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आचार्य शासन भी करता है अर्थात्‌ विद्यार्थी को आचार सिखाने के साथ साथ उनका पालन भी करवाता है ।
 
आचार्य शासन भी करता है अर्थात्‌ विद्यार्थी को आचार सिखाने के साथ साथ उनका पालन भी करवाता है ।
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आचार्य का सबसे बड़ा गुण है उसकी विद्याप्रीति । जो जबर्दस्ती पढ़ता है, जिसे पढ़ने में आलस आता है, जो पद, प्रतिष्ठा या पैसा (नौकरी) अधिक मिले इसलिए पढता है, कर्तव्य मानकर पढता है उसे आचार्य (शिक्षक) नहीं कह सकते । पढ़ना, स्वाध्याय करना, ज्ञानचर्चा करना आदि का आनंद जिसे भौतिक वस्तुओं के आनंद से श्रेष्ठ लगता है, जो उसी में रम जाता है वही सही आचार्य है। जिनमें ऐसी विद्याप्रीति नहीं है ऐसे शिक्षकों के कारण ही शिक्षाक्षेत्र में अनर्थों की परंपराएँ निर्मित हो रही हैं ।
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आचार्य का सबसे बड़ा गुण है उसकी विद्याप्रीति । जो जबर्दस्ती पढ़ता है, जिसे पढ़ने में आलस आता है, जो पद, प्रतिष्ठा या पैसा (नौकरी) अधिक मिले अतः पढता है, कर्तव्य मानकर पढता है उसे आचार्य (शिक्षक) नहीं कह सकते । पढ़ना, स्वाध्याय करना, ज्ञानचर्चा करना आदि का आनंद जिसे भौतिक वस्तुओं के आनंद से श्रेष्ठ लगता है, जो उसी में रम जाता है वही सही आचार्य है। जिनमें ऐसी विद्याप्रीति नहीं है ऐसे शिक्षकों के कारण ही शिक्षाक्षेत्र में अनर्थों की परंपराएँ निर्मित हो रही हैं ।
    
आचार्य का दूसरा गुण है उसका ज्ञानवान होना । स्वाध्याय, अध्ययन और चिंतन आदि प्रगल्भ होने से ही मनुष्य ज्ञानवान हो सकता है। बुद्धि को तेजस्वी और निर्मल बनाने के लिए जो अपना आहारविहार, ध्यानसाधना अशिथिल रखते हैं वही आचार्य ज्ञानवान होते हैं।
 
आचार्य का दूसरा गुण है उसका ज्ञानवान होना । स्वाध्याय, अध्ययन और चिंतन आदि प्रगल्भ होने से ही मनुष्य ज्ञानवान हो सकता है। बुद्धि को तेजस्वी और निर्मल बनाने के लिए जो अपना आहारविहार, ध्यानसाधना अशिथिल रखते हैं वही आचार्य ज्ञानवान होते हैं।
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ऐसा आचार्य समाज का भूषण है । जो समाज आचार्य को सम्मान नहीं देता उसका पतन होता है ।
 
ऐसा आचार्य समाज का भूषण है । जो समाज आचार्य को सम्मान नहीं देता उसका पतन होता है ।
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आज के समय में ये बातें या तो हमने छोड दी हैं, या बदल दी हैं । इसलिए शिक्षाक्षेत्र में अनवस्था निर्माण हुई है । इस अनवस्था ने समग्र समाज को शिथिल और अस्थिर कर दिया है ।
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आज के समय में ये बातें या तो हमने छोड दी हैं, या बदल दी हैं । अतः शिक्षाक्षेत्र में अनवस्था निर्माण हुई है । इस अनवस्था ने समग्र समाज को शिथिल और अस्थिर कर दिया है ।
    
इस स्थिति को बदलने का प्रयास सबसे पहले आचार्यों को करना चाहिये और बाद में समाज को करना चाहिये ।
 
इस स्थिति को बदलने का प्रयास सबसे पहले आचार्यों को करना चाहिये और बाद में समाज को करना चाहिये ।

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