Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "शुरू" to "आरम्भ"
Line 6: Line 6:  
वर्तमान विश्व की स्थिति का आकलन करने के लिये हमें बहुत प्राचीन सन्दर्भो तक जाने की आवश्यकता नहीं है। विगत पाँच सौ वर्षों की विश्व की विशेष रूप से यूरोप की गतिविधियों पर दृष्टिपात करने से वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के कारणों का पता चल जायेगा।
 
वर्तमान विश्व की स्थिति का आकलन करने के लिये हमें बहुत प्राचीन सन्दर्भो तक जाने की आवश्यकता नहीं है। विगत पाँच सौ वर्षों की विश्व की विशेष रूप से यूरोप की गतिविधियों पर दृष्टिपात करने से वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के कारणों का पता चल जायेगा।
   −
पाँच सौ वर्ष पूर्व यूरोप के देशों ने विश्वप्रवास करना शुरू किया। नये नये भूभागों को खोजने और देखने की जिज्ञासा, समुद्र में सफर करने का साहस, नये अनुभवों की चाह आदि अच्छी बातों की प्रेरणा उसमें होगी यह मान्य करने के बाद भी समृद्धि प्राप्त करने की और साम्राज्य स्थापित करने की ललक मुख्य प्रेरक तत्त्व था यह भी मानना ही पडेगा।
+
पाँच सौ वर्ष पूर्व यूरोप के देशों ने विश्वप्रवास करना आरम्भ किया। नये नये भूभागों को खोजने और देखने की जिज्ञासा, समुद्र में सफर करने का साहस, नये अनुभवों की चाह आदि अच्छी बातों की प्रेरणा उसमें होगी यह मान्य करने के बाद भी समृद्धि प्राप्त करने की और साम्राज्य स्थापित करने की ललक मुख्य प्रेरक तत्त्व था यह भी मानना ही पडेगा।
   −
पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोप के विभिन्न देशों के यात्रियों ने अमेरिका, आफ्रिका और एशिया के देशों में जाना शुरू किया। अब तो यह प्रसिद्ध घटना है कि भारत आने के लिये निकला हुआ कोलम्बस भारत पहुँचा ही नहीं । भारत के स्थान पर वर्तमान अमेरिका पहुँचा । अपनी मृत्यु तक कोलम्बस उसे भारत और वहां के मूल निवासियों को धार्मिक ही मानता रहा। आल्झाडोर एमेरिगो नामक व्यक्ति ने जाना कि जिसे सब भारत मानते हैं वह भारत नहीं है। उसके नाम से उस भूखण्ड का नाम अमेरिका हुआ । उसी अवधि में वाक्सो-डी-गामा भारत भी पहुँचा ।
+
पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोप के विभिन्न देशों के यात्रियों ने अमेरिका, आफ्रिका और एशिया के देशों में जाना आरम्भ किया। अब तो यह प्रसिद्ध घटना है कि भारत आने के लिये निकला हुआ कोलम्बस भारत पहुँचा ही नहीं । भारत के स्थान पर वर्तमान अमेरिका पहुँचा । अपनी मृत्यु तक कोलम्बस उसे भारत और वहां के मूल निवासियों को धार्मिक ही मानता रहा। आल्झाडोर एमेरिगो नामक व्यक्ति ने जाना कि जिसे सब भारत मानते हैं वह भारत नहीं है। उसके नाम से उस भूखण्ड का नाम अमेरिका हुआ । उसी अवधि में वाक्सो-डी-गामा भारत भी पहुँचा ।
    
यूरोप के विभिन्न देशों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये। आफ्रिका के लोगों को गुलाम बनाकर अमेरिका ले आये। अमेरिका के वर्तमान नीग्रो मूल आफ्रिका के हैं।
 
यूरोप के विभिन्न देशों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये। आफ्रिका के लोगों को गुलाम बनाकर अमेरिका ले आये। अमेरिका के वर्तमान नीग्रो मूल आफ्रिका के हैं।
Line 51: Line 51:  
सम्प्रदायों के इस वर्ग का मुख्य लक्षण यह है कि वे सहअस्तित्व में नहीं मानते । जो हमारे जैसा नहीं है उसे या तो हमारे जैसा होना चाहिये, नहीं तो हमारा दास बनना चाहिये, नहीं तो मर जाना चाहिये। तीनों बातों में हम उसकी सहायता करेंगे।
 
सम्प्रदायों के इस वर्ग का मुख्य लक्षण यह है कि वे सहअस्तित्व में नहीं मानते । जो हमारे जैसा नहीं है उसे या तो हमारे जैसा होना चाहिये, नहीं तो हमारा दास बनना चाहिये, नहीं तो मर जाना चाहिये। तीनों बातों में हम उसकी सहायता करेंगे।
   −
इन परमतअसहिष्णु और सहअस्तित्व में नहीं माननेवाले सम्प्रदायों में इस्लाम और इसाइयत सबसे प्रबल हैं । विश्वभर में अपने मत का प्रचार और प्रसार करने का सिलसिला उनके जन्मकाल से ही शुरू हुआ है।
+
इन परमतअसहिष्णु और सहअस्तित्व में नहीं माननेवाले सम्प्रदायों में इस्लाम और इसाइयत सबसे प्रबल हैं । विश्वभर में अपने मत का प्रचार और प्रसार करने का सिलसिला उनके जन्मकाल से ही आरम्भ हुआ है।
    
सम्प्रदाय का सम्बन्ध भावनाओं के साथ होता है। पवित्रता, सजनता, भक्ति, पूजा, उपासना, साधना, तपश्चर्या आदि बातें इसके साथ जुडी होती हैं। परन्तु ये दोनों अपने सम्प्रदाय का प्रचार करने के लिये अत्याचार की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। लालच, भय, छल, शोषण, अत्याचार, मारपीट, गुलामी और मृत्युदण्ड - कुछ भी करने में उन्हें संकोच नहीं है । विगत एक हजार वर्षों में देश के देश या तो इस्लाम अथवा इसाइ मतावलम्बी बन चुके हैं । भारत में इन दोनों ने कितना उधम मचा रखा है इसका अनुभव हम कर ही रहे हैं।
 
सम्प्रदाय का सम्बन्ध भावनाओं के साथ होता है। पवित्रता, सजनता, भक्ति, पूजा, उपासना, साधना, तपश्चर्या आदि बातें इसके साथ जुडी होती हैं। परन्तु ये दोनों अपने सम्प्रदाय का प्रचार करने के लिये अत्याचार की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। लालच, भय, छल, शोषण, अत्याचार, मारपीट, गुलामी और मृत्युदण्ड - कुछ भी करने में उन्हें संकोच नहीं है । विगत एक हजार वर्षों में देश के देश या तो इस्लाम अथवा इसाइ मतावलम्बी बन चुके हैं । भारत में इन दोनों ने कितना उधम मचा रखा है इसका अनुभव हम कर ही रहे हैं।

Navigation menu