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# योग द्वारा शरीर, प्राण, मन, बुद्धि एवं चित्त ऐसे पाँचों स्तर का विकास करना <ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका :अध्याय १, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
# योग द्वारा शरीर, प्राण, मन, बुद्धि एवं चित्त ऐसे पाँचों स्तर का विकास करना <ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका :अध्याय १, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
</ref>। अर्थात् शरीर सुदृढ एवं स्वस्थ करना । चेतातंत्र शुद्ध करना, प्राणों मे संतुलन और लय को बनाना, मन की एकाग्रता को बढाना, बुद्धि विवेकशील बनाना एवं चित्त शुद्ध बनाना । शरीर, प्राण, मन, बुद्धी चित्त मे सुसंगती तथा परस्पर पोषकत्व स्थापित करना ।  
 
</ref>। अर्थात् शरीर सुदृढ एवं स्वस्थ करना । चेतातंत्र शुद्ध करना, प्राणों मे संतुलन और लय को बनाना, मन की एकाग्रता को बढाना, बुद्धि विवेकशील बनाना एवं चित्त शुद्ध बनाना । शरीर, प्राण, मन, बुद्धी चित्त मे सुसंगती तथा परस्पर पोषकत्व स्थापित करना ।  
# वर्तमान समय में सारा संसार योग के महत्व का स्वीकार कर रहा है। योग मूलतः भारत की ही विद्या है। इसलिए योग को विद्यालय के शिक्षणक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग बनना ।  
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# वर्तमान समय में सारा संसार योग के महत्व का स्वीकार कर रहा है। योग मूलतः भारत की ही विद्या है। अतः योग को विद्यालय के शिक्षणक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग बनना ।  
 
# योग शारीरिक शिक्षण का भाग नहीं है। उसका संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य या भौतिक विज्ञान के साथ ही नहीं है अपितु सभी विषयों के साथ है। योग एक संपूर्ण जीवन, विज्ञान, एवं संपूर्ण शास्त्र है। इस दृष्टिकोण का भी विद्यालयों के योग अभ्यासक्रम में अंतर्भाव करना।  
 
# योग शारीरिक शिक्षण का भाग नहीं है। उसका संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य या भौतिक विज्ञान के साथ ही नहीं है अपितु सभी विषयों के साथ है। योग एक संपूर्ण जीवन, विज्ञान, एवं संपूर्ण शास्त्र है। इस दृष्टिकोण का भी विद्यालयों के योग अभ्यासक्रम में अंतर्भाव करना।  
 
# योग से एक जीवनदृष्टि प्राप्त होती है। यह जीवनदृष्टि आदिकाल से भारत में स्वीकृत है। यही जीवनदृष्टि एवं इससे रचित जीवन व्यवहार के कारण ही भारत का अस्तित्व युगों से प्रवाही रूप मे टिका हुआ है। यह जीवनदृष्टि हमारे छात्रों को प्राप्त हो एवं उनकी जीवनरचना भी उस तरह की बने ।   
 
# योग से एक जीवनदृष्टि प्राप्त होती है। यह जीवनदृष्टि आदिकाल से भारत में स्वीकृत है। यही जीवनदृष्टि एवं इससे रचित जीवन व्यवहार के कारण ही भारत का अस्तित्व युगों से प्रवाही रूप मे टिका हुआ है। यह जीवनदृष्टि हमारे छात्रों को प्राप्त हो एवं उनकी जीवनरचना भी उस तरह की बने ।   
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== आलंबन ==
 
== आलंबन ==
 
# योग प्रदर्शन, सूचना या मूल्यांकन का विषय नहीं है। वह तो व्यवस्था, वातावरण, व्यवहार एवं भावना इत्यादि से संबंधित है।  
 
# योग प्रदर्शन, सूचना या मूल्यांकन का विषय नहीं है। वह तो व्यवस्था, वातावरण, व्यवहार एवं भावना इत्यादि से संबंधित है।  
# योग अभ्यास का विषय है। इसलिए अधिक सीखने के स्थान पर अधिक अभ्यास के स्वरूप में होना चाहिए।  
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# योग अभ्यास का विषय है। अतः अधिक सीखने के स्थान पर अधिक अभ्यास के स्वरूप में होना चाहिए।  
# योग अनेक नामों से पहचाना जाता है। जैसे हटयोग, कर्मयोग, प्रेमयोग, ज्ञानयोग,  भक्तियोग, इत्यादि। जिसे हम योगदर्शन कहते हैं वह है - राजयोग या पातंजल योग। इसलिए पातंजल योगसूत्र इसका मुख्य आधार है।  
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# योग अनेक नामों से पहचाना जाता है। जैसे हटयोग, कर्मयोग, प्रेमयोग, ज्ञानयोग,  भक्तियोग, इत्यादि। जिसे हम योगदर्शन कहते हैं वह है - राजयोग या पातंजल योग। अतः पातंजल योगसूत्र इसका मुख्य आधार है।  
# योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। इनमें यम, नियम आगे आनेवाले अभ्यास की आधारभूमि व संदर्भ बिन्दु निश्चित करते हैं। ये जीवनदृष्टि के विकास के मूल आधार हैं। इसलिए इन दोनों का सर्वाधिक महत्व है। शेष अंगों का गंभीर अभ्यास कम से कम बारह वर्ष की आयु के बाद ही हो सकता है। इसलिए यहाँ इन सभी अंगों की योग्य पूर्वतैयारी को ही महत्व दिया गया है।  
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# योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। इनमें यम, नियम आगे आनेवाले अभ्यास की आधारभूमि व संदर्भ बिन्दु निश्चित करते हैं। ये जीवनदृष्टि के विकास के मूल आधार हैं। अतः इन दोनों का सर्वाधिक महत्व है। शेष अंगों का गंभीर अभ्यास कम से कम बारह वर्ष की आयु के बाद ही हो सकता है। अतः यहाँ इन सभी अंगों की योग्य पूर्वतैयारी को ही महत्व दिया गया है।  
 
# पातंजल योग को आधार बनाकर योग के अन्य प्रकारों को भी सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है; क्योंकि जीवनव्यवहार में उनका भी महत्वपूर्ण स्थान है।  
 
# पातंजल योग को आधार बनाकर योग के अन्य प्रकारों को भी सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है; क्योंकि जीवनव्यवहार में उनका भी महत्वपूर्ण स्थान है।  
 
# इस समन्वित दृष्टि से सोचकर योग का कक्षा १, २ के लिए इस प्रकार से पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।  
 
# इस समन्वित दृष्टि से सोचकर योग का कक्षा १, २ के लिए इस प्रकार से पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।  
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=== श्वसन ===
 
=== श्वसन ===
यह प्राणायाम की पूर्व तैयारी है। श्वसन मानव के पूर्ण जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए श्वसन योग्य रूप से ठीक तरह से हो इस तरह श्वासप्रश्वास की आदत डालनी चाहिए। इस दृष्टि से निम्न बातें सीखना आवश्यक है:  
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यह प्राणायाम की पूर्व तैयारी है। श्वसन मानव के पूर्ण जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। अतः श्वसन योग्य रूप से ठीक तरह से हो इस तरह श्वासप्रश्वास की आदत डालनी चाहिए। इस दृष्टि से निम्न बातें सीखना आवश्यक है:  
 
# दीर्घश्वसन,  
 
# दीर्घश्वसन,  
 
# श्वास बाहर निकालना,   
 
# श्वास बाहर निकालना,   
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=== स्तोत्र या स्तुति ===
 
=== स्तोत्र या स्तुति ===
प्रार्थना, कीर्तन, भावना इत्यादि को स्तोत्र के रूप में गाया जा सकता है । ऐसे अनेक स्तोत्र भारत की सभी भाषाओं में सर्वत्र प्रचलित हैं। जनसमाज में उनका विशिष्ट स्थान है। इसलिए छात्रों को इनका परिचय भी होना चाहिए। सीखने योग्य स्तोत्रों की सूची स्वतंत्र पुस्तिका में दी गई है।  
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प्रार्थना, कीर्तन, भावना इत्यादि को स्तोत्र के रूप में गाया जा सकता है । ऐसे अनेक स्तोत्र भारत की सभी भाषाओं में सर्वत्र प्रचलित हैं। जनसमाज में उनका विशिष्ट स्थान है। अतः छात्रों को इनका परिचय भी होना चाहिए। सीखने योग्य स्तोत्रों की सूची स्वतंत्र पुस्तिका में दी गई है।  
    
=== आसन ===
 
=== आसन ===
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# माला जपते समय उसे ढंककर रखें। (सीखते समय खुली रखें)
 
# माला जपते समय उसे ढंककर रखें। (सीखते समय खुली रखें)
 
# प्रारंभ में माला छोटी लें एवं एक ही माला जपें। प्रथम ११ मनकोंवाली, फिर ५१ मनकोंवाली एवं उसके बाद १०८ मनकों की माला जपें। संपूर्ण माला १०८ मनकों की होती हैं।
 
# प्रारंभ में माला छोटी लें एवं एक ही माला जपें। प्रथम ११ मनकोंवाली, फिर ५१ मनकोंवाली एवं उसके बाद १०८ मनकों की माला जपें। संपूर्ण माला १०८ मनकों की होती हैं।
# एक साथ संपूर्ण माला जपी जा सके इसलिए छोटी माला ही चुनें। बड़ी माला लेकर जप अधूरा न छोड़ें।
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# एक साथ संपूर्ण माला जपी जा सके अतः छोटी माला ही चुनें। बड़ी माला लेकर जप अधूरा न छोड़ें।
 
# मंत्र जब तक याद न हो जाए तबतक जोर से बोलकर जपें। इसके बाद बिना आवाज किए जप करें।
 
# मंत्र जब तक याद न हो जाए तबतक जोर से बोलकर जपें। इसके बाद बिना आवाज किए जप करें।
 
# मंत्र शांति से बोलें, उतावली न करें।
 
# मंत्र शांति से बोलें, उतावली न करें।
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==== ध्यान में लेने योग्य बातें ====
 
==== ध्यान में लेने योग्य बातें ====
# सेवा केवल कहने या सूचना देने की बात नहीं है अपितु करने की बात है। करने के साथ ही वह भावना का विषय है। इसलिए भावना जागृत करने का प्रयास करना चाहिए।
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# सेवा केवल कहने या सूचना देने की बात नहीं है अपितु करने की बात है। करने के साथ ही वह भावना का विषय है। अतः भावना जागृत करने का प्रयास करना चाहिए।
 
# इनमें से आधे से अधिक बातें तो घर में ही करने योग्य हैं। विद्यालय में इन्हें सिखाकर घर में करने की प्रेरणा देना चाहिए। इसके विषय में बारबार प्रश्न पूछे जाने चाहिए। मातापिता के साथ इस विषय में वार्तालाप करना चाहिए एवं मातापिता इन सभी कार्यों को घर में बच्चों से करवाएँ, ऐसा आग्रह करना।
 
# इनमें से आधे से अधिक बातें तो घर में ही करने योग्य हैं। विद्यालय में इन्हें सिखाकर घर में करने की प्रेरणा देना चाहिए। इसके विषय में बारबार प्रश्न पूछे जाने चाहिए। मातापिता के साथ इस विषय में वार्तालाप करना चाहिए एवं मातापिता इन सभी कार्यों को घर में बच्चों से करवाएँ, ऐसा आग्रह करना।
# सेवा से ही चित्तशुद्धि होती है। सेवा से ही मानवता का विकास होता है। सेवा से ही घर परिवार एवं समाज टिका रहता है। इसलिए इसका महत्व समझकर सेवा करना सिखाएँ।
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# सेवा से ही चित्तशुद्धि होती है। सेवा से ही मानवता का विकास होता है। सेवा से ही घर परिवार एवं समाज टिका रहता है। अतः इसका महत्व समझकर सेवा करना सिखाएँ।
    
=== मंत्रपाठ ===
 
=== मंत्रपाठ ===
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=== ॐकार ===
 
=== ॐकार ===
ॐकार सर्व योग का सार है। सर्व वाणी का सार है। सर्व संगीत का सार है। योगसूत्र में कहा गया है कि "तस्य वाचकः प्रणवः<nowiki>''</nowiki>। ईश्वर का नाम ॐकार है। इसलिए ॐकार का उच्चारण योग्य एवं सही रीति से करना अत्यंत आवश्यक है। ॐकार का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिये:
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ॐकार सर्व योग का सार है। सर्व वाणी का सार है। सर्व संगीत का सार है। योगसूत्र में कहा गया है कि "तस्य वाचकः प्रणवः<nowiki>''</nowiki>। ईश्वर का नाम ॐकार है। अतः ॐकार का उच्चारण योग्य एवं सही रीति से करना अत्यंत आवश्यक है। ॐकार का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिये:
 
# अनुकूल आसन पर सीधे एवं स्थिर बैठकर आँखें बंद करें
 
# अनुकूल आसन पर सीधे एवं स्थिर बैठकर आँखें बंद करें
 
# दोनों हाथ चिन् मुद्रा, चिन्मय मुद्रा या ब्रह्मांजलि मुद्रा में रखें या घुटनों पर रखें
 
# दोनों हाथ चिन् मुद्रा, चिन्मय मुद्रा या ब्रह्मांजलि मुद्रा में रखें या घुटनों पर रखें

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