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=== अध्ययन अनुसन्धान की देशव्यापी योजना ===
 
=== अध्ययन अनुसन्धान की देशव्यापी योजना ===
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६४. अध्ययन और अनुसन्धान के अन्तर्गत और एक महत्त्वपूर्ण विषय है तुलनात्मक अध्ययन का । आज संचार माध्यमों के प्रभाव के परिणाम स्वरूप विश्व के सभी देश एकदूसरे को प्रभावित करते हैं । विगत दो सौ वर्षों में धार्मिक शिक्षा का पूर्ण रूप से पश्चिमीकरण हुआ है । अर्थजीवन के केन्द्र में आ जाने के कारण उपभोग प्रधान असंयमी जीवनशैली प्रचलित हो गई है । इस स्थिति में धार्मिक ज्ञानधारा का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है और अधार्मिक ज्ञानधारा ने उसका स्थान ले लिया है । यह स्थिति अकेले भारत के लिये नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये और जहाँ से इसका प्रवाह शुरु हुआ है ऐसे स्वयं पश्चिम के लिये भी विनाशक ही सिद्ध हो रही है ।
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६४. अध्ययन और अनुसन्धान के अन्तर्गत और एक महत्त्वपूर्ण विषय है तुलनात्मक अध्ययन का । आज संचार माध्यमों के प्रभाव के परिणाम स्वरूप विश्व के सभी देश एकदूसरे को प्रभावित करते हैं । विगत दो सौ वर्षों में धार्मिक शिक्षा का पूर्ण रूप से पश्चिमीकरण हुआ है । अर्थजीवन के केन्द्र में आ जाने के कारण उपभोग प्रधान असंयमी जीवनशैली प्रचलित हो गई है । इस स्थिति में धार्मिक ज्ञानधारा का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है और अधार्मिक ज्ञानधारा ने उसका स्थान ले लिया है । यह स्थिति अकेले भारत के लिये नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये और जहाँ से इसका प्रवाह आरम्भ हुआ है ऐसे स्वयं पश्चिम के लिये भी विनाशक ही सिद्ध हो रही है ।
    
६५. इसको ध्यान में रखते हुए धार्मिक और ज्ञानधारा के विभिन्न विषयों को लेकर तुलनात्मक अध्ययन की एक योजना बनाने की आवश्यकता है । इस अध्ययन को भी अनुभूति प्रामाण्य और धर्मप्रामाण्य के आधार लेकर ही चलाना चाहिये । पश्चिमी ज्ञानधारा से प्रेरित होकर जीवन की जो व्यवस्थायें बनी हैं और बन रही हैं, जो व्यवहार विकसित हो रहा है, जो वृत्तियाँ पनप रही हैं वे कितनी अकल्याणकारी हैं यह तथ्यों के साथ बताना होगा । ऐसे तुलनात्मक अध्ययन से ही भारत और पश्चिम दोनों को पता चलेगा कि धार्मिक ज्ञानधारा विश्व के लिये वास्तव में कितनी कल्याणकारी है ।
 
६५. इसको ध्यान में रखते हुए धार्मिक और ज्ञानधारा के विभिन्न विषयों को लेकर तुलनात्मक अध्ययन की एक योजना बनाने की आवश्यकता है । इस अध्ययन को भी अनुभूति प्रामाण्य और धर्मप्रामाण्य के आधार लेकर ही चलाना चाहिये । पश्चिमी ज्ञानधारा से प्रेरित होकर जीवन की जो व्यवस्थायें बनी हैं और बन रही हैं, जो व्यवहार विकसित हो रहा है, जो वृत्तियाँ पनप रही हैं वे कितनी अकल्याणकारी हैं यह तथ्यों के साथ बताना होगा । ऐसे तुलनात्मक अध्ययन से ही भारत और पश्चिम दोनों को पता चलेगा कि धार्मिक ज्ञानधारा विश्व के लिये वास्तव में कितनी कल्याणकारी है ।

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