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| == भारतीय और यूरो अमरीकी जीवन दृष्टि और व्यवहार सूत्र == | | == भारतीय और यूरो अमरीकी जीवन दृष्टि और व्यवहार सूत्र == |
− | इन के विषय में हमने जीवन के प्रतिमान विषय की चर्चा में मोटी मोटी बातें जानीं हैं। इसलिए अब हम इस सत्र में केवल उनका अति-संक्षिप्त पुनर्स्मरण करते हुए आगे बढ़ेंगे। (अधार्मिक जीवन दृष्टि के ३ और धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि के ५ सूत्र तथा उनपर आधारित व्यवहार सूत्र [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|यहाँ]] देखें) | + | इन के विषय में हमने जीवन के प्रतिमान विषय की चर्चा में मोटी मोटी बातें जानीं हैं। अतः अब हम इस सत्र में केवल उनका अति-संक्षिप्त पुनर्स्मरण करते हुए आगे बढ़ेंगे। (अधार्मिक जीवन दृष्टि के ३ और धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि के ५ सूत्र तथा उनपर आधारित व्यवहार सूत्र [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|यहाँ]] देखें) |
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| == वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान के विकास की पृष्ठभूमि == | | == वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान के विकास की पृष्ठभूमि == |
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| == जीवन की इष्ट गति == | | == जीवन की इष्ट गति == |
− | तन्त्रज्ञान का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। वह है सामाजिक जीवन की गति को प्रभावित करना। वर्तमान में तन्त्रज्ञान ने समाज जीवन की गति को बहुत तेज कर दिया है। समाज में तन्त्रज्ञान की अच्छी समझ रखनेवालों का बहुत छोटा वर्ग समाज को तन्त्रज्ञान के विकास की गति के साथ घसीट रहा नजर आ रहा है। वर्तमान में व्यक्तिवादी, इहवादी और जडवादी और पैनी मतिवाले लोग याने यूरो-अमरीकी लोग मनुष्य के जीवन की गति का निर्धारण कर रहे है। इसलिए इसमें पैनी मति के लोग बौध्दिक (सबसे श्रेष्ठ) सुख पा रहे हैं। सामान्य मनुष्य जी जान से प्रयास कर रहा है कि वह इस गति के साथ चल सके। इस प्रयास में सामान्य मनुष्य उसका सुख-चैन खोता जा रहा है। आत्मीयता को माननेवाले लोग भी कम बुद्धिमान नहीं हैं। लेकिन उनकी धर्म की समझ और धर्म में निष्ठा कम हुई समझ में आती है। इसलिए वे न तो व्यक्तिश: हानिकारक तन्त्रज्ञान के विरोध में डटकर खड़े होते हैं और न ही विरोध को संगठित करते हैं। | + | तन्त्रज्ञान का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। वह है सामाजिक जीवन की गति को प्रभावित करना। वर्तमान में तन्त्रज्ञान ने समाज जीवन की गति को बहुत तेज कर दिया है। समाज में तन्त्रज्ञान की अच्छी समझ रखनेवालों का बहुत छोटा वर्ग समाज को तन्त्रज्ञान के विकास की गति के साथ घसीट रहा नजर आ रहा है। वर्तमान में व्यक्तिवादी, इहवादी और जडवादी और पैनी मतिवाले लोग याने यूरो-अमरीकी लोग मनुष्य के जीवन की गति का निर्धारण कर रहे है। अतः इसमें पैनी मति के लोग बौध्दिक (सबसे श्रेष्ठ) सुख पा रहे हैं। सामान्य मनुष्य जी जान से प्रयास कर रहा है कि वह इस गति के साथ चल सके। इस प्रयास में सामान्य मनुष्य उसका सुख-चैन खोता जा रहा है। आत्मीयता को माननेवाले लोग भी कम बुद्धिमान नहीं हैं। लेकिन उनकी धर्म की समझ और धर्म में निष्ठा कम हुई समझ में आती है। अतः वे न तो व्यक्तिश: हानिकारक तन्त्रज्ञान के विरोध में डटकर खड़े होते हैं और न ही विरोध को संगठित करते हैं। |
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| === मति और जीवन की गति का संबंध === | | === मति और जीवन की गति का संबंध === |
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| ==== जीवन के विपरीत प्रतिमान की शिक्षा ==== | | ==== जीवन के विपरीत प्रतिमान की शिक्षा ==== |
− | वर्तमान में समस्या जीवन की इष्ट गति से कम गति की नहीं है। वर्तमान की समस्या है समाज जीवन को इष्ट गति से बहुत अधिक तेज गति प्राप्त होना। विपरीत शिक्षा से भी पतन की गति और इसलिए जीवन की गति भी तेज हो जाती है। वर्तमान की शिक्षा के निम्न घटक उसे विपरीत शिक्षा बनाते हैं। | + | वर्तमान में समस्या जीवन की इष्ट गति से कम गति की नहीं है। वर्तमान की समस्या है समाज जीवन को इष्ट गति से बहुत अधिक तेज गति प्राप्त होना। विपरीत शिक्षा से भी पतन की गति और अतः जीवन की गति भी तेज हो जाती है। वर्तमान की शिक्षा के निम्न घटक उसे विपरीत शिक्षा बनाते हैं। |
− | अधार्मिक जीवनदृष्टि, जीवनशैली तथा व्यवस्थाएँ मिलकर जीवन का प्रतिमान बनता है। वैसे तो तन्त्रज्ञान का विकास भी जीवन के प्रतिमान के अंतर्गत आनेवाला विषय है। लेकिन वर्तमान में तन्त्रज्ञान को जो महत्व प्राप्त हुआ है उस के कारण जीवनदृष्टि के सूत्रों के साथ तन्त्रज्ञान के विषय का स्वतंत्र विचार भी आवश्यक हो गया है। वर्तमान में स्थापित जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र, जीवनशैली याने प्रत्यक्ष व्यवहार के सूत्र और ऐसा व्यवहार हो सके इसलिए बनाई गई व्यवस्थाएँ आदि भी जीवन की गति बढाते हैं। | + | अधार्मिक जीवनदृष्टि, जीवनशैली तथा व्यवस्थाएँ मिलकर जीवन का प्रतिमान बनता है। वैसे तो तन्त्रज्ञान का विकास भी जीवन के प्रतिमान के अंतर्गत आनेवाला विषय है। लेकिन वर्तमान में तन्त्रज्ञान को जो महत्व प्राप्त हुआ है उस के कारण जीवनदृष्टि के सूत्रों के साथ तन्त्रज्ञान के विषय का स्वतंत्र विचार भी आवश्यक हो गया है। वर्तमान में स्थापित जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र, जीवनशैली याने प्रत्यक्ष व्यवहार के सूत्र और ऐसा व्यवहार हो सके अतः बनाई गई व्यवस्थाएँ आदि भी जीवन की गति बढाते हैं। |
| # व्यक्तिवादिता या स्वार्थ आधारित संबंध : स्वार्थ आधारित सामाजिक संबंधों के कारण प्रत्येक सामाजिक संबंध में अधिकारों के लिए संघर्ष और इस कारण बलवानों का वर्चस्व, अमर्याद व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के कारण स्वैराचार, अपने से दुर्बल ऐसे प्रत्येक का शोषण, बलवानों के स्वार्थ का पोषण करनेवाली व्यवस्थाएँ आदि बातें समाज में स्थापित हो जातीं हैं। जब बलवानों का स्वार्थ समाज जीवन के परस्पर संबंधों का आधार होगा तो जीवन की गति का निर्धारण भी जिन की बुद्धि बलवान होती है याने की बुद्धि की गति तेज है ऐसे स्वार्थी लोग ही करते हैं। | | # व्यक्तिवादिता या स्वार्थ आधारित संबंध : स्वार्थ आधारित सामाजिक संबंधों के कारण प्रत्येक सामाजिक संबंध में अधिकारों के लिए संघर्ष और इस कारण बलवानों का वर्चस्व, अमर्याद व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के कारण स्वैराचार, अपने से दुर्बल ऐसे प्रत्येक का शोषण, बलवानों के स्वार्थ का पोषण करनेवाली व्यवस्थाएँ आदि बातें समाज में स्थापित हो जातीं हैं। जब बलवानों का स्वार्थ समाज जीवन के परस्पर संबंधों का आधार होगा तो जीवन की गति का निर्धारण भी जिन की बुद्धि बलवान होती है याने की बुद्धि की गति तेज है ऐसे स्वार्थी लोग ही करते हैं। |
− | # ईहवादिता और जडवदिता : जो भी कुछ है बस यही जीवन है। इस जन्म के आगे कुछ नहीं होगा और इस जन्म से पहले भी कुछ नहीं था ऐसी मान्यता को इहवादिता कहते हैं। इस के कारण जितना भी अधिक से अधिक उपभोग मैं इस जन्म में कर सकता हूँ कर लूँ ऐसी महत्वाकांक्षा निर्माण हो जाती है। उपभोक्तावाद को बढावा मिलता है। प्रकृति का अनावश्यक विनाश होता है। इस अधिक से अधिक उपभोग करने की होड के कारण जीवन को अनावश्यक तेज गति प्राप्त हो जाती है। सारी सृष्टि जड से बनीं है ऐसा मान लेने से जीवन की गति का विचार ही नष्ट हो जाता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार जड पदार्थों की अधिकतम गति प्रकाश की गति होती है। इसलिए इस प्रकाश की गति के अधिक से अधिक निकट की गति प्राप्त करने के प्रयास वर्तमान में हो रहे हैं। जड की गति की सहायता से जीवन की गति बढाने को ही विकास माना जा रहा है। इस कारण भी जीवन की गति इष्ट गति से बहुत अधिक हो गई है। | + | # ईहवादिता और जडवदिता : जो भी कुछ है बस यही जीवन है। इस जन्म के आगे कुछ नहीं होगा और इस जन्म से पहले भी कुछ नहीं था ऐसी मान्यता को इहवादिता कहते हैं। इस के कारण जितना भी अधिक से अधिक उपभोग मैं इस जन्म में कर सकता हूँ कर लूँ ऐसी महत्वाकांक्षा निर्माण हो जाती है। उपभोक्तावाद को बढावा मिलता है। प्रकृति का अनावश्यक विनाश होता है। इस अधिक से अधिक उपभोग करने की होड के कारण जीवन को अनावश्यक तेज गति प्राप्त हो जाती है। सारी सृष्टि जड से बनीं है ऐसा मान लेने से जीवन की गति का विचार ही नष्ट हो जाता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार जड पदार्थों की अधिकतम गति प्रकाश की गति होती है। अतः इस प्रकाश की गति के अधिक से अधिक निकट की गति प्राप्त करने के प्रयास वर्तमान में हो रहे हैं। जड की गति की सहायता से जीवन की गति बढाने को ही विकास माना जा रहा है। इस कारण भी जीवन की गति इष्ट गति से बहुत अधिक हो गई है। |
− | # तन्त्रज्ञान : वैसे तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान दोनों ही तटस्थ होते हैं। अपने आप में वे हानिकारक या लाभकारक नहीं होते। उनके विकास और उपयोजन के पीछे काम करनेवाली जीवनदृष्टि ही उन्हें उपकारक या हानिकारक बनाती है। यूरो-अमरीकी याने अधार्मिक (अधार्मिक) जीवनदृष्टिवाले लोगों के हाथ में नेतृत्व होने से तन्त्रज्ञान उपकारक कम और संहारक अधिक हो गया है। २०० वर्ष पहले भी अधार्मिक (अधार्मिक) समाजों की जीवनदृष्टि तो वही थी जो आज है। लेकिन उस समय उनके पास तन्त्रज्ञान का साधन नहीं था। इसलिए वे जीवन को अधिक गति दे नहीं पाए थे। लेकिन जब से तन्त्रज्ञान का शस्त्र उनके हाथ में लगा है, तन्त्रज्ञान के विकास और उपयोजन के कारण जीवन की गति इष्ट गति से अत्यंत अधिक हो गई है। | + | # तन्त्रज्ञान : वैसे तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान दोनों ही तटस्थ होते हैं। अपने आप में वे हानिकारक या लाभकारक नहीं होते। उनके विकास और उपयोजन के पीछे काम करनेवाली जीवनदृष्टि ही उन्हें उपकारक या हानिकारक बनाती है। यूरो-अमरीकी याने अधार्मिक (अधार्मिक) जीवनदृष्टिवाले लोगों के हाथ में नेतृत्व होने से तन्त्रज्ञान उपकारक कम और संहारक अधिक हो गया है। २०० वर्ष पहले भी अधार्मिक (अधार्मिक) समाजों की जीवनदृष्टि तो वही थी जो आज है। लेकिन उस समय उनके पास तन्त्रज्ञान का साधन नहीं था। अतः वे जीवन को अधिक गति दे नहीं पाए थे। लेकिन जब से तन्त्रज्ञान का शस्त्र उनके हाथ में लगा है, तन्त्रज्ञान के विकास और उपयोजन के कारण जीवन की गति इष्ट गति से अत्यंत अधिक हो गई है। |
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| == भारतीय तन्त्रज्ञान नीति के महत्त्वपूर्ण सूत्र == | | == भारतीय तन्त्रज्ञान नीति के महत्त्वपूर्ण सूत्र == |