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| {{One source|date=January 2019}} | | {{One source|date=January 2019}} |
− | जीवन का स्वभावज लक्ष्य मोक्ष है। जितनी गहराई से मानव के व्यक्तित्व का अध्ययन धार्मिक (भारतीय) मनीषियों ने किया है, अन्य किसी ने नहीं किया है। धार्मिक (भारतीय) मनीषियों के अनुसार मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। वर्तमान की विपरीत शिक्षा से प्रभावित लोगों के लिए जीवन के इस लक्ष्य को समझना कठिन इसलिए बन गया है कि वे ‘विचार कैसे करना चाहिए’ इस की शिक्षा से वंचित हैं। सामान्य बुद्धि वाले हर मानव को मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है, इसे समझना कठिन बात नहीं है। हर मनुष्य चाहता है कि: | + | जीवन का स्वभावज लक्ष्य मोक्ष है। जितनी गहराई से मानव के व्यक्तित्व का अध्ययन धार्मिक (भारतीय) मनीषियों ने किया है, अन्य किसी ने नहीं किया है। धार्मिक (भारतीय) मनीषियों के अनुसार मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है। वर्तमान की विपरीत शिक्षा से प्रभावित लोगों के लिए जीवन के इस लक्ष्य को समझना कठिन अतः बन गया है कि वे ‘विचार कैसे करना चाहिए’ इस की शिक्षा से वंचित हैं। सामान्य बुद्धि वाले हर मानव को मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है, इसे समझना कठिन बात नहीं है। हर मनुष्य चाहता है कि: |
| # मैं अमर हो जाऊँ। | | # मैं अमर हो जाऊँ। |
| # मैं सर्वज्ञानी बन जाऊँ। | | # मैं सर्वज्ञानी बन जाऊँ। |
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| ऐसी हमारी केवल मान्यता नही है वरन् ऐसी हमारी श्रद्धा है {{Citation needed}}। <blockquote>आकाशात् पतितंतोयं यथा गच्छति सागरं।</blockquote><blockquote>सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति।</blockquote>जिस प्रकार बारिश का पानी धरतीपर गिरता है। लेकिन भिन्न भिन्न मार्गों से वह समुद्र की ओर ही जाता है उसी प्रकार से शुद्ध भावना से आप किसी भी दैवी शक्ति को नमस्कार करें वह परमात्मा को प्राप्त होगा। | | ऐसी हमारी केवल मान्यता नही है वरन् ऐसी हमारी श्रद्धा है {{Citation needed}}। <blockquote>आकाशात् पतितंतोयं यथा गच्छति सागरं।</blockquote><blockquote>सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति।</blockquote>जिस प्रकार बारिश का पानी धरतीपर गिरता है। लेकिन भिन्न भिन्न मार्गों से वह समुद्र की ओर ही जाता है उसी प्रकार से शुद्ध भावना से आप किसी भी दैवी शक्ति को नमस्कार करें वह परमात्मा को प्राप्त होगा। |
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− | “विविधता या अनेकता में एकता” यह भारत की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि ऊपर से कितनी भी विविधता दिखाई दे सभी अस्तित्वों का मूल परमात्मा है इस एकमात्र सत्य को जानना। इसलिए भाषा, प्रांत, वेष, जाति, वर्ण आदि कितने भी भेद हममें हैं। भेद होना यह प्राकृतिक ही है। इसी तरह से सभी अस्तित्वों में परमात्मा (का अंश याने जीवात्मा) होने से सभी अस्तित्वों में एकात्मता की अनुभूति होने का ही अर्थ “विविधता या अनेकता में एकता” है। यही धार्मिक (भारतीय) या हिन्दू संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है। यही हिन्दू धर्म का मर्म है। | + | “विविधता या अनेकता में एकता” यह भारत की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि ऊपर से कितनी भी विविधता दिखाई दे सभी अस्तित्वों का मूल परमात्मा है इस एकमात्र सत्य को जानना। अतः भाषा, प्रांत, वेष, जाति, वर्ण आदि कितने भी भेद हममें हैं। भेद होना यह प्राकृतिक ही है। इसी तरह से सभी अस्तित्वों में परमात्मा (का अंश याने जीवात्मा) होने से सभी अस्तित्वों में एकात्मता की अनुभूति होने का ही अर्थ “विविधता या अनेकता में एकता” है। यही धार्मिक (भारतीय) या हिन्दू संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है। यही हिन्दू धर्म का मर्म है। |
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| === ४ आत्मा, परमात्मा और इस से जुडी मान्यताएं === | | === ४ आत्मा, परमात्मा और इस से जुडी मान्यताएं === |