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१३ से १९ वर्ष के बालक टीन एजर्स कहे जाते है। अमेरिकनों को ऐसे विचित्र शब्दप्रयोग कर किसी भी चीज पर अपना ठप्पा लगाने की बहुत बुरी आदत है। उसी में से यह 'मोडस', हिप्पी, 'टीनएजर्स' पैदा हुए हैं । उसमें भी थर्टीन-फोर्टीन या सेवंटीन - नाइंटीन जैसे अलग हिस्से हैं। इन बच्चों को उपद्रव करने की खुली छूट होती है। हर गुट के कपड़ों की भी अलग अलग विशेषताएँ हैं ।जैसे जनजातियों के लोग अपनी अपनी विशेषताएँ दिखाने के लिये विभिन्न वेश पहनते है ऐसा ही इन लोगों का होता है। वेशभूषा के समाजमान्य बंधन फेंक देने वाले हिप्पियों ने भी अंत में 'हिप्पी' वेशभूषा और केशभूषा का बन्धन अपना ही लिया है। अच्छे कपड़ों को चीथडा बनाकर पहनने की भी किसी गुट की फैशन बन गयी है। कारण अंत में तो अनुकरण करनेवालों की संख्या ही अधिक होती है। फिर चाहे वह एस्टाब्लिशमेंट वाला हो या एण्टी एस्टाब्लिशमेंट वाला।
 
१३ से १९ वर्ष के बालक टीन एजर्स कहे जाते है। अमेरिकनों को ऐसे विचित्र शब्दप्रयोग कर किसी भी चीज पर अपना ठप्पा लगाने की बहुत बुरी आदत है। उसी में से यह 'मोडस', हिप्पी, 'टीनएजर्स' पैदा हुए हैं । उसमें भी थर्टीन-फोर्टीन या सेवंटीन - नाइंटीन जैसे अलग हिस्से हैं। इन बच्चों को उपद्रव करने की खुली छूट होती है। हर गुट के कपड़ों की भी अलग अलग विशेषताएँ हैं ।जैसे जनजातियों के लोग अपनी अपनी विशेषताएँ दिखाने के लिये विभिन्न वेश पहनते है ऐसा ही इन लोगों का होता है। वेशभूषा के समाजमान्य बंधन फेंक देने वाले हिप्पियों ने भी अंत में 'हिप्पी' वेशभूषा और केशभूषा का बन्धन अपना ही लिया है। अच्छे कपड़ों को चीथडा बनाकर पहनने की भी किसी गुट की फैशन बन गयी है। कारण अंत में तो अनुकरण करनेवालों की संख्या ही अधिक होती है। फिर चाहे वह एस्टाब्लिशमेंट वाला हो या एण्टी एस्टाब्लिशमेंट वाला।
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न्यूयोर्क का ग्रिनिच विलेज यह गोरे वैरागी स्त्री-पुरुषों का आश्रयस्थान है । यहाँ मेरे लिये सब से अधिक आश्चर्य का विषय है इस पंथ के लिये आवश्यक सभी चीजों का व्यापार कर समृद्ध बननेवाले व्यापारियों का । उत्तम सूट और उत्तम गाउन यह प्रस्थापित समाज की विशेषता । प्रस्थापितों के सामने विद्रोह करनेवाले युवक-युवतियों ने अपना विरोध उस वेश को नकार कर प्रकट किया । अव्यवस्थित बाल और फटे कपडे उनकी पहचान बने । व्यापारियों ने इसीका व्यापार शुरू किया। व्यापारी को क्या ? वह तो जो भी खरीदा जाएगा वह बेचेगा। याने परंपरावादियों की चोटी और विद्रोही की दाढी दोनों अंततोगत्वा बनिये के हाथ मेंही है।
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न्यूयोर्क का ग्रिनिच विलेज यह गोरे वैरागी स्त्री-पुरुषों का आश्रयस्थान है । यहाँ मेरे लिये सब से अधिक आश्चर्य का विषय है इस पंथ के लिये आवश्यक सभी चीजों का व्यापार कर समृद्ध बननेवाले व्यापारियों का । उत्तम सूट और उत्तम गाउन यह प्रस्थापित समाज की विशेषता । प्रस्थापितों के सामने विद्रोह करनेवाले युवक-युवतियों ने अपना विरोध उस वेश को नकार कर प्रकट किया । अव्यवस्थित बाल और फटे कपडे उनकी पहचान बने । व्यापारियों ने इसीका व्यापार आरम्भ किया। व्यापारी को क्या ? वह तो जो भी खरीदा जाएगा वह बेचेगा। याने परंपरावादियों की चोटी और विद्रोही की दाढी दोनों अंततोगत्वा बनिये के हाथ मेंही है।
    
कभी कभी तो लगता है कि यह युवा पिढी अपने जीवन को जानबुझ कर बरबाद कर रही है या उसके पीछे कोई विचार भी है ? या फिर कोई रोग प्रसरने पर लोग जैसे मरते हैं, उसी प्रकार यह महाभयंकर प्रचार यंत्रणा ने उनकी सारी विचारशक्ति को नष्ट कर उन्हें हर बार किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार बनाया है ? एक तो इन बच्चों के साथ संवाद असंभव है। वैसे तो अमेरिकन लोग बहुत अनौपचारिक हैं। 'हाय' कहकर अनजान व्यक्ति का भी स्वागत करेंगे, बतियाएंगे। परंतु जोगियों की यह नई जमात बिलकुल हाथ नहीं बढाती है । अपने गुट के बाहर के किसी भी व्यक्ति के साथ बात करने की उनकी सदंतर अनिच्छा रहती है। एक तो महाभयानक मादक द्रव्यों के सेवन के कारण वे सदैव भ्रमित रहते हैं, नहीं तो बिना दुनिया की परवा किये विजातीय मित्रों के साथ घुमते नजर आते हैं। अपने यहाँ के बैरागियों की तरह उनके भी कई पंथ हैं। अब तो प्रत्येक पंथ के अलग तिलक और मालाएँ भी हैं। उसमें भी 'हरे रामा हरे कृष्णा' वाले लोग तो दिनभर एक ही पंक्ति एक ही ताल में गाते हुए घुमने के कारण आत्मसंमोहन की अवस्था में ही रहते हैं। चमकते मुंड, लंबी चोटी, माथे पर छपी विविध मुद्राएँ, अर्धनग्न, पिली धोती और गले में माला, तंबूर,मृदंग, झांझ लेकर रास्ते पर घुम रहे हैं। कुछ लोग संपूर्ण नग्न, कुछ टोपलेस, याने शरीर पर चोली आदि कुछ नहीं। कमर से नीचे मिनी यानी चार इंच लंबा स्कर्ट । तो किसी गुट में लडकियाँ मेक्सी माने लंबा मारवाडी घाघरा पहनी हुई।
 
कभी कभी तो लगता है कि यह युवा पिढी अपने जीवन को जानबुझ कर बरबाद कर रही है या उसके पीछे कोई विचार भी है ? या फिर कोई रोग प्रसरने पर लोग जैसे मरते हैं, उसी प्रकार यह महाभयंकर प्रचार यंत्रणा ने उनकी सारी विचारशक्ति को नष्ट कर उन्हें हर बार किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार बनाया है ? एक तो इन बच्चों के साथ संवाद असंभव है। वैसे तो अमेरिकन लोग बहुत अनौपचारिक हैं। 'हाय' कहकर अनजान व्यक्ति का भी स्वागत करेंगे, बतियाएंगे। परंतु जोगियों की यह नई जमात बिलकुल हाथ नहीं बढाती है । अपने गुट के बाहर के किसी भी व्यक्ति के साथ बात करने की उनकी सदंतर अनिच्छा रहती है। एक तो महाभयानक मादक द्रव्यों के सेवन के कारण वे सदैव भ्रमित रहते हैं, नहीं तो बिना दुनिया की परवा किये विजातीय मित्रों के साथ घुमते नजर आते हैं। अपने यहाँ के बैरागियों की तरह उनके भी कई पंथ हैं। अब तो प्रत्येक पंथ के अलग तिलक और मालाएँ भी हैं। उसमें भी 'हरे रामा हरे कृष्णा' वाले लोग तो दिनभर एक ही पंक्ति एक ही ताल में गाते हुए घुमने के कारण आत्मसंमोहन की अवस्था में ही रहते हैं। चमकते मुंड, लंबी चोटी, माथे पर छपी विविध मुद्राएँ, अर्धनग्न, पिली धोती और गले में माला, तंबूर,मृदंग, झांझ लेकर रास्ते पर घुम रहे हैं। कुछ लोग संपूर्ण नग्न, कुछ टोपलेस, याने शरीर पर चोली आदि कुछ नहीं। कमर से नीचे मिनी यानी चार इंच लंबा स्कर्ट । तो किसी गुट में लडकियाँ मेक्सी माने लंबा मारवाडी घाघरा पहनी हुई।
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मुझे उनमें से एक ने पकडा और पंथ प्रचार शुरू किया।
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मुझे उनमें से एक ने पकडा और पंथ प्रचार आरम्भ किया।
    
मैंने पूछा 'यह क्या है ?'  
 
मैंने पूछा 'यह क्या है ?'  
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'ध ओपोझीट ओफ क्रिस्ना कोंश्यसनेस ।' कहते हुए राम:रामौ रामा: तक के सभी विभक्ती प्रत्यय सुना दिये । वह बेचारा स्तब्ध रह गया ।
 
'ध ओपोझीट ओफ क्रिस्ना कोंश्यसनेस ।' कहते हुए राम:रामौ रामा: तक के सभी विभक्ती प्रत्यय सुना दिये । वह बेचारा स्तब्ध रह गया ।
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इस भ्रमित लोगों के देश में धार्मिक साधुओं ने बराबर अडिंगा जमाया है। मैं एक परिवार में भोजन करने गया था। उस गृहस्थ को मैंने 'हरे रामा हरे क्रिस्ना' के बारे में पूछा । मैं उन्हें समझाने का प्रयास कर रहा था कि इसमें बहुत धोखाधडी है। आपकी युवा पिढी जिस प्रकार कामधाम छोड कर रास्तों पर भटक रही है वैसे अगर हमारे बच्चे घुमना शुरू करेंगे तो हम उसे पसंद नहीं करेंगे । आप इन धूर्तों पर विश्वास मत किजिये । हिंद धर्म में इस प्रकार अपने कर्तव्य छोड कर घुमते रहने का उपदेश नहीं किया गया है। कभी गुरुवार, एकादशी को भजन वगैरा हो यह ठीक है पर यहाँ की बात उचित नहीं है । आप यह विचित्र आदत बच्चों को न पड़ने दें।'
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इस भ्रमित लोगों के देश में धार्मिक साधुओं ने बराबर अडिंगा जमाया है। मैं एक परिवार में भोजन करने गया था। उस गृहस्थ को मैंने 'हरे रामा हरे क्रिस्ना' के बारे में पूछा । मैं उन्हें समझाने का प्रयास कर रहा था कि इसमें बहुत धोखाधडी है। आपकी युवा पिढी जिस प्रकार कामधाम छोड कर रास्तों पर भटक रही है वैसे अगर हमारे बच्चे घुमना आरम्भ करेंगे तो हम उसे पसंद नहीं करेंगे । आप इन धूर्तों पर विश्वास मत किजिये । हिंद धर्म में इस प्रकार अपने कर्तव्य छोड कर घुमते रहने का उपदेश नहीं किया गया है। कभी गुरुवार, एकादशी को भजन वगैरा हो यह ठीक है पर यहाँ की बात उचित नहीं है । आप यह विचित्र आदत बच्चों को न पड़ने दें।'
    
'बुरा मत मानना मिस्टर देशपांडे, पर हमें लगता है कि हशीश या एल.एस.डी के व्यसन से यह व्यसन कम नुकसान देह है। गृहलक्ष्मीने अत्यंत वेदनापूर्ण हृदय से कहा।
 
'बुरा मत मानना मिस्टर देशपांडे, पर हमें लगता है कि हशीश या एल.एस.डी के व्यसन से यह व्यसन कम नुकसान देह है। गृहलक्ष्मीने अत्यंत वेदनापूर्ण हृदय से कहा।
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'हेलो'
 
'हेलो'
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'ऑह' मिस्टर साहस्राबुढिये (सहस्रबुद्धे) ?फिर एक बार सुपरसेल्समेनशीप शुरू हुई। दफनभूमि के सौदे पर सहमत करने के लिये फिर एक बार उसने अपनी सभी शक्तियाँ दांव पर लगाई। अगर साहब भारत में होते और अग्निसंस्कार वाले ने 'साहब बांस सीधे आये हैं, चार आपके लिये अलग रख दूं क्या ?' ऐसा पूछा होता तो साहब ने उसको जिंदा ही ननामी पर बांधा होता । पर यह अमेरिका था। साहब ने नम्रता से कहा,'थेक्यु, थेंक्यु सो मच । पर हमारे धर्म में बेरियल नहीं होता क्रिमेशन होता है। 'इझंट धेट बार्बर ? गुड नाइट ।' दूसरी ओर से उसने कहा, क्या यह जंगालियत नहीं है? शुभरात्री ।' यह कथा काल्पनिक नहीं है । मात्र पात्रों के नाम बदले हैं।
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'ऑह' मिस्टर साहस्राबुढिये (सहस्रबुद्धे) ?फिर एक बार सुपरसेल्समेनशीप आरम्भ हुई। दफनभूमि के सौदे पर सहमत करने के लिये फिर एक बार उसने अपनी सभी शक्तियाँ दांव पर लगाई। अगर साहब भारत में होते और अग्निसंस्कार वाले ने 'साहब बांस सीधे आये हैं, चार आपके लिये अलग रख दूं क्या ?' ऐसा पूछा होता तो साहब ने उसको जिंदा ही ननामी पर बांधा होता । पर यह अमेरिका था। साहब ने नम्रता से कहा,'थेक्यु, थेंक्यु सो मच । पर हमारे धर्म में बेरियल नहीं होता क्रिमेशन होता है। 'इझंट धेट बार्बर ? गुड नाइट ।' दूसरी ओर से उसने कहा, क्या यह जंगालियत नहीं है? शुभरात्री ।' यह कथा काल्पनिक नहीं है । मात्र पात्रों के नाम बदले हैं।
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जहाँ जीवन माने कुछ बेच के धनवान होने का अवसर इतना ही होता है वहाँ मुर्दे गाडने की भूमि बेचीए या पिढियों को बरबाद करनेवाले हशीश,गांजे जैसे मादक द्रव्य, सबकुछ उस संस्कृति के अनुरूप ही है। शस्त्रों की बिक्री कम हो जाएगी इस भय के मारे जिसे कोई लेनादेना नहीं ऐसे देश में जाकर बोम्ब गिरा देना, हम क्या बेच रहे हैं और उसका क्या परिणाम होगा उसके बारे में बिना कुछ सोचे बेचते रहना, उसके नये नये बाझार खोजना, विज्ञापन के नये नये तरीके खोजना,और उपर से बिक्रेताओं की जानलेवा स्पर्धा । बाझार में आनेवाला प्रतिस्पर्धी का सामान नष्ट करते करते प्रतिस्पर्धी को ही कैसे नष्ट किया जाय उसकी योजनाएं बनाना । ग्राहक की विवेकबुद्धि ही नष्ट करना। यह सब करते समय कोई विधिनिषेध का पालन नहीं करना । १२-१३ साल के बच्चों को मादक द्रव्य बेचनेवाले व्यापारियों के समक्ष उन बच्चों का भविष्य आता ही नहीं है। टीवी पर 'हत्या कैसे करना' उसकी शास्त्रीयशिक्षा देनेवालों को हम बालमन पर कैसे संस्कार कर रहे हैं इसकी कोई चिन्ता नहीं है । पूरे दिन मारधाड की फिल्में आती रहती हो तब मध्य में 'सीसमी स्ट्रीट' जैसे कितने भी शैक्षिक कार्यक्रम कर लें, पर उन बच्चों के सामने तो गोलियों की बौछार कर मुर्दो के ढेर लगाता हिरो और ऐसे हिरो को नग्न होकर आलिंगन देनेवाली हिरोइन्स ही रहते हैं। मात्र १५ साल की आयु में जीवन के सभी विलास बिना किसी जिम्मेवारी के भोग  लेने के बाद आगे की जिदगी में किसी न किसीप्रकार की कृत्रिम उत्तेजना के बिना जीना ही असंभव हो जाता है। इसीमें से फीर मोटरसाइकल्स लेकर बेफाम घूमना शुरू हो जाता है । अनजान युगलों का बेफाम सहशयन शुरू होता है और इन सब का अतिरेक होने के बाद उसका नशा भी बेअसर हो जाता है। फिर उत्तेजना बढाने के लिये सायकेडेलिक विद्युतदीपों और कान बेहरे कर देने वाले संगीत में बेहोश होने के प्रयास शुरू हो जाते हैं।
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जहाँ जीवन माने कुछ बेच के धनवान होने का अवसर इतना ही होता है वहाँ मुर्दे गाडने की भूमि बेचीए या पिढियों को बरबाद करनेवाले हशीश,गांजे जैसे मादक द्रव्य, सबकुछ उस संस्कृति के अनुरूप ही है। शस्त्रों की बिक्री कम हो जाएगी इस भय के मारे जिसे कोई लेनादेना नहीं ऐसे देश में जाकर बोम्ब गिरा देना, हम क्या बेच रहे हैं और उसका क्या परिणाम होगा उसके बारे में बिना कुछ सोचे बेचते रहना, उसके नये नये बाझार खोजना, विज्ञापन के नये नये तरीके खोजना,और उपर से बिक्रेताओं की जानलेवा स्पर्धा । बाझार में आनेवाला प्रतिस्पर्धी का सामान नष्ट करते करते प्रतिस्पर्धी को ही कैसे नष्ट किया जाय उसकी योजनाएं बनाना । ग्राहक की विवेकबुद्धि ही नष्ट करना। यह सब करते समय कोई विधिनिषेध का पालन नहीं करना । १२-१३ साल के बच्चों को मादक द्रव्य बेचनेवाले व्यापारियों के समक्ष उन बच्चों का भविष्य आता ही नहीं है। टीवी पर 'हत्या कैसे करना' उसकी शास्त्रीयशिक्षा देनेवालों को हम बालमन पर कैसे संस्कार कर रहे हैं इसकी कोई चिन्ता नहीं है । पूरे दिन मारधाड की फिल्में आती रहती हो तब मध्य में 'सीसमी स्ट्रीट' जैसे कितने भी शैक्षिक कार्यक्रम कर लें, पर उन बच्चों के सामने तो गोलियों की बौछार कर मुर्दो के ढेर लगाता हिरो और ऐसे हिरो को नग्न होकर आलिंगन देनेवाली हिरोइन्स ही रहते हैं। मात्र १५ साल की आयु में जीवन के सभी विलास बिना किसी जिम्मेवारी के भोग  लेने के बाद आगे की जिदगी में किसी न किसीप्रकार की कृत्रिम उत्तेजना के बिना जीना ही असंभव हो जाता है। इसीमें से फीर मोटरसाइकल्स लेकर बेफाम घूमना आरम्भ हो जाता है । अनजान युगलों का बेफाम सहशयन आरम्भ होता है और इन सब का अतिरेक होने के बाद उसका नशा भी बेअसर हो जाता है। फिर उत्तेजना बढाने के लिये सायकेडेलिक विद्युतदीपों और कान बेहरे कर देने वाले संगीत में बेहोश होने के प्रयास आरम्भ हो जाते हैं।
    
और अंत में दिमाग में इन सबका कीचड ही बच जाता है।
 
और अंत में दिमाग में इन सबका कीचड ही बच जाता है।
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अपने साधुओं के जैसे अखाडे होते हैं उसी प्रकार हिप्पियों के 'पेडस' होते हैं। अपने साधुओं की तरह ये लोग भी गंजेरी होते हैं । मादक पदार्थों के कारण इंस्टंट' समाधि लगती है। फिर यह थोक में हशीश गाँजा बेचनेवाली टोलियाँ बनती है। उनका वह गैरकानुनी व्यापार, आपस का खूनखराबा, उसी में से बना माफिया जैसा भयानक संगठन तो आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियाँ चलाता है। मानवहत्या तो वहाँ रोजाना की चीज है।
 
अपने साधुओं के जैसे अखाडे होते हैं उसी प्रकार हिप्पियों के 'पेडस' होते हैं। अपने साधुओं की तरह ये लोग भी गंजेरी होते हैं । मादक पदार्थों के कारण इंस्टंट' समाधि लगती है। फिर यह थोक में हशीश गाँजा बेचनेवाली टोलियाँ बनती है। उनका वह गैरकानुनी व्यापार, आपस का खूनखराबा, उसी में से बना माफिया जैसा भयानक संगठन तो आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियाँ चलाता है। मानवहत्या तो वहाँ रोजाना की चीज है।
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न्यूयोर्क, शिकागो, डिट्रोइट आदि शहर यमपुरी जैसी भयपुरियाँ बन चुके हैं। कहीं काले-गोरे का संघर्ष, कहीं अत्याधुनिक लूटखसोट और उनके संगठनों के मध्य के संघर्ष और इस सब को मिलनेवाली बेशूमार प्रसिद्धि । सभी चीजों का अनापशनाप उत्पादन । डिट्रोइट का फॉर्ड मोटर का कारखाना देखने गया था वहाँ करीब करीब प्रतिमिनिट एक कार तैयार होती है। कारखाने के एक छोर पर लोहे का रस खौलता रहता है। सरकते पट्टे पर उसका प्रवास शुरू होता है। उसके पतरे बनते हैं, उनको आकार मिलता है, चारों तरफ से अलग अलग पुर्जे आते हैं, कंप्युटर की सहायता से जो भी रंग की मोटर चाहिये उस रंग के पार्टस योग्य स्थान पर आ जाते हैं,तीन चार फीट गहरी नालियों में उसे कसनेवाले कारीगर रहते हैं, आये हुए पुों को वे जोडते जाते हैं, दरवाजे, लाइट्स जुड़ते जाते हैं और देखते देखते मोटर तैयार हो जाती है । अंत में उसमें पेट्रोल डलता है और कार रास्ते पर आती है। प्रतिदिन आठ- नौ सौ कार्स बनती है । यह तो फॉर्ड के एक कारखाने की बात हुई । ऐसे असंख्य कारखाने प्रतिदिन हजारों कार्स तैयार करते हैं। फीर कुशल विज्ञापनकर्ता नये नये प्रकार से उसका गुणगान करते हैं और मोटर्स का स्तुतिपाठ निरंतर चलता रहता है । रेडियो -सिनेमा-टीवी सभी जगह निरंतर यही चलता रहता है। अमेरिका में अब करीब करीब सब के पास कार है । नया मोडेल आता है तो गत वर्ष वाली कार पुरानी हो जाती है । लोग हमें पिछडा कहेंगे ऐसा भय भी रहता है। पुरानी कार सस्ते में निकाल देना और नयी खरीदना चलता रहता है।
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न्यूयोर्क, शिकागो, डिट्रोइट आदि शहर यमपुरी जैसी भयपुरियाँ बन चुके हैं। कहीं काले-गोरे का संघर्ष, कहीं अत्याधुनिक लूटखसोट और उनके संगठनों के मध्य के संघर्ष और इस सब को मिलनेवाली बेशूमार प्रसिद्धि । सभी चीजों का अनापशनाप उत्पादन । डिट्रोइट का फॉर्ड मोटर का कारखाना देखने गया था वहाँ करीब करीब प्रतिमिनिट एक कार तैयार होती है। कारखाने के एक छोर पर लोहे का रस खौलता रहता है। सरकते पट्टे पर उसका प्रवास आरम्भ होता है। उसके पतरे बनते हैं, उनको आकार मिलता है, चारों तरफ से अलग अलग पुर्जे आते हैं, कंप्युटर की सहायता से जो भी रंग की मोटर चाहिये उस रंग के पार्टस योग्य स्थान पर आ जाते हैं,तीन चार फीट गहरी नालियों में उसे कसनेवाले कारीगर रहते हैं, आये हुए पुों को वे जोडते जाते हैं, दरवाजे, लाइट्स जुड़ते जाते हैं और देखते देखते मोटर तैयार हो जाती है । अंत में उसमें पेट्रोल डलता है और कार रास्ते पर आती है। प्रतिदिन आठ- नौ सौ कार्स बनती है । यह तो फॉर्ड के एक कारखाने की बात हुई । ऐसे असंख्य कारखाने प्रतिदिन हजारों कार्स तैयार करते हैं। फीर कुशल विज्ञापनकर्ता नये नये प्रकार से उसका गुणगान करते हैं और मोटर्स का स्तुतिपाठ निरंतर चलता रहता है । रेडियो -सिनेमा-टीवी सभी जगह निरंतर यही चलता रहता है। अमेरिका में अब करीब करीब सब के पास कार है । नया मोडेल आता है तो गत वर्ष वाली कार पुरानी हो जाती है । लोग हमें पिछडा कहेंगे ऐसा भय भी रहता है। पुरानी कार सस्ते में निकाल देना और नयी खरीदना चलता रहता है।
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इतना ही नहीं तो ये सभी चीजें किश्तों में मिलती है। अमेरिका में हर घर में दिखनेवाला फ्रीझ, फर्निचर, अनेक प्रकार के विद्युत उपकरण,मकान आदि सब किश्तों में प्राप्य है । अर्थात चीजें खरीदते जाना और उसके पैसे भरने के लिये कमाते जाना, उसमें भी निरंतर बदलती रहनेवाली फैशंस । विंटर फैशन, समर फैशन, ख्रिसमस फैशन । गत जाडे में पहना हुआ कोट इस जाडे में निकम्मा हो जाता है। गत माह का गाउन आज नहीं चलेगा। सास ने पहनी हुई बनारसी साडी आज पुत्रवधू भी पहन रही है यह द्रश्य वहाँ संभव ही नहीं है। फेंक दो। गाउन तो लोगों को दिखता भी है पर अंतर्वस्त्रो   की फैशन भी हरमाह बदलती है। महिलाओं की केशभूषा करनेवालों का व्यवसाय जोर में चलता है। अब तो ९० प्रतिशत महिलाएं विविध फैशन की विग्स ही पहनती है। और हर महिला के पास असंख्य विग्झ । यह तो हुई तारुण्य खो रही महिलाओं की मशक्कत । छे दशक पूर्ण कर चूकी वृद्धाएं भी चेहरे की झुरींयाँ ढकने के लिये निरंतर प्रयासरत । नवयौवनाएं अब बाल खुला रख चीथडे पहन कर घुमने में जीवन की धन्यता मानती है । पर एक बार पचीसी पर पहुंचते ही वह पुरानी हो जाती है। फिर शुरू होती है स्थायी साथी की खोज । अगर सौभाग्य से वह मिल गया तो भाग्य, नहीं तो जीवन कटि पतंग की तरह दिशाहीन होकर एकाकी वार्धक्य की ओर बढता है।
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इतना ही नहीं तो ये सभी चीजें किश्तों में मिलती है। अमेरिका में हर घर में दिखनेवाला फ्रीझ, फर्निचर, अनेक प्रकार के विद्युत उपकरण,मकान आदि सब किश्तों में प्राप्य है । अर्थात चीजें खरीदते जाना और उसके पैसे भरने के लिये कमाते जाना, उसमें भी निरंतर बदलती रहनेवाली फैशंस । विंटर फैशन, समर फैशन, ख्रिसमस फैशन । गत जाडे में पहना हुआ कोट इस जाडे में निकम्मा हो जाता है। गत माह का गाउन आज नहीं चलेगा। सास ने पहनी हुई बनारसी साडी आज पुत्रवधू भी पहन रही है यह द्रश्य वहाँ संभव ही नहीं है। फेंक दो। गाउन तो लोगों को दिखता भी है पर अंतर्वस्त्रो   की फैशन भी हरमाह बदलती है। महिलाओं की केशभूषा करनेवालों का व्यवसाय जोर में चलता है। अब तो ९० प्रतिशत महिलाएं विविध फैशन की विग्स ही पहनती है। और हर महिला के पास असंख्य विग्झ । यह तो हुई तारुण्य खो रही महिलाओं की मशक्कत । छे दशक पूर्ण कर चूकी वृद्धाएं भी चेहरे की झुरींयाँ ढकने के लिये निरंतर प्रयासरत । नवयौवनाएं अब बाल खुला रख चीथडे पहन कर घुमने में जीवन की धन्यता मानती है । पर एक बार पचीसी पर पहुंचते ही वह पुरानी हो जाती है। फिर आरम्भ होती है स्थायी साथी की खोज । अगर सौभाग्य से वह मिल गया तो भाग्य, नहीं तो जीवन कटि पतंग की तरह दिशाहीन होकर एकाकी वार्धक्य की ओर बढता है।
    
इस दिग्भ्रमित समाज में सर चकरा देनेवाली अस्थिरता ही सत्य है । परिवारसंस्था तो इतनी चरमरा गई है कि यह जहाज कहाँ और कब डूबेगा यह समज में भी नहीं आता है। मोटर सुलभ और रास्ते चौडे और चमकते होने के कारण लोग सौ -डेढसौ मील से व्यवसाय करने आते हैं । धनिक लोग अपने निजी विमानों में आते हैं। इसलिये उपनगरों में पूरा पुरुषवर्ग दिनभर घर से बाहर रहता है। अधिकांश महिलाएं भी काम पर जाती है। उसमें से अनेक समस्याएँ और उन समस्याओं से भी अधिक भयानक नये नये अनाचार । उसमें से एक है 'स्वेपिंग वाइफ'। अनेक युगल शरीरसुख के लिये आपस में अदलबदल करते हैं । प्रतिदिन नावीन्य के पीछे भटकने के पागलपन में से यह एक नया पागलपन । इन भयंकर लीलाओं में भी और एक अगाध लीला माने समलैंगिक पुरुषों की शादियाँ । विवाह में वधु का अस्तित्व ही नहीं । दोनो वर ।
 
इस दिग्भ्रमित समाज में सर चकरा देनेवाली अस्थिरता ही सत्य है । परिवारसंस्था तो इतनी चरमरा गई है कि यह जहाज कहाँ और कब डूबेगा यह समज में भी नहीं आता है। मोटर सुलभ और रास्ते चौडे और चमकते होने के कारण लोग सौ -डेढसौ मील से व्यवसाय करने आते हैं । धनिक लोग अपने निजी विमानों में आते हैं। इसलिये उपनगरों में पूरा पुरुषवर्ग दिनभर घर से बाहर रहता है। अधिकांश महिलाएं भी काम पर जाती है। उसमें से अनेक समस्याएँ और उन समस्याओं से भी अधिक भयानक नये नये अनाचार । उसमें से एक है 'स्वेपिंग वाइफ'। अनेक युगल शरीरसुख के लिये आपस में अदलबदल करते हैं । प्रतिदिन नावीन्य के पीछे भटकने के पागलपन में से यह एक नया पागलपन । इन भयंकर लीलाओं में भी और एक अगाध लीला माने समलैंगिक पुरुषों की शादियाँ । विवाह में वधु का अस्तित्व ही नहीं । दोनो वर ।
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कुछ सुंदर जंगलों में जाकर तंबुओं में रहना, खुले में रहना । पर उन जंगलों में भी छुट्टियों के दिनों में हजारों तंबु लगे रहते हैं । याने वहाँ पर भी वैसी ही भीडभाड । मात्र मन को समझाना कि हम शहर से दूर आये हैं। वहाँ भी पोर्टेबल टीवी हैं। रात रात भर उदंड नाचगान चलते हैं, पर शांति मिलने की एक आशा भी है।
 
कुछ सुंदर जंगलों में जाकर तंबुओं में रहना, खुले में रहना । पर उन जंगलों में भी छुट्टियों के दिनों में हजारों तंबु लगे रहते हैं । याने वहाँ पर भी वैसी ही भीडभाड । मात्र मन को समझाना कि हम शहर से दूर आये हैं। वहाँ भी पोर्टेबल टीवी हैं। रात रात भर उदंड नाचगान चलते हैं, पर शांति मिलने की एक आशा भी है।
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ऐसी इस दिशाहीन घुमक्कड में से ही दुनियाभर मे घुमते अमेरिकन टुरिस्टों का उदय हुआ होगा। 'टुरीझम एक बडा व्यवसाय हो गया है इतना ही नहीं तो अमेरिकन टुरिस्टों को अपने देश में खिंचकर ले जाने की स्पर्धा भी शुरू हुई है। कोई भी प्राचीन इमारत या द्रश्यों को निरंतर अपने केमेरे में कैद करते फिरते ये टूरिस्टों को पागल ही कहा जा सकता है। भारत के स्मशान भी अब 'टुरिस्ट एटेक्शन सेंटर्स' बन चुके हैं । हिंदु अग्निसंस्कार का इन लोगों में अति विकृत आकर्षण है। जहाँ जीवन किट पतंग की तरह है ऐसी झोंपडपट्टियाँ देखने का इन्हें ताजमहाल से भी अधिक आकर्षण है। समृद्ध अमेरिका के लोगों को उसमें न्यू और एक्साइटिंग' कुछ मिल जाता है। उन्हें एक्साइटमेंट कहाँ से मिलेगा यह कहा ही नहीं जा सकता है। एक धार्मिक नाटक में एक व्यक्ति शक्कर में से बने हाथी और उंट बेचता है । यहाँ तो मिठाईवाले चोकलेट में से आदमकद मनुष्य बनाते हैं। द्रश्य होता है सोये हुए जीवित मनुष्य जैसा । उसके फटे पेट में आंतें भी रहती है । उसे चीर कर यह मनुष्यभोगी लोग उसका कलेजा, नाक, कान, आँखें खाते हैं।
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ऐसी इस दिशाहीन घुमक्कड में से ही दुनियाभर मे घुमते अमेरिकन टुरिस्टों का उदय हुआ होगा। 'टुरीझम एक बडा व्यवसाय हो गया है इतना ही नहीं तो अमेरिकन टुरिस्टों को अपने देश में खिंचकर ले जाने की स्पर्धा भी आरम्भ हुई है। कोई भी प्राचीन इमारत या द्रश्यों को निरंतर अपने केमेरे में कैद करते फिरते ये टूरिस्टों को पागल ही कहा जा सकता है। भारत के स्मशान भी अब 'टुरिस्ट एटेक्शन सेंटर्स' बन चुके हैं । हिंदु अग्निसंस्कार का इन लोगों में अति विकृत आकर्षण है। जहाँ जीवन किट पतंग की तरह है ऐसी झोंपडपट्टियाँ देखने का इन्हें ताजमहाल से भी अधिक आकर्षण है। समृद्ध अमेरिका के लोगों को उसमें न्यू और एक्साइटिंग' कुछ मिल जाता है। उन्हें एक्साइटमेंट कहाँ से मिलेगा यह कहा ही नहीं जा सकता है। एक धार्मिक नाटक में एक व्यक्ति शक्कर में से बने हाथी और उंट बेचता है । यहाँ तो मिठाईवाले चोकलेट में से आदमकद मनुष्य बनाते हैं। द्रश्य होता है सोये हुए जीवित मनुष्य जैसा । उसके फटे पेट में आंतें भी रहती है । उसे चीर कर यह मनुष्यभोगी लोग उसका कलेजा, नाक, कान, आँखें खाते हैं।
    
'हाउ एक्साइटिंग !'
 
'हाउ एक्साइटिंग !'

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