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३. इनके बड़े बड़े मठ हैं । इनकी बड़ी बडी संस्थायें चलती हैं । इनके अनुयायीओं की संख्या बहुत बडी है। परन्तु यही बातें आवरण बनकर उन्हें सत्य को समझने से रोक रही हैं । धर्म के नाम पर ये अधर्म की दुनिया में विहार कर रहे हैं । विपरीत दिशा में जा रहे हैं और लोगों को ले जा रहे हैं ।
 
३. इनके बड़े बड़े मठ हैं । इनकी बड़ी बडी संस्थायें चलती हैं । इनके अनुयायीओं की संख्या बहुत बडी है। परन्तु यही बातें आवरण बनकर उन्हें सत्य को समझने से रोक रही हैं । धर्म के नाम पर ये अधर्म की दुनिया में विहार कर रहे हैं । विपरीत दिशा में जा रहे हैं और लोगों को ले जा रहे हैं ।
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४. धर्म को अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए साधन के रूप में प्रयुक्त करने की इच्छा रखने वाले राजनीतिक लोगों की चाटुकारिता से ये मुग्ध हो जाते हैं । उन्हें लगता है कि वे सब उनके कार्य से प्रभावित होकर आते हैं । परन्तु इन नासमझ लोगों को यह नहीं समझता कि इनके अनुयायीओं की संख्या देखकर चुनाव में इनका उपयोग हो सकता है ऐसा उद्देश्य मन में रखकर वे आ रहे हैं ।
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४. धर्म को अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए साधन के रूप में प्रयुक्त करने की इच्छा रखने वाले राजनीतिक लोगों की चाटूकारिता से ये मुग्ध हो जाते हैं । उन्हें लगता है कि वे सब उनके कार्य से प्रभावित होकर आते हैं । परन्तु इन नासमझ लोगों को यह नहीं समझता कि इनके अनुयायीओं की संख्या देखकर चुनाव में इनका उपयोग हो सकता है ऐसा उद्देश्य मन में रखकर वे आ रहे हैं ।
    
५. अनेक बार तो ये आचार्य भी उनका असली उद्देश्य क्या है यह जानते हैं । परन्तु वे भी अपने संस्थाओं के लिए भूमि, धन और अन्य सुविधायें चाहते हैं । धर्माचार्यों के पास संख्या है और राजीतिक लोगों के पास सत्ता है । दोनों एकदूसरे की सहायता चाहते हैं और एकदूसरे का उपयोग कर लेने का प्रयास करते हैं । इसे वे धर्म का प्रभाव कहते हैं । कुछ तो सही में अज्ञानी हैं, कुछ जानते हुए भी ढोंग कर रहे हैं ।
 
५. अनेक बार तो ये आचार्य भी उनका असली उद्देश्य क्या है यह जानते हैं । परन्तु वे भी अपने संस्थाओं के लिए भूमि, धन और अन्य सुविधायें चाहते हैं । धर्माचार्यों के पास संख्या है और राजीतिक लोगों के पास सत्ता है । दोनों एकदूसरे की सहायता चाहते हैं और एकदूसरे का उपयोग कर लेने का प्रयास करते हैं । इसे वे धर्म का प्रभाव कहते हैं । कुछ तो सही में अज्ञानी हैं, कुछ जानते हुए भी ढोंग कर रहे हैं ।

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