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| भावार्थ यह है कि यदि हम धार्मिक (भारतीय) भाषा का शिक्षा के माध्यम के तौर पर उपयोग करते है तो हमें झूठा खगोल पढाना होगा अर्थात् आर्यभट्ट और वराहमिहिर पढाने होंगे (कोपरनिकस और गॅलिलियो नहीं), झूठा इतिहास पढाना पडेगा अर्थात् राम और कृष्ण का (भारत की मानहानी करनेवाला, विकृत छवि निर्माण करनेवाला मनगढन्त इतिहास नहीं), झूठा वैद्यक पढाना होगा अर्थात् चरक और शुश्रुत के वैद्यकीय क्षेत्र का पराक्रम अर्थात् आयुर्वेद सिखाना होगा, ऍलोपथी नहीं। | | भावार्थ यह है कि यदि हम धार्मिक (भारतीय) भाषा का शिक्षा के माध्यम के तौर पर उपयोग करते है तो हमें झूठा खगोल पढाना होगा अर्थात् आर्यभट्ट और वराहमिहिर पढाने होंगे (कोपरनिकस और गॅलिलियो नहीं), झूठा इतिहास पढाना पडेगा अर्थात् राम और कृष्ण का (भारत की मानहानी करनेवाला, विकृत छवि निर्माण करनेवाला मनगढन्त इतिहास नहीं), झूठा वैद्यक पढाना होगा अर्थात् चरक और शुश्रुत के वैद्यकीय क्षेत्र का पराक्रम अर्थात् आयुर्वेद सिखाना होगा, ऍलोपथी नहीं। |
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− | आगे मेकॉले कहता है - और ऐसा करने से जो लोग भारत के मूल निवासियों को ईसाई बनाने में जुटे हुए है उन्हें हम कोई मदद नहीं करेंगे। इससे मेकॉले का यह अभिप्राय है की अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा देने से भारतीयों के ईसाईकरण में मदद होती है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पाने वाले भारतीयों की जीवनदृष्टि बदलकर अंग्रेजियत की याने व्यक्तिवादी, इहवादी और जड़वादी हो जाती है। | + | आगे मेकॉले कहता है - और ऐसा करने से जो लोग भारत के मूल निवासियों को ईसाई बनाने में जुटे हुए है उन्हें हम कोई सहायता नहीं करेंगे। इससे मेकॉले का यह अभिप्राय है की अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा देने से भारतीयों के ईसाईकरण में सहायता होती है । अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पाने वाले भारतीयों की जीवनदृष्टि बदलकर अंग्रेजियत की याने व्यक्तिवादी, इहवादी और जड़वादी हो जाती है। |
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| व्यवहार में भी हम यही अनुभव करते है। अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा पानेवाले बच्चों का सर्वप्रथम वाचनविश्व बदल जाता है । वह केवल अंग्रेजी साहित्य पढने की क्षमता और रुचि रखता है । जैसा साहित्य बच्चा पढता है वैसे ही उस के विचार बन जाते है । जैसे उस के विचार होते हैं वैसी उस की मानसिकता बन जाती है और जैसी मानसिकता होगी वैसा ही उस का व्यवहार हो जाता है । कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करेंगे: | | व्यवहार में भी हम यही अनुभव करते है। अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षा पानेवाले बच्चों का सर्वप्रथम वाचनविश्व बदल जाता है । वह केवल अंग्रेजी साहित्य पढने की क्षमता और रुचि रखता है । जैसा साहित्य बच्चा पढता है वैसे ही उस के विचार बन जाते है । जैसे उस के विचार होते हैं वैसी उस की मानसिकता बन जाती है और जैसी मानसिकता होगी वैसा ही उस का व्यवहार हो जाता है । कुछ उदाहरणों से इसे स्पष्ट करेंगे: |
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| === शब्द निर्माण क्षमता === | | === शब्द निर्माण क्षमता === |
| भारतीय देवनागरी लिपि में ३६ व्यंजन और १६ (वर्तमान में १२) स्वर हैं। अंग्रेजी में इक्कीस व्यंजन और पाँच स्वर हैं। इन वर्ण और स्वरों के बाहर कोई शब्द इन भाषाओं में नहीं हो सकता । इन वर्ण और स्वरों के आधारपर ही शब्द बनते है । गणित कर यदि देखा जाये तो ध्यान में आएगा की अंग्रेजी भाषा में जो शब्द निर्माण की सम्भावनाएँ हैं उन से न्यूनतम १ इस ऑंकडेपर २२ शून्य रखने से जितनी संख्या बनती है, उतने गुना से अधिक शब्द निर्माण की क्षमता धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में है । शब्द निर्माण क्षमता अधिक होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में सरलता और सटीकता। शब्द निर्माण क्षमता कम होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में कठिनाई । | | भारतीय देवनागरी लिपि में ३६ व्यंजन और १६ (वर्तमान में १२) स्वर हैं। अंग्रेजी में इक्कीस व्यंजन और पाँच स्वर हैं। इन वर्ण और स्वरों के बाहर कोई शब्द इन भाषाओं में नहीं हो सकता । इन वर्ण और स्वरों के आधारपर ही शब्द बनते है । गणित कर यदि देखा जाये तो ध्यान में आएगा की अंग्रेजी भाषा में जो शब्द निर्माण की सम्भावनाएँ हैं उन से न्यूनतम १ इस ऑंकडेपर २२ शून्य रखने से जितनी संख्या बनती है, उतने गुना से अधिक शब्द निर्माण की क्षमता धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में है । शब्द निर्माण क्षमता अधिक होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में सरलता और सटीकता। शब्द निर्माण क्षमता कम होने का अर्थ है भावनाओं और अनुभवों की अभिव्यक्ति में कठिनाई । |
− | शब्द निर्माण की क्षमता के साथ ही सभी संभाव्य विविध शब्दों के निर्माण की क्षमता होना भी पूर्णत्व का लक्षण है। संस्कृत भाषा में मर्यादित संख्यामें तय किये गए ‘धातु’ओं की मदद से हर ‘अर्थ’ के लिए शब्द निर्माण किया जा सकता है। इस दृष्टि से संस्कृत भाषा की श्रेष्ठता अनन्यसाधारण है। | + | शब्द निर्माण की क्षमता के साथ ही सभी संभाव्य विविध शब्दों के निर्माण की क्षमता होना भी पूर्णत्व का लक्षण है। संस्कृत भाषा में मर्यादित संख्यामें तय किये गए ‘धातु’ओं की सहायता से हर ‘अर्थ’ के लिए शब्द निर्माण किया जा सकता है। इस दृष्टि से संस्कृत भाषा की श्रेष्ठता अनन्यसाधारण है। |
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| === भारतीय भाषाएं समझने, सीखने में और उन के उपयोग में सरलता === | | === भारतीय भाषाएं समझने, सीखने में और उन के उपयोग में सरलता === |