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महाराज कृष्णदेवराय कला के बहुत प्रेमी थे इसलिए कोई ना कोई कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने विजयनगर आते रहते थे। एक दिन एक जादूगर अपनी कला का प्रदर्शन करने महाराज के सभा में आया। सभी सभासद जादूगर की कला कुशलता को अच्छी तरह जानते थे कि उसके जैसा कोई अन्य जादूगर पूरे देश में नहीं है। जादूगर ने महाराज एवं सभी सभासदों के समक्ष खड़ा होकर सभी का अभिवादन किया। महाराज से जादूगर ने कहा "महाराज मैंं अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कई राज्यों में घूम चूका हूँ। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आपके समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करने जा रहा हूँ। अगर महाराज आप की आज्ञा हो तो मैं अपनी कला का प्रदर्शन आरंभ करूं।"  
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महाराज कृष्णदेवराय कला के बहुत प्रेमी थे अतः कोई ना कोई कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने विजयनगर आते रहते थे। एक दिन एक जादूगर अपनी कला का प्रदर्शन करने महाराज के सभा में आया। सभी सभासद जादूगर की कला कुशलता को अच्छी तरह जानते थे कि उसके जैसा कोई अन्य जादूगर पूरे देश में नहीं है। जादूगर ने महाराज एवं सभी सभासदों के समक्ष खड़ा होकर सभी का अभिवादन किया। महाराज से जादूगर ने कहा "महाराज मैंं अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कई राज्यों में घूम चूका हूँ। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आपके समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन करने जा रहा हूँ। अगर महाराज आप की आज्ञा हो तो मैं अपनी कला का प्रदर्शन आरंभ करूं।"  
    
जादूगर ने राजसभासदों से कहा "आप सभी लोग मेरी कला के आनंद में डूबने के लिए तैयार हो जाइये । यह मेरा जादू कोई तंत्र मंत्र या मायाजाल नही है, मेरा जादू नजरो का धोखा और मेरे हाथ की सफाई है। मेरा जादू ऐसा है की अगर आप की पलक भी झपक गई तो आनंद का क्षण छुट जायेगा।  बिना पलक झपकाए मेरा जादू देखने के लिए आप सभी तैयार हो जाएँ।"
 
जादूगर ने राजसभासदों से कहा "आप सभी लोग मेरी कला के आनंद में डूबने के लिए तैयार हो जाइये । यह मेरा जादू कोई तंत्र मंत्र या मायाजाल नही है, मेरा जादू नजरो का धोखा और मेरे हाथ की सफाई है। मेरा जादू ऐसा है की अगर आप की पलक भी झपक गई तो आनंद का क्षण छुट जायेगा।  बिना पलक झपकाए मेरा जादू देखने के लिए आप सभी तैयार हो जाएँ।"

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