फरियादी बोला - जी महाराज ! मै और मेरे मालिक एक दिन बहुत ही आवश्यक काम से पास के नगर में गए थे, लौटते समय हम थक गए थे और धूप भी बहुत अधिक थी, इसलिए एक मंदिर की छाँव में विश्रांति के लिए बैठ गए। हम जब वहां विश्रांति कर रहे थे तो मेरी नजर वहाँ रखी एक लाल पोटली पर पड़ी । मैंने पोटली उठाकर खोली तो मै आश्चर्य से देखता रह गया, उस पोटली में मटर के दाने जैसे चार हीरे थे । मैंने मालिक को कहा मालिक किसी का हीरा यहाँ पड़ा है इसे राज्यकोश में जमा करा देते है। मालिक ने शांत रहने का इशारा करते हुए कहा की हमे किसी ने देखा नहीं है हम इसे ले चलते है आपस में बाँट लेंगे दो हीरे तुम ले लेना, दो हीरे मैं रख लूँगा। मेरे मन में भी लालच आ गया इसलिए मैंने हाँ कर दी और मुझे नौकरी का भी डर था मालिक के सामने नौकर की क्या चलती । परन्तु घर आने के बाद जब मैंने अपना हिस्सा माँगा तो उन्होंने मना कर दिया । | फरियादी बोला - जी महाराज ! मै और मेरे मालिक एक दिन बहुत ही आवश्यक काम से पास के नगर में गए थे, लौटते समय हम थक गए थे और धूप भी बहुत अधिक थी, इसलिए एक मंदिर की छाँव में विश्रांति के लिए बैठ गए। हम जब वहां विश्रांति कर रहे थे तो मेरी नजर वहाँ रखी एक लाल पोटली पर पड़ी । मैंने पोटली उठाकर खोली तो मै आश्चर्य से देखता रह गया, उस पोटली में मटर के दाने जैसे चार हीरे थे । मैंने मालिक को कहा मालिक किसी का हीरा यहाँ पड़ा है इसे राज्यकोश में जमा करा देते है। मालिक ने शांत रहने का इशारा करते हुए कहा की हमे किसी ने देखा नहीं है हम इसे ले चलते है आपस में बाँट लेंगे दो हीरे तुम ले लेना, दो हीरे मैं रख लूँगा। मेरे मन में भी लालच आ गया इसलिए मैंने हाँ कर दी और मुझे नौकरी का भी डर था मालिक के सामने नौकर की क्या चलती । परन्तु घर आने के बाद जब मैंने अपना हिस्सा माँगा तो उन्होंने मना कर दिया । |