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वर्तमान में उपर्युक्त बातें किसानों को बताने पर वे पलटकर पूछेंगे कि यह सब उपदेश हमें ही क्यों दे रहे हैं? इन सब बातों का हम पालन करेंगे तो हम तो गरीब ही रहेंगे। और केवल गरीब ही नहीं रहेंगे तो आज जैसे कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं वैसे हमें भी आत्महत्या करनी पड़ेगी। उन का कहना तो उचित ही है। लेकिन फिर इसका हल कैसे निकलेगा? किसी को तो पहल करनी ही होगी। किसान यदि अन्य समाज के बदलने की राह देखेगा तो न किसान बचेगा और न ही समाज। वह जब धार्मिक (भारतीय) पद्दति से खेती करेगा तो वह स्वावलंबी बनेगा। जब वह स्वावलंबी बनेगा तो आत्महत्या की नौबत ही नहीं आएगी।  
 
वर्तमान में उपर्युक्त बातें किसानों को बताने पर वे पलटकर पूछेंगे कि यह सब उपदेश हमें ही क्यों दे रहे हैं? इन सब बातों का हम पालन करेंगे तो हम तो गरीब ही रहेंगे। और केवल गरीब ही नहीं रहेंगे तो आज जैसे कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं वैसे हमें भी आत्महत्या करनी पड़ेगी। उन का कहना तो उचित ही है। लेकिन फिर इसका हल कैसे निकलेगा? किसी को तो पहल करनी ही होगी। किसान यदि अन्य समाज के बदलने की राह देखेगा तो न किसान बचेगा और न ही समाज। वह जब धार्मिक (भारतीय) पद्दति से खेती करेगा तो वह स्वावलंबी बनेगा। जब वह स्वावलंबी बनेगा तो आत्महत्या की नौबत ही नहीं आएगी।  
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बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक बार किसी गाँव में कई वर्षों तक बारिश नहीं हुई। हर साल बारिश होगी इसलिए सब किसान तैयारी करते थे। मेंढक टर्राते थे। पक्षी अपने घोसलों का रखरखाव करते थे। मोर नाचते थे। लेकिन सब व्यर्थ हो जाता था। बारिश नहीं आती थी। सब तैयारी व्यर्थ हो जाती थी। सब निराश हो गए थे। अब की बार फिर बारिश के दिन आए। लेकिन किसानों ने ठान लिया था कि अब वे खेती की तैयारी नहीं करेंगे। किसानों ने कोई तैयारी नहीं की। मेंढकों ने टर्राना बंद कर दिया। पक्षियों ने अपने घोसलों का रखरखाव नहीं किया। लेकिन एक मोर ने सोचा यह तो ठीक नहीं है। औरों ने अपना काम बंद किया होगा तो करने दो। मैं क्यों मेरा काम नहीं करूँ? उसने तय किया की बादल आयें या न आयें, बारिश हो या नहीं, वह तो अपना काम करेगा। वह निकला और लगा झूमझूम कर नाचने। उस को नाचते देखकर पक्षियों को लगा की हम क्यों अपना काम छोड़ दें। वे भी लगे अपने घोसलों के रखरखाव में। मेंढकों ने सोचा वे भी क्यों अपना काम छोड़ें। वे भी लगे टर्राने। फिर किसान भी सोचने लगा ये सब अपना काम कर रहे हैं, फिर मैं क्यों अपना काम छोड़ दूँ ? वह भी लगा तैयारी करने। ऐसे सब को अपना काम करते देखकर वरुण देवता जो बारिश लाते हैं, उन को शर्म महसूस हुई। मेंढक, मोर जैसे प्राणी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। फिर मैंने अपना काम क्यों छोड़ा है ? वह झपटे। बादलों को संगठित किया और लगे पानी बरसाने। किसान खुशहाल हो गया। सारा गाँव खुशहाल हो गया।
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बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक बार किसी गाँव में कई वर्षों तक बारिश नहीं हुई। हर साल बारिश होगी इसलिए सब किसान तैयारी करते थे। मेंढक टर्राते थे। पक्षी अपने घोसलों का रखरखाव करते थे। मोर नाचते थे। लेकिन सब व्यर्थ हो जाता था। बारिश नहीं आती थी। सब तैयारी व्यर्थ हो जाती थी। सब निराश हो गए थे। अब की बार फिर बारिश के दिन आए। लेकिन किसानों ने ठान लिया था कि अब वे खेती की तैयारी नहीं करेंगे। किसानों ने कोई तैयारी नहीं की। मेंढकों ने टर्राना बंद कर दिया। पक्षियों ने अपने घोसलों का रखरखाव नहीं किया। लेकिन एक मोर ने सोचा यह तो ठीक नहीं है। औरों ने अपना काम बंद किया होगा तो करने दो। मैं क्यों मेरा काम नहीं करूँ? उसने तय किया की बादल आयें या न आयें, बारिश हो या नहीं, वह तो अपना काम करेगा। वह निकला और लगा झूमझूम कर नाचने। उस को नाचते देखकर पक्षियों को लगा की हम क्यों अपना काम छोड़ दें। वे भी लगे अपने घोसलों के रखरखाव में। मेंढकों ने सोचा वे भी क्यों अपना काम छोड़ें। वे भी लगे टर्राने। फिर किसान भी सोचने लगा ये सब अपना काम कर रहे हैं, फिर मैं क्यों अपना काम छोड़ दूँ ? वह भी लगा तैयारी करने। ऐसे सब को अपना काम करते देखकर वरुण देवता जो बारिश लाते हैं, उन को शर्म अनुभव हुई। मेंढक, मोर जैसे प्राणी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। फिर मैंने अपना काम क्यों छोड़ा है ? वह झपटे। बादलों को संगठित किया और लगे पानी बरसाने। किसान खुशहाल हो गया। सारा गाँव खुशहाल हो गया।
    
हम जानते हैं कि यह तो मात्र कथा है। लेकिन इस के सिवाय दूसरा मार्ग भी तो नहीं है। अन्य लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं या नहीं इस की चिंता किये बगैर ही हम किसानों को और किसानों की पीड़ा समझनेवाले किसानों के समर्थकों को मोर की तरह सोचना होगा। अपने कर्तव्यों का, जातिधर्म का पालन करना हमें अपने से शुरू करना होगा। रास्ता तो यही है। हम कोई ५-६ दिन काम कर थककर छठे सातवें दिन आराम करनेवाले नौकर लोग या गॉड तो नहीं हैं। सूरज की तरह, परोपकारी पेड़ों की तरह प्रकृति माता की तरह अविश्रांत परिश्रम करनेवाले और मालिक की मानसिकतावाले लोग हैं हम। शक्ति भी हम में कुछ कम नहीं है। बस निश्चय करने की आवश्यकता मात्र है।
 
हम जानते हैं कि यह तो मात्र कथा है। लेकिन इस के सिवाय दूसरा मार्ग भी तो नहीं है। अन्य लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं या नहीं इस की चिंता किये बगैर ही हम किसानों को और किसानों की पीड़ा समझनेवाले किसानों के समर्थकों को मोर की तरह सोचना होगा। अपने कर्तव्यों का, जातिधर्म का पालन करना हमें अपने से शुरू करना होगा। रास्ता तो यही है। हम कोई ५-६ दिन काम कर थककर छठे सातवें दिन आराम करनेवाले नौकर लोग या गॉड तो नहीं हैं। सूरज की तरह, परोपकारी पेड़ों की तरह प्रकृति माता की तरह अविश्रांत परिश्रम करनेवाले और मालिक की मानसिकतावाले लोग हैं हम। शक्ति भी हम में कुछ कम नहीं है। बस निश्चय करने की आवश्यकता मात्र है।

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