५. अनेक बार तो ये आचार्य भी उनका असली उद्देश्य क्या है यह जानते हैं । परन्तु वे भी अपने संस्थाओं के लिए भूमि, धन और अन्य सुविधायें चाहते हैं । धर्माचार्यों के पास संख्या है और राजीतिक लोगों के पास सत्ता है । दोनों एकदूसरे की सहायता चाहते हैं और एकदूसरे का उपयोग कर लेने का प्रयास करते हैं । इसे वे धर्म का प्रभाव कहते हैं । कुछ तो सही में अज्ञानी हैं, कुछ जानते हुए भी ढोंग कर रहे हैं । | ५. अनेक बार तो ये आचार्य भी उनका असली उद्देश्य क्या है यह जानते हैं । परन्तु वे भी अपने संस्थाओं के लिए भूमि, धन और अन्य सुविधायें चाहते हैं । धर्माचार्यों के पास संख्या है और राजीतिक लोगों के पास सत्ता है । दोनों एकदूसरे की सहायता चाहते हैं और एकदूसरे का उपयोग कर लेने का प्रयास करते हैं । इसे वे धर्म का प्रभाव कहते हैं । कुछ तो सही में अज्ञानी हैं, कुछ जानते हुए भी ढोंग कर रहे हैं । |