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भारतीय समाज की मान्यता के अनुसार और वास्तव में भी विश्व के हर मानव जीवनका लक्ष्य मोक्ष है, यह हमने पहले [[Bhartiya Drishti on Various Subjects (विभिन्न विषयोंकी विषयवस्तु में भारतीय दृष्टि)|इस]] लेख में देखा है। मोक्ष का ही अर्थ मुक्ति है, पूर्णत्व की प्राप्ति है । मानव का व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टिगत ऐसा समग्र विकास है। इस लक्ष्य की साधना की दृष्टि से धार्मिक (भारतीय) भाषाएं विश्व की अन्य किसी भी भाषा से भिन्न है। लक्ष्य की श्रेष्ठता के कारण भाषाएं भी श्रेष्ठ है। प्रमुख रूप से संस्कृत से निकटता के कारण इन भाषाओं में निम्न विशेष गुण है। लेकिन विदेशी भाषाओं में तो कई संकल्पनाएँ न होनेसे उनके लिए शब्द भी नहीं हैं।  
 
भारतीय समाज की मान्यता के अनुसार और वास्तव में भी विश्व के हर मानव जीवनका लक्ष्य मोक्ष है, यह हमने पहले [[Bhartiya Drishti on Various Subjects (विभिन्न विषयोंकी विषयवस्तु में भारतीय दृष्टि)|इस]] लेख में देखा है। मोक्ष का ही अर्थ मुक्ति है, पूर्णत्व की प्राप्ति है । मानव का व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टिगत ऐसा समग्र विकास है। इस लक्ष्य की साधना की दृष्टि से धार्मिक (भारतीय) भाषाएं विश्व की अन्य किसी भी भाषा से भिन्न है। लक्ष्य की श्रेष्ठता के कारण भाषाएं भी श्रेष्ठ है। प्रमुख रूप से संस्कृत से निकटता के कारण इन भाषाओं में निम्न विशेष गुण है। लेकिन विदेशी भाषाओं में तो कई संकल्पनाएँ न होनेसे उनके लिए शब्द भी नहीं हैं।  
 
# शब्दावली : सर्वप्रथम तो मोक्ष यह संकल्पनाही अन्य किसी समाज में नहीं है। इसलिए उन की भाषा में भी नहीं है । मोक्ष की कल्पना से जुडे मुमुक्षु, जन्म-मृत्यु से परे, पुनर्जन्म, स्थितप्रज्ञ, साधक, पूर्णत्व, अधिजनन, आत्मा, परमात्मा, कर्मयोनी, भोगयोनी, प्राण, ब्रह्मचर्य, अंत:करण-चतुष्टयके मन, बुध्दि, चित्त और अहंकार यह चार अंग, योग, सदेह स्वर्ग, इडा/पिंगला/सुषुम्ना नाडियाँ, कुंडलिनी, अष्टसिद्धि, षट्चक्रभेदन, अद्वैत, तूरियावस्था, निर्विकल्प समाधी, त्रिगुणातीत, ऋतंभरा प्रज्ञा आदि विभिन्न शब्द भी अन्य किसी विदेशी भाषा में नहीं हैं। भगवद्गीतामें ही ऐसे सैंकड़ों शब्द मिलेंगे जिनके लिये सटीक प्रतिशब्द विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं मिलेंगे ।  
 
# शब्दावली : सर्वप्रथम तो मोक्ष यह संकल्पनाही अन्य किसी समाज में नहीं है। इसलिए उन की भाषा में भी नहीं है । मोक्ष की कल्पना से जुडे मुमुक्षु, जन्म-मृत्यु से परे, पुनर्जन्म, स्थितप्रज्ञ, साधक, पूर्णत्व, अधिजनन, आत्मा, परमात्मा, कर्मयोनी, भोगयोनी, प्राण, ब्रह्मचर्य, अंत:करण-चतुष्टयके मन, बुध्दि, चित्त और अहंकार यह चार अंग, योग, सदेह स्वर्ग, इडा/पिंगला/सुषुम्ना नाडियाँ, कुंडलिनी, अष्टसिद्धि, षट्चक्रभेदन, अद्वैत, तूरियावस्था, निर्विकल्प समाधी, त्रिगुणातीत, ऋतंभरा प्रज्ञा आदि विभिन्न शब्द भी अन्य किसी विदेशी भाषा में नहीं हैं। भगवद्गीतामें ही ऐसे सैंकड़ों शब्द मिलेंगे जिनके लिये सटीक प्रतिशब्द विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं मिलेंगे ।  
# मोक्ष से जुडी संकल्पनाएं : विश्व के अन्य समाज स्वर्ग और नरक की कल्पना से आगे बढ नहीं पाए है । वर्तमान विज्ञान भी जड जगत् के आगे चेतना तक नहीं पहुंच पाया है। धार्मिक (भारतीय) मान्यता के अनुसार तो वास्तव में जड कुछ है ही नहीं। जब अखंड और अनंत चैतन्य परमात्मतत्त्व से सभी सृष्टि का जन्म हुआ है तो कोई भी वस्तू जड़ कैसे हो सकती है। ऊपर शब्दावली के संदर्भ में दिये शब्दों की संकल्पनाएं समझने के लिये धार्मिक (भारतीय) भाषाएं और उस में भी संस्कृत का ही आधार लेना पड़ता है।  
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# मोक्ष से जुडी संकल्पनाएं : विश्व के अन्य समाज स्वर्ग और नरक की कल्पना से आगे बढ नहीं पाए है । वर्तमान विज्ञान भी जड जगत के आगे चेतना तक नहीं पहुंच पाया है। धार्मिक (भारतीय) मान्यता के अनुसार तो वास्तव में जड कुछ है ही नहीं। जब अखंड और अनंत चैतन्य परमात्मतत्त्व से सभी सृष्टि का जन्म हुआ है तो कोई भी वस्तू जड़ कैसे हो सकती है। ऊपर शब्दावली के संदर्भ में दिये शब्दों की संकल्पनाएं समझने के लिये धार्मिक (भारतीय) भाषाएं और उस में भी संस्कृत का ही आधार लेना पड़ता है।  
 
# कहावतें और मुहावरे : हमारी भाषाएं मोक्ष कल्पना से जुडी कई कहावतों और मुहावरों से भरी पडी है। कई संस्कृत की उक्तियों का उपयोग जस का तस अपनी भिन्न भिन्न धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में किया जाता है। जैसे आत्मनो मोक्षार्थं जगद् हिताय च, विश्वं पुष्टं अस्मिन् ग्रामे अनातुरम्, सच्चिदानंद, आत्माराम, प्राणपखेरू उड जाना, पंचत्व में विलीन हो जाना, सात्म्य पाना, जैसी करनी वैसी भरनी, मुंह में राम बगल में छुरी, काया, वाचा, मनसा किये कर्मों का फल, परहितसम पुण्य नहीं भाई परपीडासम नहीं अधमाई, कायोत्सर्ग, परकायाप्रवेश करना आदि ।  
 
# कहावतें और मुहावरे : हमारी भाषाएं मोक्ष कल्पना से जुडी कई कहावतों और मुहावरों से भरी पडी है। कई संस्कृत की उक्तियों का उपयोग जस का तस अपनी भिन्न भिन्न धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में किया जाता है। जैसे आत्मनो मोक्षार्थं जगद् हिताय च, विश्वं पुष्टं अस्मिन् ग्रामे अनातुरम्, सच्चिदानंद, आत्माराम, प्राणपखेरू उड जाना, पंचत्व में विलीन हो जाना, सात्म्य पाना, जैसी करनी वैसी भरनी, मुंह में राम बगल में छुरी, काया, वाचा, मनसा किये कर्मों का फल, परहितसम पुण्य नहीं भाई परपीडासम नहीं अधमाई, कायोत्सर्ग, परकायाप्रवेश करना आदि ।  
 
# लोगों के नाम : जितनी संख्या में भारतवर्ष में राम, कृष्ण और शंकर इन तीन देवों के भिन्न भिन्न नामों के लोग पाये जाते है उतनी बडी संख्या में शायद ही विश्व में अन्य कोई नाम पाये जाते होंगे । यह नाम रखने के पीछे माता-पिता की भावना बच्चे उन देवताओं जैसे सर्वहितकारी बनें ऐसी हुआ करती है । अच्छे नामों को तोडकर मरोडकर कहना यह धार्मिक (भारतीय) समाज की रीति नहीं है।  
 
# लोगों के नाम : जितनी संख्या में भारतवर्ष में राम, कृष्ण और शंकर इन तीन देवों के भिन्न भिन्न नामों के लोग पाये जाते है उतनी बडी संख्या में शायद ही विश्व में अन्य कोई नाम पाये जाते होंगे । यह नाम रखने के पीछे माता-पिता की भावना बच्चे उन देवताओं जैसे सर्वहितकारी बनें ऐसी हुआ करती है । अच्छे नामों को तोडकर मरोडकर कहना यह धार्मिक (भारतीय) समाज की रीति नहीं है।  

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