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हम प्रथम विद्यालय की ही बात करेंगे ।
 
हम प्रथम विद्यालय की ही बात करेंगे ।
 
# मन को बलवान बनाने हेतु प्रथम मन को जीतने की आवश्यकता होती है । यदि हमने मन को वश में नहीं किया तो वह भटक जाता है और हमें भी भटका देता है । यदि उसे जीता तो उसकी शक्ति बढती है और वह हमारे भी सारे काम यशस्वी बनाता है ।
 
# मन को बलवान बनाने हेतु प्रथम मन को जीतने की आवश्यकता होती है । यदि हमने मन को वश में नहीं किया तो वह भटक जाता है और हमें भी भटका देता है । यदि उसे जीता तो उसकी शक्ति बढती है और वह हमारे भी सारे काम यशस्वी बनाता है ।
# मन को वश में करने के लिये संयम आवश्यक है । छः सात वर्ष की आयु से संयम की शिक्षा शुरु होनी चाहिये । छोटी छोटी बातों से यह शुरू होता है ।
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# मन को वश में करने के लिये संयम आवश्यक है । छः सात वर्ष की आयु से संयम की शिक्षा आरम्भ होनी चाहिये । छोटी छोटी बातों से यह शुरू होता है ।
 
# एक घण्टे तक मध्य में पानी नहीं पीना । इधरउधर नहीं देखना । पानी नहीं पीने की बात बडों को भी अखरने लगी है। भाषण शुरू है, अध्ययन शुरू है, महत्वपूर्ण बातचीत शुरू है तब भी लोग साथ मे रखी बोतल खोलकर पानी पीते हैं । यह पानी की आवश्यकता से भी अधिक मनःसंयम के अभाव की निशानी है ।
 
# एक घण्टे तक मध्य में पानी नहीं पीना । इधरउधर नहीं देखना । पानी नहीं पीने की बात बडों को भी अखरने लगी है। भाषण शुरू है, अध्ययन शुरू है, महत्वपूर्ण बातचीत शुरू है तब भी लोग साथ मे रखी बोतल खोलकर पानी पीते हैं । यह पानी की आवश्यकता से भी अधिक मनःसंयम के अभाव की निशानी है ।
 
# घर में एक ही बालक होना मनःसंयम के अभाव के लिये. जाने अनजाने. कारणभूत बनता है। शिशुअवस्था ही बिना माँगे सब कुछ मिलता है, आवश्यकता से भी अधिक मिलता है, जो मन में आया मिलता है, आवश्यक नहीं है ऐसा मिलता है । किसी भी बात के लिये कोई मना नहीं करता । शिशुअवस्था में लाडप्यार करने ही हैं परन्तु उसमें विवेक नहीं रहता । बालअवस्था में भी वह बढ़ता ही जाता है । किसी बात का निषेध सुनना सहा नहीं जाता । मन में आया वह होना ही चाहिये, माँगी चीज मिलनी ही चाहिये, किसीने मना करना ही नहीं चाहिये ऐसी मनःस्थिति बनती हैं और उसका पोषण किया जाता है ।
 
# घर में एक ही बालक होना मनःसंयम के अभाव के लिये. जाने अनजाने. कारणभूत बनता है। शिशुअवस्था ही बिना माँगे सब कुछ मिलता है, आवश्यकता से भी अधिक मिलता है, जो मन में आया मिलता है, आवश्यक नहीं है ऐसा मिलता है । किसी भी बात के लिये कोई मना नहीं करता । शिशुअवस्था में लाडप्यार करने ही हैं परन्तु उसमें विवेक नहीं रहता । बालअवस्था में भी वह बढ़ता ही जाता है । किसी बात का निषेध सुनना सहा नहीं जाता । मन में आया वह होना ही चाहिये, माँगी चीज मिलनी ही चाहिये, किसीने मना करना ही नहीं चाहिये ऐसी मनःस्थिति बनती हैं और उसका पोषण किया जाता है ।

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