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| == सामाजिक जीवन का लक्ष्य और ग्राम की व्याख्या == | | == सामाजिक जीवन का लक्ष्य और ग्राम की व्याख्या == |
− | जिस तरह मानव जीवन का व्यक्तिगत स्तर पर लक्ष्य मोक्ष है और मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य इस मोक्ष की ही व्यावहारिक अभिव्यक्ति ‘स्वतंत्रता” है। स्वतंत्रता स्वावलंबन से प्राप्त होती है। सामान्यत: कोई भी मनुष्य अपने आप में स्वावलंबी नहीं बन सकता। अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। अन्यों की मदद अनिवार्य होती है। एक कुटुंब भी अपने आप में पूर्णत: स्वावलंबी नहीं बन सकता। और जो स्वावलंबी नहीं है वह स्वतन्त्र भी नहीं बना सकता। स्वतंत्रता की मात्रा परावलंबन के अनुपात में ही मिल सकती है। जिन बातों में वह स्वावलंबी है उन बातों में वह स्वतन्त्र होता है। और जिन बातों में वह परावलंबी होता है उन बातों में उसका स्वातंत्र्य छिन जाता है। परस्परावलंबन से इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं। यह समायोजन ही ग्राम निर्माण की संकल्पना का आधारभूत तत्त्व है। | + | जिस तरह मानव जीवन का व्यक्तिगत स्तर पर लक्ष्य मोक्ष है और मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य इस मोक्ष की ही व्यावहारिक अभिव्यक्ति ‘स्वतंत्रता” है। स्वतंत्रता स्वावलंबन से प्राप्त होती है। सामान्यत: कोई भी मनुष्य अपने आप में स्वावलंबी नहीं बन सकता। अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। अन्यों की सहायता अनिवार्य होती है। एक कुटुंब भी अपने आप में पूर्णत: स्वावलंबी नहीं बन सकता। और जो स्वावलंबी नहीं है वह स्वतन्त्र भी नहीं बना सकता। स्वतंत्रता की मात्रा परावलंबन के अनुपात में ही मिल सकती है। जिन बातों में वह स्वावलंबी है उन बातों में वह स्वतन्त्र होता है। और जिन बातों में वह परावलंबी होता है उन बातों में उसका स्वातंत्र्य छिन जाता है। परस्परावलंबन से इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं। यह समायोजन ही ग्राम निर्माण की संकल्पना का आधारभूत तत्त्व है। |
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| '''धार्मिक (धार्मिक) ग्राम की संक्षिप्त व्याख्या''' : स्थानिक संसाधनोंपर निर्भर परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय ही ग्राम है। ऐसे ग्राम में स्वतंत्रता और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति का समायोजन होता है। | | '''धार्मिक (धार्मिक) ग्राम की संक्षिप्त व्याख्या''' : स्थानिक संसाधनोंपर निर्भर परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय ही ग्राम है। ऐसे ग्राम में स्वतंत्रता और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति का समायोजन होता है। |
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| # परिवार का एक मुखिया होता है। मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के हित का रक्षण करता है। सभी परिवार के सदस्यों का विश्वास संपादन करता है। मुखिया का निर्णय गलत लगनेपर भी परिवार के सभी सदस्य परिवार के व्यापक हित में मान्य करते हैं। | | # परिवार का एक मुखिया होता है। मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के हित का रक्षण करता है। सभी परिवार के सदस्यों का विश्वास संपादन करता है। मुखिया का निर्णय गलत लगनेपर भी परिवार के सभी सदस्य परिवार के व्यापक हित में मान्य करते हैं। |
| # परिवार में दुर्बल घटकों की जिम्मेदारी बलवान घटकों पर होती है। यह स्वेच्छा से होता है। इसलिये बालक, वृध्द, विधवाएं, रोगी और घर के विकलांगों की जिम्मेदारी परिवार के बलवान सदस्य उठाते हैं। | | # परिवार में दुर्बल घटकों की जिम्मेदारी बलवान घटकों पर होती है। यह स्वेच्छा से होता है। इसलिये बालक, वृध्द, विधवाएं, रोगी और घर के विकलांगों की जिम्मेदारी परिवार के बलवान सदस्य उठाते हैं। |
− | # यथासंभव हर आवश्यकता की पूर्ति परिवार में ही हो जाए ऐसा प्रयास होता है। जिन आवश्यकताओं की पूर्ति घर में नहीं हो सकती उन की पूर्ति के लिये गाँव के अन्य परिवारों की मदद ली जाती है। जिस की जैसी क्षमता, परिवार में वैसी उस की जिम्मेदारी तय होती है। | + | # यथासंभव हर आवश्यकता की पूर्ति परिवार में ही हो जाए ऐसा प्रयास होता है। जिन आवश्यकताओं की पूर्ति घर में नहीं हो सकती उन की पूर्ति के लिये गाँव के अन्य परिवारों की सहायता ली जाती है। जिस की जैसी क्षमता, परिवार में वैसी उस की जिम्मेदारी तय होती है। |
| # परिवार के सदस्यों में स्पर्धा नहीं सहयोग से काम चलते हैं। ईर्ष्या निर्माण कर नहीं, प्रोत्साहन से उत्साह बढाया जाता है। | | # परिवार के सदस्यों में स्पर्धा नहीं सहयोग से काम चलते हैं। ईर्ष्या निर्माण कर नहीं, प्रोत्साहन से उत्साह बढाया जाता है। |
| # परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर प्रेम के संबंध होते हैं। कोई परिवार छोडकर जाने से अन्य सभी सदस्यों को दुख होता है। वह परिवार नही छोडे ऐसा प्रयास परिवार का हर घटक करता है। | | # परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर प्रेम के संबंध होते हैं। कोई परिवार छोडकर जाने से अन्य सभी सदस्यों को दुख होता है। वह परिवार नही छोडे ऐसा प्रयास परिवार का हर घटक करता है। |
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| # गाँव में स्पर्धाएं नही होती थीं। शक्ति के, कला के, कारीगरी के प्रदर्शन होते थे। दुनियाभर के सभी प्रकार के श्रेष्ठ काम, कारीगरी, कला आदि अपने गाँव में हों इस के लिये सब भरसक प्रयास करते थे। | | # गाँव में स्पर्धाएं नही होती थीं। शक्ति के, कला के, कारीगरी के प्रदर्शन होते थे। दुनियाभर के सभी प्रकार के श्रेष्ठ काम, कारीगरी, कला आदि अपने गाँव में हों इस के लिये सब भरसक प्रयास करते थे। |
| # गाँव छोडकर कोई जाता नही था। कोई भी गाँव छोडकर नही जाए ऐसी सब की इच्छा होती थी। वैसा प्रयास भी सब करते थे। फिर भी कोई जाने लगता तो लोग उस की मिन्नतें करते, उसे अपनी ओर से जाने या अनजाने में कुछ तकलीफ हुई होगी उस के लिये क्षमा माँगी जाती। वह गाँव ना छोडकर जाए इसलिये हर संभव प्रयास सब के द्वारा होते थे। | | # गाँव छोडकर कोई जाता नही था। कोई भी गाँव छोडकर नही जाए ऐसी सब की इच्छा होती थी। वैसा प्रयास भी सब करते थे। फिर भी कोई जाने लगता तो लोग उस की मिन्नतें करते, उसे अपनी ओर से जाने या अनजाने में कुछ तकलीफ हुई होगी उस के लिये क्षमा माँगी जाती। वह गाँव ना छोडकर जाए इसलिये हर संभव प्रयास सब के द्वारा होते थे। |
− | # मनुष्य काम करता है, तो गलतियाँ हो सकती है। ऐसी गलतियों के कारण किसी परिवार का कोई सदस्य अन्य परिवारों के लिये कष्ट का कारण बन जाता था। ऐसी स्थिति में उसे सुयोग्य व्यक्तियोंद्वारा यथासंभव समझाने के प्रयास किये जाते थे। दण्डित करने के प्रसंग तो अपवादस्वरूप ही होते थे। इस से परिवारों में परस्पर कडवाहट नही आती थी। परस्पर स्नेह बना रहता था। कठिनाई में एक दूसरे की मदद करने की मानसिकता बनी रहती थी। | + | # मनुष्य काम करता है, तो गलतियाँ हो सकती है। ऐसी गलतियों के कारण किसी परिवार का कोई सदस्य अन्य परिवारों के लिये कष्ट का कारण बन जाता था। ऐसी स्थिति में उसे सुयोग्य व्यक्तियोंद्वारा यथासंभव समझाने के प्रयास किये जाते थे। दण्डित करने के प्रसंग तो अपवादस्वरूप ही होते थे। इस से परिवारों में परस्पर कडवाहट नही आती थी। परस्पर स्नेह बना रहता था। कठिनाई में एक दूसरे की सहायता करने की मानसिकता बनी रहती थी। |
| # हर गाँव में विभिन्न जातियों में व्यवसाय बँटे हुए थे। उन को उस व्यवसाय में पीढियों से काम करने के कारण महारत प्राप्त थी। गाँव की हर आवश्यकता की पूर्ति हो ऐसी व्यवस्था की जाती थी। गाँव में किसी विशेष परिस्थिति का सामना करने के लिये किसी व्यक्तिपर, परिवार पर या जाति पर, उस की योग्यता समझकर कोई जिम्मेदारी दी जाती थी तो वह अपनी पूरी क्षमता के साथ उसे पूरा करते थे। ऐसी जिम्मेदारी स्वीकार कर वे गौरव अनुभव करते थे। | | # हर गाँव में विभिन्न जातियों में व्यवसाय बँटे हुए थे। उन को उस व्यवसाय में पीढियों से काम करने के कारण महारत प्राप्त थी। गाँव की हर आवश्यकता की पूर्ति हो ऐसी व्यवस्था की जाती थी। गाँव में किसी विशेष परिस्थिति का सामना करने के लिये किसी व्यक्तिपर, परिवार पर या जाति पर, उस की योग्यता समझकर कोई जिम्मेदारी दी जाती थी तो वह अपनी पूरी क्षमता के साथ उसे पूरा करते थे। ऐसी जिम्मेदारी स्वीकार कर वे गौरव अनुभव करते थे। |
| # पूरे गाँव के हित में ही गाँव के सभी परिवारों का हित होता है। उसी प्रकार गाँव के परिवारों के हित में ही गाँव का हित होता है। किन्तु हमेशा परिवार के हित से प्राथमिकता गाँव के हित को दी जाती थी। इस हेतु परिवार भी अपने अहित की बात स्वीकार कर गाँव के हित के लिये त्याग करने को तैयार रहता था। इस से अन्य परिवारों के सामने भी उदाहरण बनते थे और गाँव के हित में त्याग करने की परंपरा बन जाती थी। | | # पूरे गाँव के हित में ही गाँव के सभी परिवारों का हित होता है। उसी प्रकार गाँव के परिवारों के हित में ही गाँव का हित होता है। किन्तु हमेशा परिवार के हित से प्राथमिकता गाँव के हित को दी जाती थी। इस हेतु परिवार भी अपने अहित की बात स्वीकार कर गाँव के हित के लिये त्याग करने को तैयार रहता था। इस से अन्य परिवारों के सामने भी उदाहरण बनते थे और गाँव के हित में त्याग करने की परंपरा बन जाती थी। |