'''भ्रष्ट नेतृत्व का बढ़ता उबाल''' : किसी भी समाज की व्यवस्था तीन प्रकार की शक्तियों में बांटी जा सकती है। एक, ईमानदार व सृजनात्मक शक्ति जो पूरे देश का नेतृत्व करती है; दूसरी, भ्रष्ट व ताकतवर शक्ति जो स्वयं के स्वार्थ हेतु पूरे देश को लूटने का कार्य करती है; और तीसरी सीधी-सादी सामान्य जनता जो निरपेक्ष भाव से जीवन की जद्दोजहद में व्यस्त रहती है तथा रेलगाड़ी के डिब्बे के समान, ताकतवर नेतृत्व की दिशा में चलने को बाध्य रहती है। | '''भ्रष्ट नेतृत्व का बढ़ता उबाल''' : किसी भी समाज की व्यवस्था तीन प्रकार की शक्तियों में बांटी जा सकती है। एक, ईमानदार व सृजनात्मक शक्ति जो पूरे देश का नेतृत्व करती है; दूसरी, भ्रष्ट व ताकतवर शक्ति जो स्वयं के स्वार्थ हेतु पूरे देश को लूटने का कार्य करती है; और तीसरी सीधी-सादी सामान्य जनता जो निरपेक्ष भाव से जीवन की जद्दोजहद में व्यस्त रहती है तथा रेलगाड़ी के डिब्बे के समान, ताकतवर नेतृत्व की दिशा में चलने को बाध्य रहती है। |