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शहर और अपराध एकदूसरे का हाथ पकडकर ही आते हैं। मैं दस वर्ष पूर्व इस शहर में आया था। सेंट्रल पार्क में बहुत घुमाफिरा था । परंतु हमें किसी ने आधी रात को न घुमने की हिदायत नहीं दी थी । और आज दस वर्ष बाद दिन में दस बजे यह वृद्धा केवल मेरे ‘एस्क्युझ मी' से कांप उठी थी । प्रत्येक व्यक्ति सूचना दे रहा था, शाम को इक्कादुक्का कहीं मत जाइएगा। हर १५ मिनिट पर पुलिस की गाडियाँ साइरन बजाती हुई अपराधियों को पकड़ने के लिये घूम रही थी। दूसरे ही दिन अखबार में खबर पढी की केवल आधे डोलर के लिये एक १६ वर्षीय बालकने एक विख्यात प्राध्यापक की दिनदहाडे हत्या कर दी। प्रोफेसर कार में बैठने जा रहे थे तब यह लडके ने आकर २५ सेंट मांगे । बखेडा टालने के लिये प्राध्यापक ने उसे पैसे दे दिये । इस दौरान लडके की द्रष्टि उन्होंने पहनी हुई मूल्यवान घडी पर पड़ी । लडके ने उसकी माँग की और प्रोफेसर के नानुकर करते ही गोली चला दी।
 
शहर और अपराध एकदूसरे का हाथ पकडकर ही आते हैं। मैं दस वर्ष पूर्व इस शहर में आया था। सेंट्रल पार्क में बहुत घुमाफिरा था । परंतु हमें किसी ने आधी रात को न घुमने की हिदायत नहीं दी थी । और आज दस वर्ष बाद दिन में दस बजे यह वृद्धा केवल मेरे ‘एस्क्युझ मी' से कांप उठी थी । प्रत्येक व्यक्ति सूचना दे रहा था, शाम को इक्कादुक्का कहीं मत जाइएगा। हर १५ मिनिट पर पुलिस की गाडियाँ साइरन बजाती हुई अपराधियों को पकड़ने के लिये घूम रही थी। दूसरे ही दिन अखबार में खबर पढी की केवल आधे डोलर के लिये एक १६ वर्षीय बालकने एक विख्यात प्राध्यापक की दिनदहाडे हत्या कर दी। प्रोफेसर कार में बैठने जा रहे थे तब यह लडके ने आकर २५ सेंट मांगे । बखेडा टालने के लिये प्राध्यापक ने उसे पैसे दे दिये । इस दौरान लडके की द्रष्टि उन्होंने पहनी हुई मूल्यवान घडी पर पड़ी । लडके ने उसकी माँग की और प्रोफेसर के नानुकर करते ही गोली चला दी।
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मैं रहता था वह उच्च मध्यमवर्गीय लोगों का महोल्ला था। एक बार घर से बाहर निकला तो वायुमण्डल गरम था। हम समझ कर लौट गये। बाद में हकीकत पता चली । वहाँ के विद्यालय को दो प्रवेशद्वार थे । एक रास्ते पर लडकों की एक टोली ने 'हमारे रास्ते से तुम्हारे विद्यालय के छात्रों को नहीं जाने देंगे' ऐसी धमकी दी। उसमें से बात बढी और दोनों टोलियों के बीच महायुद्ध हुआ ।पाँच-दस लोग घायल हुए। पुलिस को रिवोल्वर्स और अन्य शस्त्र मिले । यह कोई कालों और गोरों के बीच का संघर्ष नहीं था दोनों तरफ गोरे ही थे ।
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मैं रहता था वह उच्च मध्यमवर्गीय लोगों का महोल्ला था। एक बार घर से बाहर निकला तो वायुमण्डल गरम था। हम समझ कर लौट गये। बाद में हकीकत पता चली । वहाँ के विद्यालय को दो प्रवेशद्वार थे । एक रास्ते पर लडकों की एक टोली ने 'हमारे रास्ते से तुम्हारे विद्यालय के छात्रों को नहीं जाने देंगे' ऐसी धमकी दी। उसमें से बात बढी और दोनों टोलियों के मध्य महायुद्ध हुआ ।पाँच-दस लोग घायल हुए। पुलिस को रिवोल्वर्स और अन्य शस्त्र मिले । यह कोई कालों और गोरों के मध्य का संघर्ष नहीं था दोनों तरफ गोरे ही थे ।
    
कितना सम्पन्न देश । बडे बडे वस्तुभंडार । नजर न पहुंचे ऐसी विराट इमारतें, पर हर मंजिल पर सशस्त्र पुलिस का पहरा । कब चिनगारी भडकेगी, कहा नहीं जा सकता । सुन्न हो गए अमेरिकन विचारकों के दिमाग, किसी भी अमेरिकन से बात करने पर पहले तो वे अनेक तर्क देगा पर अंत में निस्सहाय होकर सर हिलाएंगे । कोई विएतनाम युद्ध की बात करेगा, कोई राजनीतिकों को दोष देगा । कोई इसे अनर्गल संपत्ति का राक्षसी संतान बताएगा । हम लोग आधे भूखे होने के कारण बदनसीब तो दूसरी ओर अमेरिका अत्याहार के कारण हुई बदहजमी से परेशान ।
 
कितना सम्पन्न देश । बडे बडे वस्तुभंडार । नजर न पहुंचे ऐसी विराट इमारतें, पर हर मंजिल पर सशस्त्र पुलिस का पहरा । कब चिनगारी भडकेगी, कहा नहीं जा सकता । सुन्न हो गए अमेरिकन विचारकों के दिमाग, किसी भी अमेरिकन से बात करने पर पहले तो वे अनेक तर्क देगा पर अंत में निस्सहाय होकर सर हिलाएंगे । कोई विएतनाम युद्ध की बात करेगा, कोई राजनीतिकों को दोष देगा । कोई इसे अनर्गल संपत्ति का राक्षसी संतान बताएगा । हम लोग आधे भूखे होने के कारण बदनसीब तो दूसरी ओर अमेरिका अत्याहार के कारण हुई बदहजमी से परेशान ।
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'ऑह' मिस्टर साहस्राबुढिये (सहस्रबुद्धे) ?फिर एक बार सुपरसेल्समेनशीप शुरू हुई। दफनभूमि के सौदे पर सहमत करने के लिये फिर एक बार उसने अपनी सभी शक्तियाँ दांव पर लगाई। अगर साहब भारत में होते और अग्निसंस्कार वाले ने 'साहब बांस सीधे आये हैं, चार आपके लिये अलग रख दूं क्या ?' ऐसा पूछा होता तो साहब ने उसको जिंदा ही ननामी पर बांधा होता । पर यह अमेरिका था। साहब ने नम्रता से कहा,'थेक्यु, थेंक्यु सो मच । पर हमारे धर्म में बेरियल नहीं होता क्रिमेशन होता है। 'इझंट धेट बार्बर ? गुड नाइट ।' दूसरी ओर से उसने कहा, क्या यह जंगालियत नहीं है? शुभरात्री ।' यह कथा काल्पनिक नहीं है । मात्र पात्रों के नाम बदले हैं।
 
'ऑह' मिस्टर साहस्राबुढिये (सहस्रबुद्धे) ?फिर एक बार सुपरसेल्समेनशीप शुरू हुई। दफनभूमि के सौदे पर सहमत करने के लिये फिर एक बार उसने अपनी सभी शक्तियाँ दांव पर लगाई। अगर साहब भारत में होते और अग्निसंस्कार वाले ने 'साहब बांस सीधे आये हैं, चार आपके लिये अलग रख दूं क्या ?' ऐसा पूछा होता तो साहब ने उसको जिंदा ही ननामी पर बांधा होता । पर यह अमेरिका था। साहब ने नम्रता से कहा,'थेक्यु, थेंक्यु सो मच । पर हमारे धर्म में बेरियल नहीं होता क्रिमेशन होता है। 'इझंट धेट बार्बर ? गुड नाइट ।' दूसरी ओर से उसने कहा, क्या यह जंगालियत नहीं है? शुभरात्री ।' यह कथा काल्पनिक नहीं है । मात्र पात्रों के नाम बदले हैं।
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जहाँ जीवन माने कुछ बेच के धनवान होने का अवसर इतना ही होता है वहाँ मुर्दे गाडने की भूमि बेचीए या पिढियों को बरबाद करनेवाले हशीश,गांजे जैसे मादक द्रव्य, सबकुछ उस संस्कृति के अनुरूप ही है। शस्त्रों की बिक्री कम हो जाएगी इस भय के मारे जिसे कोई लेनादेना नहीं ऐसे देश में जाकर बोम्ब गिरा देना, हम क्या बेच रहे हैं और उसका क्या परिणाम होगा उसके बारे में बिना कुछ सोचे बेचते रहना, उसके नये नये बाझार खोजना, विज्ञापन के नये नये तरीके खोजना,और उपर से बिक्रेताओं की जानलेवा स्पर्धा । बाझार में आनेवाला प्रतिस्पर्धी का सामान नष्ट करते करते प्रतिस्पर्धी को ही कैसे नष्ट किया जाय उसकी योजनाएं बनाना । ग्राहक की विवेकबुद्धि ही नष्ट करना। यह सब करते समय कोई विधिनिषेध का पालन नहीं करना । १२-१३ साल के बच्चों को मादक द्रव्य बेचनेवाले व्यापारियों के समक्ष उन बच्चों का भविष्य आता ही नहीं है। टीवी पर 'हत्या कैसे करना' उसकी शास्त्रीयशिक्षा देनेवालों को हम बालमन पर कैसे संस्कार कर रहे हैं इसकी कोई चिन्ता नहीं है । पूरे दिन मारधाड की फिल्में आती रहती हो तब बीच में 'सीसमी स्ट्रीट' जैसे कितने भी शैक्षिक कार्यक्रम कर लें, पर उन बच्चों के सामने तो गोलियों की बौछार कर मुर्दो के ढेर लगाता हिरो और ऐसे हिरो को नग्न होकर आलिंगन देनेवाली हिरोइन्स ही रहते हैं। मात्र १५ साल की आयु में जीवन के सभी विलास बिना किसी जिम्मेवारी के भोग  लेने के बाद आगे की जिदगी में किसी न किसीप्रकार की कृत्रिम उत्तेजना के बिना जीना ही असंभव हो जाता है। इसीमें से फीर मोटरसाइकल्स लेकर बेफाम घूमना शुरू हो जाता है । अनजान युगलों का बेफाम सहशयन शुरू होता है और इन सब का अतिरेक होने के बाद उसका नशा भी बेअसर हो जाता है। फिर उत्तेजना बढाने के लिये सायकेडेलिक विद्युतदीपों और कान बेहरे कर देने वाले संगीत में बेहोश होने के प्रयास शुरू हो जाते हैं।
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जहाँ जीवन माने कुछ बेच के धनवान होने का अवसर इतना ही होता है वहाँ मुर्दे गाडने की भूमि बेचीए या पिढियों को बरबाद करनेवाले हशीश,गांजे जैसे मादक द्रव्य, सबकुछ उस संस्कृति के अनुरूप ही है। शस्त्रों की बिक्री कम हो जाएगी इस भय के मारे जिसे कोई लेनादेना नहीं ऐसे देश में जाकर बोम्ब गिरा देना, हम क्या बेच रहे हैं और उसका क्या परिणाम होगा उसके बारे में बिना कुछ सोचे बेचते रहना, उसके नये नये बाझार खोजना, विज्ञापन के नये नये तरीके खोजना,और उपर से बिक्रेताओं की जानलेवा स्पर्धा । बाझार में आनेवाला प्रतिस्पर्धी का सामान नष्ट करते करते प्रतिस्पर्धी को ही कैसे नष्ट किया जाय उसकी योजनाएं बनाना । ग्राहक की विवेकबुद्धि ही नष्ट करना। यह सब करते समय कोई विधिनिषेध का पालन नहीं करना । १२-१३ साल के बच्चों को मादक द्रव्य बेचनेवाले व्यापारियों के समक्ष उन बच्चों का भविष्य आता ही नहीं है। टीवी पर 'हत्या कैसे करना' उसकी शास्त्रीयशिक्षा देनेवालों को हम बालमन पर कैसे संस्कार कर रहे हैं इसकी कोई चिन्ता नहीं है । पूरे दिन मारधाड की फिल्में आती रहती हो तब मध्य में 'सीसमी स्ट्रीट' जैसे कितने भी शैक्षिक कार्यक्रम कर लें, पर उन बच्चों के सामने तो गोलियों की बौछार कर मुर्दो के ढेर लगाता हिरो और ऐसे हिरो को नग्न होकर आलिंगन देनेवाली हिरोइन्स ही रहते हैं। मात्र १५ साल की आयु में जीवन के सभी विलास बिना किसी जिम्मेवारी के भोग  लेने के बाद आगे की जिदगी में किसी न किसीप्रकार की कृत्रिम उत्तेजना के बिना जीना ही असंभव हो जाता है। इसीमें से फीर मोटरसाइकल्स लेकर बेफाम घूमना शुरू हो जाता है । अनजान युगलों का बेफाम सहशयन शुरू होता है और इन सब का अतिरेक होने के बाद उसका नशा भी बेअसर हो जाता है। फिर उत्तेजना बढाने के लिये सायकेडेलिक विद्युतदीपों और कान बेहरे कर देने वाले संगीत में बेहोश होने के प्रयास शुरू हो जाते हैं।
    
और अंत में दिमाग में इन सबका कीचड ही बच जाता है।
 
और अंत में दिमाग में इन सबका कीचड ही बच जाता है।
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अपने साधुओं के जैसे अखाडे होते हैं उसी प्रकार हिप्पियों के 'पेडस' होते हैं। अपने साधुओं की तरह ये लोग भी गंजेरी होते हैं । मादक पदार्थों के कारण इंस्टंट' समाधि लगती है। फिर यह थोक में हशीश गाँजा बेचनेवाली टोलियाँ बनती है। उनका वह गैरकानुनी व्यापार, आपस का खूनखराबा, उसी में से बना माफिया जैसा भयानक संगठन तो आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियाँ चलाता है। मानवहत्या तो वहाँ रोजाना की चीज है।
 
अपने साधुओं के जैसे अखाडे होते हैं उसी प्रकार हिप्पियों के 'पेडस' होते हैं। अपने साधुओं की तरह ये लोग भी गंजेरी होते हैं । मादक पदार्थों के कारण इंस्टंट' समाधि लगती है। फिर यह थोक में हशीश गाँजा बेचनेवाली टोलियाँ बनती है। उनका वह गैरकानुनी व्यापार, आपस का खूनखराबा, उसी में से बना माफिया जैसा भयानक संगठन तो आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियाँ चलाता है। मानवहत्या तो वहाँ रोजाना की चीज है।
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न्यूयोर्क, शिकागो, डिट्रोइट आदि शहर यमपुरी जैसी भयपुरियाँ बन चुके हैं। कहीं काले-गोरे का संघर्ष, कहीं अत्याधुनिक लूटखसोट और उनके संगठनों के बीच के संघर्ष और इस सब को मिलनेवाली बेशूमार प्रसिद्धि । सभी चीजों का अनापशनाप उत्पादन । डिट्रोइट का फॉर्ड मोटर का कारखाना देखने गया था वहाँ करीब करीब प्रतिमिनिट एक कार तैयार होती है। कारखाने के एक छोर पर लोहे का रस खौलता रहता है। सरकते पट्टे पर उसका प्रवास शुरू होता है। उसके पतरे बनते हैं, उनको आकार मिलता है, चारों तरफ से अलग अलग पुर्जे आते हैं, कंप्युटर की सहायता से जो भी रंग की मोटर चाहिये उस रंग के पार्टस योग्य स्थान पर आ जाते हैं,तीन चार फीट गहरी नालियों में उसे कसनेवाले कारीगर रहते हैं, आये हुए पुों को वे जोडते जाते हैं, दरवाजे, लाइट्स जुड़ते जाते हैं और देखते देखते मोटर तैयार हो जाती है । अंत में उसमें पेट्रोल डलता है और कार रास्ते पर आती है। प्रतिदिन आठ- नौ सौ कार्स बनती है । यह तो फॉर्ड के एक कारखाने की बात हुई । ऐसे असंख्य कारखाने प्रतिदिन हजारों कार्स तैयार करते हैं। फीर कुशल विज्ञापनकर्ता नये नये प्रकार से उसका गुणगान करते हैं और मोटर्स का स्तुतिपाठ निरंतर चलता रहता है । रेडियो -सिनेमा-टीवी सभी जगह निरंतर यही चलता रहता है। अमेरिका में अब करीब करीब सब के पास कार है । नया मोडेल आता है तो गत वर्ष वाली कार पुरानी हो जाती है । लोग हमें पिछडा कहेंगे ऐसा भय भी रहता है। पुरानी कार सस्ते में निकाल देना और नयी खरीदना चलता रहता है।
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न्यूयोर्क, शिकागो, डिट्रोइट आदि शहर यमपुरी जैसी भयपुरियाँ बन चुके हैं। कहीं काले-गोरे का संघर्ष, कहीं अत्याधुनिक लूटखसोट और उनके संगठनों के मध्य के संघर्ष और इस सब को मिलनेवाली बेशूमार प्रसिद्धि । सभी चीजों का अनापशनाप उत्पादन । डिट्रोइट का फॉर्ड मोटर का कारखाना देखने गया था वहाँ करीब करीब प्रतिमिनिट एक कार तैयार होती है। कारखाने के एक छोर पर लोहे का रस खौलता रहता है। सरकते पट्टे पर उसका प्रवास शुरू होता है। उसके पतरे बनते हैं, उनको आकार मिलता है, चारों तरफ से अलग अलग पुर्जे आते हैं, कंप्युटर की सहायता से जो भी रंग की मोटर चाहिये उस रंग के पार्टस योग्य स्थान पर आ जाते हैं,तीन चार फीट गहरी नालियों में उसे कसनेवाले कारीगर रहते हैं, आये हुए पुों को वे जोडते जाते हैं, दरवाजे, लाइट्स जुड़ते जाते हैं और देखते देखते मोटर तैयार हो जाती है । अंत में उसमें पेट्रोल डलता है और कार रास्ते पर आती है। प्रतिदिन आठ- नौ सौ कार्स बनती है । यह तो फॉर्ड के एक कारखाने की बात हुई । ऐसे असंख्य कारखाने प्रतिदिन हजारों कार्स तैयार करते हैं। फीर कुशल विज्ञापनकर्ता नये नये प्रकार से उसका गुणगान करते हैं और मोटर्स का स्तुतिपाठ निरंतर चलता रहता है । रेडियो -सिनेमा-टीवी सभी जगह निरंतर यही चलता रहता है। अमेरिका में अब करीब करीब सब के पास कार है । नया मोडेल आता है तो गत वर्ष वाली कार पुरानी हो जाती है । लोग हमें पिछडा कहेंगे ऐसा भय भी रहता है। पुरानी कार सस्ते में निकाल देना और नयी खरीदना चलता रहता है।
    
इतना ही नहीं तो ये सभी चीजें किश्तों में मिलती है। अमेरिका में हर घर में दिखनेवाला फ्रीझ, फर्निचर, अनेक प्रकार के विद्युत उपकरण,मकान आदि सब किश्तों में प्राप्य है । अर्थात चीजें खरीदते जाना और उसके पैसे भरने के लिये कमाते जाना, उसमें भी निरंतर बदलती रहनेवाली फैशंस । विंटर फैशन, समर फैशन, ख्रिसमस फैशन । गत जाडे में पहना हुआ कोट इस जाडे में निकम्मा हो जाता है। गत माह का गाउन आज नहीं चलेगा। सास ने पहनी हुई बनारसी साडी आज पुत्रवधू भी पहन रही है यह द्रश्य वहाँ संभव ही नहीं है। फेंक दो। गाउन तो लोगों को दिखता भी है पर अंतर्वस्त्रो   की फैशन भी हरमाह बदलती है। महिलाओं की केशभूषा करनेवालों का व्यवसाय जोर में चलता है। अब तो ९० प्रतिशत महिलाएं विविध फैशन की विग्स ही पहनती है। और हर महिला के पास असंख्य विग्झ । यह तो हुई तारुण्य खो रही महिलाओं की मशक्कत । छे दशक पूर्ण कर चूकी वृद्धाएं भी चेहरे की झुरींयाँ ढकने के लिये निरंतर प्रयासरत । नवयौवनाएं अब बाल खुला रख चीथडे पहन कर घुमने में जीवन की धन्यता मानती है । पर एक बार पचीसी पर पहुंचते ही वह पुरानी हो जाती है। फिर शुरू होती है स्थायी साथी की खोज । अगर सौभाग्य से वह मिल गया तो भाग्य, नहीं तो जीवन कटि पतंग की तरह दिशाहीन होकर एकाकी वार्धक्य की ओर बढता है।
 
इतना ही नहीं तो ये सभी चीजें किश्तों में मिलती है। अमेरिका में हर घर में दिखनेवाला फ्रीझ, फर्निचर, अनेक प्रकार के विद्युत उपकरण,मकान आदि सब किश्तों में प्राप्य है । अर्थात चीजें खरीदते जाना और उसके पैसे भरने के लिये कमाते जाना, उसमें भी निरंतर बदलती रहनेवाली फैशंस । विंटर फैशन, समर फैशन, ख्रिसमस फैशन । गत जाडे में पहना हुआ कोट इस जाडे में निकम्मा हो जाता है। गत माह का गाउन आज नहीं चलेगा। सास ने पहनी हुई बनारसी साडी आज पुत्रवधू भी पहन रही है यह द्रश्य वहाँ संभव ही नहीं है। फेंक दो। गाउन तो लोगों को दिखता भी है पर अंतर्वस्त्रो   की फैशन भी हरमाह बदलती है। महिलाओं की केशभूषा करनेवालों का व्यवसाय जोर में चलता है। अब तो ९० प्रतिशत महिलाएं विविध फैशन की विग्स ही पहनती है। और हर महिला के पास असंख्य विग्झ । यह तो हुई तारुण्य खो रही महिलाओं की मशक्कत । छे दशक पूर्ण कर चूकी वृद्धाएं भी चेहरे की झुरींयाँ ढकने के लिये निरंतर प्रयासरत । नवयौवनाएं अब बाल खुला रख चीथडे पहन कर घुमने में जीवन की धन्यता मानती है । पर एक बार पचीसी पर पहुंचते ही वह पुरानी हो जाती है। फिर शुरू होती है स्थायी साथी की खोज । अगर सौभाग्य से वह मिल गया तो भाग्य, नहीं तो जीवन कटि पतंग की तरह दिशाहीन होकर एकाकी वार्धक्य की ओर बढता है।

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