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== भारतीय दृष्टि में समाज का और व्यक्ति जीवन का लक्ष्य ==
 
== भारतीय दृष्टि में समाज का और व्यक्ति जीवन का लक्ष्य ==
किसी भी समाज का अर्थात् समाज के सभी घटकों का व्यक्तिगत और सामूहिक लक्ष्य तो सुख ही होता है। समाज में सुख तब ही सर्वव्याप्त होता है जब समाज के सभी घटक पुरूषार्थ चतुष्ट्य का पालन करते है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह वे चार पुरूषार्थ हैं। इन में पहले तीन को त्रिवर्ग भी कहा जाता है। सामाजिक सुख, सौहार्द, समृध्दि आदि के लिये इस त्रिवर्ग का पालन महत्वपूर्ण होता है। चौथा पुरूषार्थ है मोक्ष। समाज के सामान्य घटक को इस की इच्छा तो होती है। किंतु इसे वह समझता नहीं है। इसलिए उस की शक्ति तो सुख की प्राप्ति के लिये ही खर्च होती है। पुरुषार्थ चतुष्ट्य या त्रिवर्ग की शिक्षा ही वास्तव में शिक्षा होती है।  
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किसी भी समाज का अर्थात् समाज के सभी घटकों का व्यक्तिगत और सामूहिक लक्ष्य तो सुख ही होता है। समाज में सुख तब ही सर्वव्याप्त होता है जब समाज के सभी घटक पुरूषार्थ चतुष्ट्य का पालन करते है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह वे चार पुरूषार्थ हैं। इन में पहले तीन को त्रिवर्ग भी कहा जाता है। सामाजिक सुख, सौहार्द, समृध्दि आदि के लिये इस त्रिवर्ग का पालन महत्वपूर्ण होता है। चौथा पुरूषार्थ है मोक्ष। समाज के सामान्य घटक को इस की इच्छा तो होती है। किंतु इसे वह समझता नहीं है। अतः उस की शक्ति तो सुख की प्राप्ति के लिये ही खर्च होती है। पुरुषार्थ चतुष्ट्य या त्रिवर्ग की शिक्षा ही वास्तव में शिक्षा होती है।  
    
भारतीय शास्त्रों में धर्म की व्याख्या ' यतो अभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि स: धर्म:<ref>वैशेषिक दर्शन 1.1.2 </ref> - यह भी की गई है। इस का अर्थ है जिन नियमों का पालन करने से अभ्युदय की अर्थात् सुख और समृध्दि की प्राप्ति होती है वह और नि:श्रेयस अर्थात् मोक्ष की दिशा में प्रगति हो, उसे धर्म कहते है।  
 
भारतीय शास्त्रों में धर्म की व्याख्या ' यतो अभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि स: धर्म:<ref>वैशेषिक दर्शन 1.1.2 </ref> - यह भी की गई है। इस का अर्थ है जिन नियमों का पालन करने से अभ्युदय की अर्थात् सुख और समृध्दि की प्राप्ति होती है वह और नि:श्रेयस अर्थात् मोक्ष की दिशा में प्रगति हो, उसे धर्म कहते है।  
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राष्ट्रीय पहचान के लिये आवश्यक बातें (कंटेंट इसेंशियल टु नर्चर नॅशनल आयडेंटिटी Content essential to nurture national identity) : इसमें राष्ट्र की भ्रामक संकल्पना के कारण सभी बिन्दुओं में भारतीय दृष्टि से भिन्न विषयों का चयन हुआ दिखाई देता है। राष्ट्रध्वज, राष्ट्रीय भाषा, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय त्यौहार, राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु आदि विषय आते हैं। यहीं से ‘राष्ट्र संकल्पना का संभ्रम खडा हो जाता है।
 
राष्ट्रीय पहचान के लिये आवश्यक बातें (कंटेंट इसेंशियल टु नर्चर नॅशनल आयडेंटिटी Content essential to nurture national identity) : इसमें राष्ट्र की भ्रामक संकल्पना के कारण सभी बिन्दुओं में भारतीय दृष्टि से भिन्न विषयों का चयन हुआ दिखाई देता है। राष्ट्रध्वज, राष्ट्रीय भाषा, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय त्यौहार, राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु आदि विषय आते हैं। यहीं से ‘राष्ट्र संकल्पना का संभ्रम खडा हो जाता है।
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राष्ट्रीय त्यौहारों का जो उल्लेख कोअर एलिमेंट्स् (core elements) में किया है, उस के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान शिक्षा की दृष्टि से राष्ट्र और राज्य एक ही है। स्वतन्त्रता (वास्तव में केवल स्वाधीनता) दिवस और प्रजासत्ताक दिवस यह दोनों राज्य के त्यौहार हैं, राष्ट्र के नहीं। जैसे भारत की सांस्कृतिक विचारों की अभिव्यक्ति करनेवाली तेलुगु, तमिळ, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, हिंदी सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं ही हैं। उसी तरह से भारत में पैदा होनेवाले भारतीय आकाश की और जंगल की शोभा बढ़ाने वाले सभी फूल, पक्षी और प्राणी राष्ट्रीय ही है। छोटे देशों में इतनी विविधता नहीं होती। इसलिए उनके लिए राष्ट्रीय फूल, पक्षी, प्राणी आदि तय करना एक बार समझ सकते हैं। भारत जैसे विशाल देश के लिए राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय प्राणी तय करना यह विषय तो अपरिपक्वता का ही लक्षण है। भारत में फूल, प्राणी आदि की जातियों में बहुत विविधता है। ये सभी हमारे राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय प्राणी हैं।
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राष्ट्रीय त्यौहारों का जो उल्लेख कोअर एलिमेंट्स् (core elements) में किया है, उस के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान शिक्षा की दृष्टि से राष्ट्र और राज्य एक ही है। स्वतन्त्रता (वास्तव में केवल स्वाधीनता) दिवस और प्रजासत्ताक दिवस यह दोनों राज्य के त्यौहार हैं, राष्ट्र के नहीं। जैसे भारत की सांस्कृतिक विचारों की अभिव्यक्ति करनेवाली तेलुगु, तमिळ, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, हिंदी सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं ही हैं। उसी तरह से भारत में पैदा होनेवाले भारतीय आकाश की और जंगल की शोभा बढ़ाने वाले सभी फूल, पक्षी और प्राणी राष्ट्रीय ही है। छोटे देशों में इतनी विविधता नहीं होती। अतः उनके लिए राष्ट्रीय फूल, पक्षी, प्राणी आदि तय करना एक बार समझ सकते हैं। भारत जैसे विशाल देश के लिए राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय प्राणी तय करना यह विषय तो अपरिपक्वता का ही लक्षण है। भारत में फूल, प्राणी आदि की जातियों में बहुत विविधता है। ये सभी हमारे राष्ट्रीय फूल, राष्ट्रीय पक्षी और राष्ट्रीय प्राणी हैं।
    
सर्व प्रथम तो इन केंद्रीय घटकों के विवरण में कई स्थानों पर 'राष्ट्र, राष्ट्रीय, राष्ट्रीयता' इन शब्दों का उपयोग किया है। किंतु कहीं भी 'राष्ट्र' क्या होता है, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। वास्तव में तो इसे स्पष्ट किये बिना ही राष्ट्रीय शिक्षा का विचार करना सरासर बेमानी है।
 
सर्व प्रथम तो इन केंद्रीय घटकों के विवरण में कई स्थानों पर 'राष्ट्र, राष्ट्रीय, राष्ट्रीयता' इन शब्दों का उपयोग किया है। किंतु कहीं भी 'राष्ट्र' क्या होता है, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। वास्तव में तो इसे स्पष्ट किये बिना ही राष्ट्रीय शिक्षा का विचार करना सरासर बेमानी है।
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सामाजिक अवरोध में वर्णाश्रम धर्म का विरोध ही प्रमुख उद्देश्य दिखाई देता है। वर्णाश्रम धर्म भारतीय समाज जीवन का ताना बाना था। इसको तोड़ने से पहले इसका अच्छी तरह भारतीय दृष्टि से अध्ययन करने की आवश्यकता थी। लेकिन अंग्रेजों के अन्धानुकरण के कारण हम इसे तोड़ने में लगे हैं। छोटे परिवारों ने कई नई सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया है। संयुक्त कुटुम्ब के दर्जनों लाभों से समाज वंचित हो गया है।  
 
सामाजिक अवरोध में वर्णाश्रम धर्म का विरोध ही प्रमुख उद्देश्य दिखाई देता है। वर्णाश्रम धर्म भारतीय समाज जीवन का ताना बाना था। इसको तोड़ने से पहले इसका अच्छी तरह भारतीय दृष्टि से अध्ययन करने की आवश्यकता थी। लेकिन अंग्रेजों के अन्धानुकरण के कारण हम इसे तोड़ने में लगे हैं। छोटे परिवारों ने कई नई सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया है। संयुक्त कुटुम्ब के दर्जनों लाभों से समाज वंचित हो गया है।  
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साईंटिफिक व्ह्यू याने साईंटिफिक दृष्टि का तो इतना आतंक मचा रखा है कि अभौतिक बातों का महत्व ही समाप्त हो गया है। अभौतिक बातों को भी भौतिक शास्त्र की कसौटी लगाई जाती है। इसलिए सामाजिक सांस्कृतिक शास्त्रों का महत्व समाप्त हो गया है। बच्चे इन विषयों के अध्ययन में कोई रूचि नहीं रखते। स्वदेशी आन्दोलन चला तब वैश्वीकरण और स्थानिकीकरण में मेल का विषय शासन के ध्यान में आया।  
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साईंटिफिक व्ह्यू याने साईंटिफिक दृष्टि का तो इतना आतंक मचा रखा है कि अभौतिक बातों का महत्व ही समाप्त हो गया है। अभौतिक बातों को भी भौतिक शास्त्र की कसौटी लगाई जाती है। अतः सामाजिक सांस्कृतिक शास्त्रों का महत्व समाप्त हो गया है। बच्चे इन विषयों के अध्ययन में कोई रूचि नहीं रखते। स्वदेशी आन्दोलन चला तब वैश्वीकरण और स्थानिकीकरण में मेल का विषय शासन के ध्यान में आया।  
    
जब कोई रोगी परामर्श के लिये वैद्य के पास जाता है, तब वैद्य उस की अच्छी आदतों और बुरी आदतों को समझ लेता है। फिर बुरी आदतों को छोडने की बात अवश्य करता है, लेकिन अधिक बल अच्छी आदतों को बढाने पर ही देता है। हमारे पाठयक्रमों में दो वाक्य भी "भारतीय समाज चिरंजीवी क्यों बना?" इस विषय पर नहीं हैं। किस प्रकार से हजारों वर्षों तक विश्व में अग्रणी रहा इस बारे में कुछ नहीं है। आज भी विश्व के अन्य समाजों से हम किन बातों में श्रेष्ठ है यह नहीं बताया जा रहा। हजारों वर्षों से हम एक बलवान समाज थे। किंतु हमने आक्रमण नहीं किये। हम पर आक्रमण क्यों हुए?  
 
जब कोई रोगी परामर्श के लिये वैद्य के पास जाता है, तब वैद्य उस की अच्छी आदतों और बुरी आदतों को समझ लेता है। फिर बुरी आदतों को छोडने की बात अवश्य करता है, लेकिन अधिक बल अच्छी आदतों को बढाने पर ही देता है। हमारे पाठयक्रमों में दो वाक्य भी "भारतीय समाज चिरंजीवी क्यों बना?" इस विषय पर नहीं हैं। किस प्रकार से हजारों वर्षों तक विश्व में अग्रणी रहा इस बारे में कुछ नहीं है। आज भी विश्व के अन्य समाजों से हम किन बातों में श्रेष्ठ है यह नहीं बताया जा रहा। हजारों वर्षों से हम एक बलवान समाज थे। किंतु हमने आक्रमण नहीं किये। हम पर आक्रमण क्यों हुए?  

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