अर्थ : ब्रह्माजी का एक दिन भी और एक रात भी एक हजार चतुर्युगों की होती है। ब्रह्माजी के दिन के प्रारम्भ में ब्रह्माजी में से ही चराचर के सभी अस्तित्व उत्पन्न होते हैं और ब्रह्माजी की रात्रि के प्रारम्भ में ब्रह्माजी में ही विलीन हो जाते हैं। इस एक चक्र के काल को कल्प कहते हैं। आगे हम जानते हैं कि एक चतुर्युग ४३,३२,००० वर्ष का होता है। इसमें समझने की बात इतनी ही है कि सृष्टि का निर्माण एक अति प्राचीन घटना है। ब्रह्माजी के दिन के साथ ही कालगणना शुरू होती है और ब्रह्माजी की रात के साथ समाप्त होती है। वर्तमान में २७वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है। कलियुग के ५१०० से अधिक वर्ष हो चुके हैं।
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अर्थ : ब्रह्माजी का एक दिन भी और एक रात भी एक हजार चतुर्युगों की होती है। ब्रह्माजी के दिन के प्रारम्भ में ब्रह्माजी में से ही चराचर के सभी अस्तित्व उत्पन्न होते हैं और ब्रह्माजी की रात्रि के प्रारम्भ में ब्रह्माजी में ही विलीन हो जाते हैं। इस एक चक्र के काल को कल्प कहते हैं। आगे हम जानते हैं कि एक चतुर्युग ४३,३२,००० वर्ष का होता है। इसमें समझने की बात इतनी ही है कि सृष्टि का निर्माण एक अति प्राचीन घटना है। ब्रह्माजी के दिन के साथ ही कालगणना आरम्भ होती है और ब्रह्माजी की रात के साथ समाप्त होती है। वर्तमान में २७वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है। कलियुग के ५१०० से अधिक वर्ष हो चुके हैं।
अर्थ : यह तीन गुण समान, परस्पर विरोधी और अत्यंत लघु थे। इन त्रिगुणों के बहिर्मुख होने के कारण इन कणों याने परमाणुओं में आकर्षण विकर्षण की प्रक्रिया शुरू हुई। इनमें दो आपस में आकर्षण और विकर्षण करते हैं। तीसरा विषाद गुणवाला याने अक्रिय (न्यूट्रल) है। इससे हलचल उत्पन्न हुई। इन कणों के अलग अलग मात्रा में एक दूसरे से जुड़ने के कारण परिमंडल निर्माण हुए। इन परिमंडलों की विविधता और आकारों के अनुसार सृष्टि के भिन्न भिन्न अस्तित्व निर्माण होने लगे।
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अर्थ : यह तीन गुण समान, परस्पर विरोधी और अत्यंत लघु थे। इन त्रिगुणों के बहिर्मुख होने के कारण इन कणों याने परमाणुओं में आकर्षण विकर्षण की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इनमें दो आपस में आकर्षण और विकर्षण करते हैं। तीसरा विषाद गुणवाला याने अक्रिय (न्यूट्रल) है। इससे हलचल उत्पन्न हुई। इन कणों के अलग अलग मात्रा में एक दूसरे से जुड़ने के कारण परिमंडल निर्माण हुए। इन परिमंडलों की विविधता और आकारों के अनुसार सृष्टि के भिन्न भिन्न अस्तित्व निर्माण होने लगे।
'''श्रीमद्भगवद्गीता''' वेदों का सार है। इसलिए गीता के सन्दर्भ लेना उचित होगा।
'''श्रीमद्भगवद्गीता''' वेदों का सार है। इसलिए गीता के सन्दर्भ लेना उचित होगा।