Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "इसलिए" to "अतः"
Line 33: Line 33:  
किंतु मनुष्य का ऐसा नहीं है। वह पशु से अधिक बुद्धि रखता है। विचार करने वाला मन रखता है। इस लिये वह प्रयास करता है कि प्राणिक आवेगों की पूर्ति की व्यवस्था निरंतर बनीं रहे। पशु जैसा ही मनुष्य भी अपने आवेगों की पूर्ति में आने वाले किसी अवरोध को पसंद नहीं करता। बुद्धि के कारण वह अपने मृत्यू के या अभाव के 'भय' के आवेग से बचने के लिये आवेगों की पूर्ति होती रहे इस की व्यवस्था करता है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो, यहाँ तक अपने विषय में जैसे पशु सोचता है वैसा सोचना यह तो मनुष्य के लिये भी स्वाभाविक ही है। किंतु जब वह आवश्यकताओं से अधिक का संचय और अन्यों की आवश्यकताओं पर अतिक्रमण करता है तो वह विरोध, संघर्ष आदि निर्माण करता है। इस तरह अपने काम यानी इच्छाओं के और मोह के प्रभाव में जब वह होता है तो समाज की शांति का भंग होता है। जब समाज में जिनका काम और मोह नियंत्रण में नहीं है ऐसे लोगों की बहुलता हो जाती है तो समाज में अराजक हो गया माना जाता है। काम और मोह ये मन की भावनाएँ होतीं हैं। काम और मोह को नियंत्रण में रखना सिखाने को ही 'शिक्षा' कहते हैं।  
 
किंतु मनुष्य का ऐसा नहीं है। वह पशु से अधिक बुद्धि रखता है। विचार करने वाला मन रखता है। इस लिये वह प्रयास करता है कि प्राणिक आवेगों की पूर्ति की व्यवस्था निरंतर बनीं रहे। पशु जैसा ही मनुष्य भी अपने आवेगों की पूर्ति में आने वाले किसी अवरोध को पसंद नहीं करता। बुद्धि के कारण वह अपने मृत्यू के या अभाव के 'भय' के आवेग से बचने के लिये आवेगों की पूर्ति होती रहे इस की व्यवस्था करता है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो, यहाँ तक अपने विषय में जैसे पशु सोचता है वैसा सोचना यह तो मनुष्य के लिये भी स्वाभाविक ही है। किंतु जब वह आवश्यकताओं से अधिक का संचय और अन्यों की आवश्यकताओं पर अतिक्रमण करता है तो वह विरोध, संघर्ष आदि निर्माण करता है। इस तरह अपने काम यानी इच्छाओं के और मोह के प्रभाव में जब वह होता है तो समाज की शांति का भंग होता है। जब समाज में जिनका काम और मोह नियंत्रण में नहीं है ऐसे लोगों की बहुलता हो जाती है तो समाज में अराजक हो गया माना जाता है। काम और मोह ये मन की भावनाएँ होतीं हैं। काम और मोह को नियंत्रण में रखना सिखाने को ही 'शिक्षा' कहते हैं।  
   −
स्वहित या स्वार्थ साधने के लिए स्वतन्त्रता आवश्यक होती है। काम और मोह अनियंत्रित हो जाने के कारण मनुष्य अपनी स्वतन्त्रता के लिए अन्यों के हित का हनन करने लग जाता है। इससे समाज नष्ट न हो इस हेतु से सदाचार सिखाया जाता है। सदाचार के लिए सहानुभूति आवश्यक होती है। सहानुभूति का अर्थ है अन्यों की स्वतन्त्रता की रक्षा करना। मनुष्य न केवल स्वतन्त्रता से और न ही केवल सदाचार से जी सकता है। इसलिए व्यवस्था की आवश्यकता होती है। इसलिए व्यवस्था धर्म अनुपालन का साधन है।   
+
स्वहित या स्वार्थ साधने के लिए स्वतन्त्रता आवश्यक होती है। काम और मोह अनियंत्रित हो जाने के कारण मनुष्य अपनी स्वतन्त्रता के लिए अन्यों के हित का हनन करने लग जाता है। इससे समाज नष्ट न हो इस हेतु से सदाचार सिखाया जाता है। सदाचार के लिए सहानुभूति आवश्यक होती है। सहानुभूति का अर्थ है अन्यों की स्वतन्त्रता की रक्षा करना। मनुष्य न केवल स्वतन्त्रता से और न ही केवल सदाचार से जी सकता है। अतः व्यवस्था की आवश्यकता होती है। अतः व्यवस्था धर्म अनुपालन का साधन है।   
    
अराजक दूर करने के लिये 'राज्य' की आवश्यकता होती है। इस लिये राज्य व्यवस्था का कर्तव्य जनता में बढते काम और लोभ को नियंत्रण में रखने का होता है। जिन का काम और मोह नियंत्रण में नहीं है ऐसे बलवान और स्वार्थी लोगों से सज्जन और दुर्बलों को बचाने का होता है।  
 
अराजक दूर करने के लिये 'राज्य' की आवश्यकता होती है। इस लिये राज्य व्यवस्था का कर्तव्य जनता में बढते काम और लोभ को नियंत्रण में रखने का होता है। जिन का काम और मोह नियंत्रण में नहीं है ऐसे बलवान और स्वार्थी लोगों से सज्जन और दुर्बलों को बचाने का होता है।  

Navigation menu