| ८. इन व्यवस्थाओं को अर्थनिरपेक्ष बनाने हेतु अनेक छोटे छोटे उपायों से प्रारम्भ करना होगा । उदाहरण के लिये होटेल का खाना नहीं खाना', 'अन्नदान को अपने दैनन्दिन व्यवहार का अंग बनाना', 'उपदेश देने के पैसे नहीं लेना', 'यथासम्भव घरेलू उपचार से रोगमुक्त होना' आदि बातों को लेकर भारी मात्रा में समाजप्रबोधन करने की योजना बनानी चाहिये । | | ८. इन व्यवस्थाओं को अर्थनिरपेक्ष बनाने हेतु अनेक छोटे छोटे उपायों से प्रारम्भ करना होगा । उदाहरण के लिये होटेल का खाना नहीं खाना', 'अन्नदान को अपने दैनन्दिन व्यवहार का अंग बनाना', 'उपदेश देने के पैसे नहीं लेना', 'यथासम्भव घरेलू उपचार से रोगमुक्त होना' आदि बातों को लेकर भारी मात्रा में समाजप्रबोधन करने की योजना बनानी चाहिये । |
− | ९. किसी भी प्रकार के विवादों को साथ मिलकर सुलझाने के व्यवहार को प्रतिष्ठा देने का प्रचलन बढाना चाहिये । दो के बीच में तीसरे का दखल परस्पर अविश्वास और असहयोग के कारण ही होता है । इसे कम करना अच्छा है, कम नहीं कर सकना अपनी दुर्बलता है ऐसे भाव का प्रसार करना चाहिये । | + | ९. किसी भी प्रकार के विवादों को साथ मिलकर सुलझाने के व्यवहार को प्रतिष्ठा देने का प्रचलन बढाना चाहिये । दो के मध्य में तीसरे का दखल परस्पर अविश्वास और असहयोग के कारण ही होता है । इसे कम करना अच्छा है, कम नहीं कर सकना अपनी दुर्बलता है ऐसे भाव का प्रसार करना चाहिये । |
| १०. अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना प्रथम तो अपनी स्वयं की जिम्मेदारी है । अपना काम कर लेने के बाद दूसरे का काम भी कर देना संस्कारिता है। किसी भी प्रकार के स्वार्थ, भय, लोभ, लालच के बिना आदर, श्रद्धा, स्नेह और दया से किसी का काम कर देना सेवा है, भय, लोभ, लालच या विवशता से दूसरे का काम करना गुलामी है, जिसे आज नौकरी कहा जाता है। सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु क्षमता प्राप्त करना अच्छा है । इस प्रकार के समीकरण विचार और व्यवहार के क्षेत्र में प्रतिष्ठित करने चाहिये । भारत के विद्वत्क्षेत्र का यह दायित्व है। | | १०. अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना प्रथम तो अपनी स्वयं की जिम्मेदारी है । अपना काम कर लेने के बाद दूसरे का काम भी कर देना संस्कारिता है। किसी भी प्रकार के स्वार्थ, भय, लोभ, लालच के बिना आदर, श्रद्धा, स्नेह और दया से किसी का काम कर देना सेवा है, भय, लोभ, लालच या विवशता से दूसरे का काम करना गुलामी है, जिसे आज नौकरी कहा जाता है। सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु क्षमता प्राप्त करना अच्छा है । इस प्रकार के समीकरण विचार और व्यवहार के क्षेत्र में प्रतिष्ठित करने चाहिये । भारत के विद्वत्क्षेत्र का यह दायित्व है। |