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एक राज्य में एक बहुत ही ज्ञानी साधू रहते थे |वह एक दिन नगर में घुमने निकले थे | साधू का दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल  नही  होता था | जैसे उन्होंने आगे की तरफ बढ़ा वैसे ही देखा की एक आदमी गरीबो में दान दे रहा था | साधू ने तय किया की वो उस दानी व्यक्ति  के घर पर रुकेगा |
 
एक राज्य में एक बहुत ही ज्ञानी साधू रहते थे |वह एक दिन नगर में घुमने निकले थे | साधू का दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल  नही  होता था | जैसे उन्होंने आगे की तरफ बढ़ा वैसे ही देखा की एक आदमी गरीबो में दान दे रहा था | साधू ने तय किया की वो उस दानी व्यक्ति  के घर पर रुकेगा |
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उस दानी व्यक्ति ने साधू की बहुत सेवा की | साधू उसकी दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न  हो गये |
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उस दानी व्यक्ति ने साधू की बहुत सेवा की | साधू उसकी दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न  हो गये और दानी व्यक्ति को कहा मै तुमारी सेवा से प्रसन्न हूँ | तुम मुझसे जो आशीर्वाद मागों गे ओ कभी असफल नहीं होगा |आप सवार्थ भाव से माँगा तो कभी पूरा नहीं होगा |
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दानी व्यक्ति ने साधू से कहा मै निस्वार्थ भाव से मागूंगा  | दानी व्यक्ति ने साधू से एसा आशीर्वाद  माँगा  की मेरे पास इतनी संपत्ति आए की मेरे हाथों द्वारा गरीबों को दान मिले |कुछ दिन बाद दानी व्यक्ति  गरीब हो गया | अब उस दानी व्यक्ति की एसी हालत हो गई की जो दुसरे लोग दान देकर जाते थे उसी से उसका गुजरा चलता था
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