर आपस मे विश्वास और सामंजस्य निर्माण होगा, सहयोग वृत्ति निर्माण होगी । अभिभावकों ने केवल बालक का शैक्षिक विकास देखने हेतु विद्यालय को भेंट देना अधूरा होगा, उसके साथ बालक की मानसिकता, चरित्र के संबंध में चर्चा विमर्श करना होगा । अभिभावक अपनी गायनवादन कला, लेखनकला का बिनामूल्य सहयोग करे, अपना पद, अधिकार व्यवसाय से विद्यालय संचालन में सहयोगी बने । कभी शिक्षकों की अनुपस्थिति में योग्य अभिभावक कक्षा भी ले सकते हैं । अपने सुलेख का उपयोग विद्यालय के कार्यालयीन कामों में अथवा छात्रों को व्यक्तिगत रूप से सेवा के रूप में सहायता कर सकते हैं । विद्यालय ने भी गणवेश सिलाना होता हैं । सिलाई के लिए अपने दर्जी अभिभावक, फर्निचर के लिये सुथार, भवन निर्माण के लिये बिल्डर अभिभावकों का उपयोग कर उन्हें रोजगार देना चाहिये । बाहर की एजन्सी को दूर रखे तब आत्मीयता एवं मित्रता प्रस्थापित होगी । | + | आज विद्यालय एवं परिवार में जैसे संबंध होते हैं उसी के आधार पर जवाब मिले । छात्र का विकास विद्यालय एवं घर दोनों मे होता है। दोनों की भूमिका जब कि भिन्न हैं। घर संस्कार केन्द्र और विद्यालय बालक का ज्ञानकेन्द्र होता है। ऐसी भूमिका जब दोनों के मन में होती है तब छात्र का समग्र विकास सहजता से होता है यह धार्मिक सोच है । अतः विद्यालय और परिवार के संबंध घनिष्ठ एवं आत्मीय होने चाहिये । बिना कहे परिवार ने विद्यालय की आवश्यकताएं जानना एवं उनकी पूर्तता करना । और विद्यालय ने परिवार को योग्य मार्गदर्शन करना । शिक्षक परिवार के एवं बालक के गुरु हैं और परिवार, समाज अपना अन्नदाता है यह भावना होनी चाहिये । फिर आपस मे विश्वास और सामंजस्य निर्माण होगा, सहयोग वृत्ति निर्माण होगी । अभिभावकों ने केवल बालक का शैक्षिक विकास देखने हेतु विद्यालय को भेंट देना अधूरा होगा, उसके साथ बालक की मानसिकता, चरित्र के संबंध में चर्चा विमर्श करना होगा । अभिभावक अपनी गायनवादन कला, लेखनकला का बिनामूल्य सहयोग करे, अपना पद, अधिकार व्यवसाय से विद्यालय संचालन में सहयोगी बने । कभी शिक्षकों की अनुपस्थिति में योग्य अभिभावक कक्षा भी ले सकते हैं । अपने सुलेख का उपयोग विद्यालय के कार्यालयीन कामों में अथवा छात्रों को व्यक्तिगत रूप से सेवा के रूप में सहायता कर सकते हैं । विद्यालय ने भी गणवेश सिलाना होता हैं । सिलाई के लिए अपने दर्जी अभिभावक, फर्निचर के लिये सुथार, भवन निर्माण के लिये बिल्डर अभिभावकों का उपयोग कर उन्हें रोजगार देना चाहिये । बाहर की एजन्सी को दूर रखे तब आत्मीयता एवं मित्रता प्रस्थापित होगी । |
| शिक्षक अभिभावक आपस में आशंका से नहीं अपितु परस्पर पूरक एवं विश्वासु मित्र बनेंगे तो छात्रो का भी हित होगा । आज अभिभावक विद्यालय की कहाँ कमी दिखाई देती है इस तरफ नजर रखते हैं और विद्यालय उन्हें एक आर्थिक स्रोत के रूप में उनका शोषण करते हुए दिखाई देते है । विद्यालय का चयन करते समय आज अभिभावक जहाँ अच्छे संस्कार मिलते है, जहाँ सब प्रकार के उत्सव त्योहार मनाये जाते हैं, जहाँ बहुत सुखसुविधायें बालक को प्राप्त होती हैं वहाँ एडमिशन दिलवाना ऐसा विचार करते हैं । विद्यालय भी अभिभावकों ने बच्चों की पढ़ाई में ध्यान देना, घरों में उत्सव पर्व नहीं मनाये जाते इसलिये संस्कार होने हेतु विद्यालय में करना ऐसा विचार रखते हैं, बिल्कुल इससे उल्टा विद्यालय ने शिक्षा की ओर घरों ने संस्कारों की जिम्मेदारी लेकर करना चाहिये । यह धार्मिक विचार है। | | शिक्षक अभिभावक आपस में आशंका से नहीं अपितु परस्पर पूरक एवं विश्वासु मित्र बनेंगे तो छात्रो का भी हित होगा । आज अभिभावक विद्यालय की कहाँ कमी दिखाई देती है इस तरफ नजर रखते हैं और विद्यालय उन्हें एक आर्थिक स्रोत के रूप में उनका शोषण करते हुए दिखाई देते है । विद्यालय का चयन करते समय आज अभिभावक जहाँ अच्छे संस्कार मिलते है, जहाँ सब प्रकार के उत्सव त्योहार मनाये जाते हैं, जहाँ बहुत सुखसुविधायें बालक को प्राप्त होती हैं वहाँ एडमिशन दिलवाना ऐसा विचार करते हैं । विद्यालय भी अभिभावकों ने बच्चों की पढ़ाई में ध्यान देना, घरों में उत्सव पर्व नहीं मनाये जाते इसलिये संस्कार होने हेतु विद्यालय में करना ऐसा विचार रखते हैं, बिल्कुल इससे उल्टा विद्यालय ने शिक्षा की ओर घरों ने संस्कारों की जिम्मेदारी लेकर करना चाहिये । यह धार्मिक विचार है। |