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'''भ्रष्ट नेतृत्व का बढ़ता उबाल''' : किसी भी समाज की व्यवस्था तीन प्रकार की शक्तियों में बांटी जा सकती है। एक, ईमानदार व सृजनात्मक शक्ति जो पूरे देश का नेतृत्व करती है; दूसरी, भ्रष्ट व ताकतवर शक्ति जो स्वयं के स्वार्थ हेतु पूरे देश को लूटने का कार्य करती है; और तीसरी सीधी-सादी सामान्य जनता जो निरपेक्ष भाव से जीवन की जद्दोजहद में व्यस्त रहती है तथा रेलगाड़ी के डिब्बे के समान, ताकतवर नेतृत्व की दिशा में चलने को बाध्य रहती है।
'''भ्रष्ट नेतृत्व का बढ़ता उबाल''' : किसी भी समाज की व्यवस्था तीन प्रकार की शक्तियों में बांटी जा सकती है। एक, ईमानदार व सृजनात्मक शक्ति जो पूरे देश का नेतृत्व करती है; दूसरी, भ्रष्ट व ताकतवर शक्ति जो स्वयं के स्वार्थ हेतु पूरे देश को लूटने का कार्य करती है; और तीसरी सीधी-सादी सामान्य जनता जो निरपेक्ष भाव से जीवन की जद्दोजहद में व्यस्त रहती है तथा रेलगाड़ी के डिब्बे के समान, ताकतवर नेतृत्व की दिशा में चलने को बाध्य रहती है।
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भारत के लिए यह तीसरा कालखंड दूसरे भ्रष्ट कालखंड का अगला पड़ाव बन गया । जब बेईमानी के जरिये आगे बढ़ना आसान हो गया और समाज के हर क्षेत्र में ईमानदारी पर चलने वाले अपने आत्म -सम्मान की रक्षा करते मूक-दर्शक बनते गए व ज्यादा से ज्यादा नेतृत्व के अवसर चालबाजी व चाटुकारिता करने वालों के हाथों में चला गया ।
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भारत के लिए यह तीसरा कालखंड दूसरे भ्रष्ट कालखंड का अगला पड़ाव बन गया । जब बेईमानी के जरिये आगे बढ़ना आसान हो गया और समाज के हर क्षेत्र में ईमानदारी पर चलने वाले अपने आत्म -सम्मान की रक्षा करते मूक-दर्शक बनते गए व ज्यादा से ज्यादा नेतृत्व के अवसर चालबाजी व चाटूकारिता करने वालों के हाथों में चला गया ।
=== कालखण्ड - ४ (१९९० से लगभग २०१० तक) अर्थ व्यवस्था में सम्पन्नता व भ्रष्टता का दोहरा विकास : ===
=== कालखण्ड - ४ (१९९० से लगभग २०१० तक) अर्थ व्यवस्था में सम्पन्नता व भ्रष्टता का दोहरा विकास : ===