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<li>धार्मिक (धार्मिक) समाज में गृहस्थ के लिये तीन बातें आवश्यक मानीं गईं हैं: पहली बात यह है कि वह केवल धर्म की कमाई करे, दूसरे व्यय भी धर्मानुसार ही करे और तीसरे आवश्यकता से अतिरिक्त कमाई यथासंभव अधिक से अधिक दान में दे।  
 
<li>धार्मिक (धार्मिक) समाज में गृहस्थ के लिये तीन बातें आवश्यक मानीं गईं हैं: पहली बात यह है कि वह केवल धर्म की कमाई करे, दूसरे व्यय भी धर्मानुसार ही करे और तीसरे आवश्यकता से अतिरिक्त कमाई यथासंभव अधिक से अधिक दान में दे।  
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<li>सुख और सुविधा में अंतर होता है। सुविधा से सुख बढेगा यह आवश्यक नहीं है। जब सुविधा मानव को पंगु बना देती है, उसकी स्वाभाविक क्षमताओं को कुंठित कर देती है या स्वाभाविक क्षमताओं का क्षरण करती है तब वह दुख का कारण बनती है। इसलिये कितना सुविधाभोगी बनना यह विवेक महत्वपूर्ण है। सुविधाओं के विकास में दो बातें ध्यान में रखना चाहिये। पहली यह कि सुविधा अक्षम लोगों की मदद के लिये होती है। दूसरी बात यह है कि उससे मानव की प्राकृतिक क्षमताओं में और सामाजिकता यानी पारिवारिक भावना और व्यवहार में वृध्दि हो। कम से कम हानि तो नहीं हो।  
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<li>सुख और सुविधा में अंतर होता है। सुविधा से सुख बढेगा यह आवश्यक नहीं है। जब सुविधा मानव को पंगु बना देती है, उसकी स्वाभाविक क्षमताओं को कुंठित कर देती है या स्वाभाविक क्षमताओं का क्षरण करती है तब वह दुख का कारण बनती है। इसलिये कितना सुविधाभोगी बनना यह विवेक महत्वपूर्ण है। सुविधाओं के विकास में दो बातें ध्यान में रखना चाहिये। पहली यह कि सुविधा अक्षम लोगों की सहायता के लिये होती है। दूसरी बात यह है कि उससे मानव की प्राकृतिक क्षमताओं में और सामाजिकता यानी पारिवारिक भावना और व्यवहार में वृध्दि हो। कम से कम हानि तो नहीं हो।  
    
<li>कोई भी वस्तु खरीदते समय उस वस्तु की पर्यावरण सुसंगतता, सामाजिकता से सुसंगतता, उपयोगिता, सौंदर्यबोध और सबसे अंत में उसकी कीमत को महत्व देना चाहिये।  
 
<li>कोई भी वस्तु खरीदते समय उस वस्तु की पर्यावरण सुसंगतता, सामाजिकता से सुसंगतता, उपयोगिता, सौंदर्यबोध और सबसे अंत में उसकी कीमत को महत्व देना चाहिये।  
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१२-१३ वर्ष की अर्थात् माहवारी आरम्भ होने की आयु में स्त्री के शरीर में इस्ट्रोजन का प्रमाण और इस कारण प्रभाव बढ जाता है। यह स्त्री में लैंगिक आकर्षण निर्माण करता है। माहवारी के काल में स्त्री के अंत:स्त्रावों के असंतुलन के कारण स्त्री का स्वभाव चिडचिडा बन जाता है। पुरूषों में यह आयु १५-१६ वर्ष की होती है। इस आयु में पुरूषों में टेस्टोस्टेरॉन का प्रमाण बढता है। उस के स्नायू कठोर बनने लगते है। वह मदमस्त बन किसी को टकराने की इच्छा करने लगता है। आजकल लैंगिक  स्वैराचार और खुलापन बढ़ने से यह आयु कम हो रही है।
 
१२-१३ वर्ष की अर्थात् माहवारी आरम्भ होने की आयु में स्त्री के शरीर में इस्ट्रोजन का प्रमाण और इस कारण प्रभाव बढ जाता है। यह स्त्री में लैंगिक आकर्षण निर्माण करता है। माहवारी के काल में स्त्री के अंत:स्त्रावों के असंतुलन के कारण स्त्री का स्वभाव चिडचिडा बन जाता है। पुरूषों में यह आयु १५-१६ वर्ष की होती है। इस आयु में पुरूषों में टेस्टोस्टेरॉन का प्रमाण बढता है। उस के स्नायू कठोर बनने लगते है। वह मदमस्त बन किसी को टकराने की इच्छा करने लगता है। आजकल लैंगिक  स्वैराचार और खुलापन बढ़ने से यह आयु कम हो रही है।
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गर्भ धारणा से लेकर संतान के पाँच वर्ष का होने तक के लिये स्त्री को किसी अन्य की मदद की आवश्यकता होती है। स्त्री में काम वासना से वात्सल्य की भावना अधिक प्रबल होती है। इसीलिये कहा गया है कि स्त्री क्षण काल की पत्नि और अनंत काल की माता होती है।
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गर्भ धारणा से लेकर संतान के पाँच वर्ष का होने तक के लिये स्त्री को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता होती है। स्त्री में काम वासना से वात्सल्य की भावना अधिक प्रबल होती है। इसीलिये कहा गया है कि स्त्री क्षण काल की पत्नि और अनंत काल की माता होती है।
    
स्त्री का स्वभाव बचत का होता है। उस के लिये प्रतिष्ठा से बचत का मूल्य अधिक होता है। इस लिये वह नि:संकोच होकर बीच बाजार में भी रुपये दो रुपयों के लिये भाव ताव करती दिखाई देती है।
 
स्त्री का स्वभाव बचत का होता है। उस के लिये प्रतिष्ठा से बचत का मूल्य अधिक होता है। इस लिये वह नि:संकोच होकर बीच बाजार में भी रुपये दो रुपयों के लिये भाव ताव करती दिखाई देती है।

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