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विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में, गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती है।
 
विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में, गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती है।
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अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर संस्कार होते है इसलिए भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये ।
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अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर संस्कार होते है अतः भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये ।
    
==== विमर्श ====
 
==== विमर्श ====
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=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
इस प्रश्नावली में कुल १० प्रश्न थे। ८ शिक्षक, २ प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित अपने मत व्यक्त किये हैं।  
 
इस प्रश्नावली में कुल १० प्रश्न थे। ८ शिक्षक, २ प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित अपने मत व्यक्त किये हैं।  
# पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने का पानी चाहिए । इसलिए विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था ।  
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# पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने का पानी चाहिए । अतः विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था ।  
 
# अच्छी व्यवस्था के सन्दर्भ में, मटके को टोटी लगाना, मटके छाया में रखना, सुविधाजनक स्थान पर रखना, पीने के पानी की व्यवस्था एक ही स्थान पर न कर अलग-अलग स्थानों पर करना, पीते समय गिरा हुआ पानी बहकर पौधों में जायें ऐसी व्यवस्था बनाना आदि बातों में तो सर्वानुमति थी, किन्तु पानी पीकर गिलास धो कर रखना किसी ने नहीं सुझाया इसका आश्चर्य है । क्योंकि यह एक आवश्यक संस्कार है।  
 
# अच्छी व्यवस्था के सन्दर्भ में, मटके को टोटी लगाना, मटके छाया में रखना, सुविधाजनक स्थान पर रखना, पीने के पानी की व्यवस्था एक ही स्थान पर न कर अलग-अलग स्थानों पर करना, पीते समय गिरा हुआ पानी बहकर पौधों में जायें ऐसी व्यवस्था बनाना आदि बातों में तो सर्वानुमति थी, किन्तु पानी पीकर गिलास धो कर रखना किसी ने नहीं सुझाया इसका आश्चर्य है । क्योंकि यह एक आवश्यक संस्कार है।  
 
# जल शुद्धिकरण हेतु पानी में फिटकरी डालना, पानी छानकर उसमें खस डालना, पानी में क्लोरिन की गोलियाँ डालना आदि सुझाव प्राप्त हुए । कुछ लोगों ने पीने का पानी उबालकर रखना, आर.ओ. प्लान्ट लगाकर पानी को शुद्ध करना जैसे सुझाव भी दिये । वर्षा का पानी उचित प्रकार से उचित स्थान पर जमा करना । पीने के लिए वर्षभर इसी पानी का उपयोग करने जैसी अच्छी बातें भी कही ।  
 
# जल शुद्धिकरण हेतु पानी में फिटकरी डालना, पानी छानकर उसमें खस डालना, पानी में क्लोरिन की गोलियाँ डालना आदि सुझाव प्राप्त हुए । कुछ लोगों ने पीने का पानी उबालकर रखना, आर.ओ. प्लान्ट लगाकर पानी को शुद्ध करना जैसे सुझाव भी दिये । वर्षा का पानी उचित प्रकार से उचित स्थान पर जमा करना । पीने के लिए वर्षभर इसी पानी का उपयोग करने जैसी अच्छी बातें भी कही ।  
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पानी के आर्थिक पक्ष को देखें तो ईश्वर ने हमारे लिए विपुल मात्रा में जल की व्यवस्था की है। जल पर सबका समान अधिकार है । किसी ने भी पानी माँगा तो उसे सेवाभाव से पानी पिलाना यह धार्मिक दृष्टि है । परन्तु पाश्चात्य विचारों के प्रभाव में आकर हमने पानी को भी बिकाऊ बना दिया । बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कम्पनियों के मनमोहक विज्ञापनों के सहारे धडल्ले से पानी बिक रहा है । परिणाम स्वरूप सेवाभाव से चलने वाले जलमंदिर बन्द हो रहे हैं।  
 
पानी के आर्थिक पक्ष को देखें तो ईश्वर ने हमारे लिए विपुल मात्रा में जल की व्यवस्था की है। जल पर सबका समान अधिकार है । किसी ने भी पानी माँगा तो उसे सेवाभाव से पानी पिलाना यह धार्मिक दृष्टि है । परन्तु पाश्चात्य विचारों के प्रभाव में आकर हमने पानी को भी बिकाऊ बना दिया । बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कम्पनियों के मनमोहक विज्ञापनों के सहारे धडल्ले से पानी बिक रहा है । परिणाम स्वरूप सेवाभाव से चलने वाले जलमंदिर बन्द हो रहे हैं।  
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तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, इसलिए उस पर केवल मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा
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तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, अतः उस पर केवल मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा
    
यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
 
यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
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# कई स्थानों पर टंकी होती है और उसे नल लगे होते हैं । पानी की टंकी या तो सिमेन्ट की होती है अथवा प्लास्टिक की । टंकी में से पानी लाने वाली नलिकायें भी या तो प्लास्टिक की होती हैं या सिमेन्ट की । नल स्टील के, लोहे के अथवा प्लास्टिक के । पानी पीने के प्याले अधिकांश प्लास्टिक के और कभी कभी स्टील के होते हैं।  
 
# कई स्थानों पर टंकी होती है और उसे नल लगे होते हैं । पानी की टंकी या तो सिमेन्ट की होती है अथवा प्लास्टिक की । टंकी में से पानी लाने वाली नलिकायें भी या तो प्लास्टिक की होती हैं या सिमेन्ट की । नल स्टील के, लोहे के अथवा प्लास्टिक के । पानी पीने के प्याले अधिकांश प्लास्टिक के और कभी कभी स्टील के होते हैं।  
 
# अनेक विद्यालयों में पानी शुद्धीकरण के यन्त्र लगाए जाते हैं । कई स्थानों पर मिट्टी के मटके होते हैं । कई स्थानों पर बाजार में जो मिनरल पानी मिलता है वह लाया जाता है । छात्रों को शुद्ध पानी मिले ऐसा आग्रह विद्यालय का और अभिभावकों का होता है।  
 
# अनेक विद्यालयों में पानी शुद्धीकरण के यन्त्र लगाए जाते हैं । कई स्थानों पर मिट्टी के मटके होते हैं । कई स्थानों पर बाजार में जो मिनरल पानी मिलता है वह लाया जाता है । छात्रों को शुद्ध पानी मिले ऐसा आग्रह विद्यालय का और अभिभावकों का होता है।  
# अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं । वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक दोनों का होता है। विद्यालय कभी कभी विचार करता है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का बोज कम होगा। अभिभावकों को कभी कभी विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका रहती है। इसलिए वे घर से ही पानी भेजते हैं। विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है। घर से विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की आवश्यकता होती है इसलिए भी अभिभावक पानी घर से देते हैं।  
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# अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं । वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक दोनों का होता है। विद्यालय कभी कभी विचार करता है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का बोज कम होगा। अभिभावकों को कभी कभी विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका रहती है। अतः वे घर से ही पानी भेजते हैं। विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है। घर से विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की आवश्यकता होती है अतः भी अभिभावक पानी घर से देते हैं।  
 
# अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं।  
 
# अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं।  
# आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें  
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# आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । अतः विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का अतः विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें  
 
<blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote><blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।</blockquote>
 
<blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote><blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।</blockquote>
 
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