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साक्षरता में जनजाति समुदाय अन्य लोगों से पीछे हैं, यह दरार शीघ्र ही भरना आवश्यक है । जनजाति क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की संख्या और धनराशि बड़ी मात्रा में प्रावधान करना चाहिए । जनजाति क्षेत्र में विभिन्न कौशलों की शिक्षा देनेवाले विद्यालयों और उच्च शिक्षा केन्द्रों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है ।
 
साक्षरता में जनजाति समुदाय अन्य लोगों से पीछे हैं, यह दरार शीघ्र ही भरना आवश्यक है । जनजाति क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की संख्या और धनराशि बड़ी मात्रा में प्रावधान करना चाहिए । जनजाति क्षेत्र में विभिन्न कौशलों की शिक्षा देनेवाले विद्यालयों और उच्च शिक्षा केन्द्रों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है ।
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भारत की जनजातियाँ शिक्षा में अन्य सामान्य जन संख्या से बहुत पीछे हैं । देश भर में सामान्य जनता में साक्षरता दर ७३% है तो जनजाति जनता में ५९% है । महिला क्षेत्र में सामान्य जनता में साक्षरता दर ६५% है, जो जनजाति महिलाओं में ५०% है । जनजातियों में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्राप आउट) की दर बहुत ज्यादा है । कक्षा एक से दसवीं पढ़नेवालों में सामान्य लड़कियों में ड्राप आउट की संख्या और अधिक है । वनवासियों में
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भारत की जनजातियाँ शिक्षा में अन्य सामान्य जन संख्या से बहुत पीछे हैं । देश भर में सामान्य जनता में साक्षरता दर ७३% है तो जनजाति जनता में ५९% है । महिला क्षेत्र में सामान्य जनता में साक्षरता दर ६५% है, जो जनजाति महिलाओं में ५०% है । जनजातियों में मध्य में ही पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्राप आउट) की दर बहुत ज्यादा है । कक्षा एक से दसवीं पढ़नेवालों में सामान्य लड़कियों में ड्राप आउट की संख्या और अधिक है । वनवासियों में
    
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२०११ की जनगणना के अनुसार (सारणी १ देखें) । जनजातियों की साक्षरता दर ५९ प्रतिशत है जो कि कुल जनसंख्या से १४ प्रतिशत एवं अनुसूचित जातियों की जनसंख्या से भी ७ प्रतिशत कम है ।
 
२०११ की जनगणना के अनुसार (सारणी १ देखें) । जनजातियों की साक्षरता दर ५९ प्रतिशत है जो कि कुल जनसंख्या से १४ प्रतिशत एवं अनुसूचित जातियों की जनसंख्या से भी ७ प्रतिशत कम है ।
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साक्षरता दर में सुधार नामांकन के आँकड़ों में भी झलकता है । मानव विकास संसाधन मंत्रालय के योजना, निगरानी एवं सांख्यिकी ब्यूरों के अनुसार २०१०-११ में प्राथमिक स्तर पर जनजातियों का सकल नामांकन अनुपात बालक एवं बालिका दोनों में १३७ प्रतिशत था । अनुसूचित जातियों के बालकों में १३१ एवं बालिकाओं में १३३ प्रतिशत था एवं कुल जनसंख्या के लिये यह आंकड़ा क्रमशः ११५ एवं ११७ प्रतिशत था । माध्यमिक या उच्च प्राथमिक स्तर पर फिर भी आंकड़ों में आशा की एक किरण दिखाई देती है । २००१ एवं २०११ के बीच जनजातियों की साक्षरता दर में १२ प्रतिशत का सुधार हुआ जो कि कुल जनसंख्या में हुए ८ प्रतिशत के सुधार से भी अधिक है । जनजातियों की महिला साक्षरता में सुधार तो और भी अधिक है; २००१ की तुलना में उनमें १४ प्रतिशत की वृद्धि हुई, इस अवधि में महिलाओं की कुल साक्षरता में ११ प्रतिशत की अच्छी वृद्धि हुई है । पर नामांकन थोड़ा था फिर भी जनजाति लड़कों के लिये ९१ एवं लड़कियों के लिये ८७ प्रतिशत जितना ऊँचा था । सम्बन्धित आँकड़ा अनुसूचित जातियों के लिये क्रमशः ९४ एवं ९१ प्रतिशत था, सम्पूर्ण जनसंख्या के लिये ८८ एवं ८३ प्रतिशत था ।
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साक्षरता दर में सुधार नामांकन के आँकड़ों में भी झलकता है । मानव विकास संसाधन मंत्रालय के योजना, निगरानी एवं सांख्यिकी ब्यूरों के अनुसार २०१०-११ में प्राथमिक स्तर पर जनजातियों का सकल नामांकन अनुपात बालक एवं बालिका दोनों में १३७ प्रतिशत था । अनुसूचित जातियों के बालकों में १३१ एवं बालिकाओं में १३३ प्रतिशत था एवं कुल जनसंख्या के लिये यह आंकड़ा क्रमशः ११५ एवं ११७ प्रतिशत था । माध्यमिक या उच्च प्राथमिक स्तर पर फिर भी आंकड़ों में आशा की एक किरण दिखाई देती है । २००१ एवं २०११ के मध्य जनजातियों की साक्षरता दर में १२ प्रतिशत का सुधार हुआ जो कि कुल जनसंख्या में हुए ८ प्रतिशत के सुधार से भी अधिक है । जनजातियों की महिला साक्षरता में सुधार तो और भी अधिक है; २००१ की तुलना में उनमें १४ प्रतिशत की वृद्धि हुई, इस अवधि में महिलाओं की कुल साक्षरता में ११ प्रतिशत की अच्छी वृद्धि हुई है । पर नामांकन थोड़ा था फिर भी जनजाति लड़कों के लिये ९१ एवं लड़कियों के लिये ८७ प्रतिशत जितना ऊँचा था । सम्बन्धित आँकड़ा अनुसूचित जातियों के लिये क्रमशः ९४ एवं ९१ प्रतिशत था, सम्पूर्ण जनसंख्या के लिये ८८ एवं ८३ प्रतिशत था ।
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परन्तु जनजातियों में बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने
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परन्तु जनजातियों में मध्य में ही पढ़ाई छोड़ देने
    
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धार्मिक भाषा मंच
 
धार्मिक भाषा मंच
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लंबे समय से देश के भीतर और बाहर धार्मिक भाषा-प्रेमियों के बीच में धार्मिक भाषाओं को समृद्ध करने की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक भाषाओं के लिए पूर्णतः समर्पित एक संगठन के गठन की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा था, जिसकी पृष्ठभूमि में भारत के विभिन्न राज्यों में धार्मिक भाषा-प्रेमियों के बीच अनेक संवाद और संगोष्टियाँ हुई, जिनमें गम्भीर चर्चा के पश्चात्‌ यह निर्णय लिया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर “धार्मिक भाषा मंच' का गठन किया जाए, जो धार्मिक भाषाओं के हितों की रक्षा और समृद्धि हेतु कार्य करे ।
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लंबे समय से देश के भीतर और बाहर धार्मिक भाषा-प्रेमियों के मध्य में धार्मिक भाषाओं को समृद्ध करने की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक भाषाओं के लिए पूर्णतः समर्पित एक संगठन के गठन की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा था, जिसकी पृष्ठभूमि में भारत के विभिन्न राज्यों में धार्मिक भाषा-प्रेमियों के मध्य अनेक संवाद और संगोष्टियाँ हुई, जिनमें गम्भीर चर्चा के पश्चात्‌ यह निर्णय लिया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर “धार्मिक भाषा मंच' का गठन किया जाए, जो धार्मिक भाषाओं के हितों की रक्षा और समृद्धि हेतु कार्य करे ।
    
भाषा की आजादी ही हमारी वास्तविक आजादी है, 'निज भाषा की उन्नति ही सब प्रकार की उन्नति का आधार है' इस सूत्र को साकार करने तथा धार्मिक भाषाओं के विकास व प्रसार, दैनिक कार्यों में स्व-भाषा के प्रयोग को बढावा देने के लिए धार्मिक भाषा मंच का गठन दिनांक २०-१२-२०१५ को नई दिल्ली में किया गया । यह सर्व-विदित तथ्य है कि सभी धार्मिक भाषाओं की मूल वर्ण्माला, वाक्य विन्यास तथा वर्ण्य विषय, लगभग एक समान हैं, परन्तु गुलामी के कालखण्ड में ट्रविड-आर्य-भेद्‌ डालकर भाषाई वैमनस्य को बढ़ावा दिया गया, इसी वैमनस्य की खाई को पाटने के लिए धार्मिक भाषा मंच के रूप में यह पहल है ।
 
भाषा की आजादी ही हमारी वास्तविक आजादी है, 'निज भाषा की उन्नति ही सब प्रकार की उन्नति का आधार है' इस सूत्र को साकार करने तथा धार्मिक भाषाओं के विकास व प्रसार, दैनिक कार्यों में स्व-भाषा के प्रयोग को बढावा देने के लिए धार्मिक भाषा मंच का गठन दिनांक २०-१२-२०१५ को नई दिल्ली में किया गया । यह सर्व-विदित तथ्य है कि सभी धार्मिक भाषाओं की मूल वर्ण्माला, वाक्य विन्यास तथा वर्ण्य विषय, लगभग एक समान हैं, परन्तु गुलामी के कालखण्ड में ट्रविड-आर्य-भेद्‌ डालकर भाषाई वैमनस्य को बढ़ावा दिया गया, इसी वैमनस्य की खाई को पाटने के लिए धार्मिक भाषा मंच के रूप में यह पहल है ।

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