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एक बार महाराज कृष्केणदेवराय जी सेनापति राजेंद्र को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | सेनापति राजेंद्र ने महाराज सभी मंत्री गणों एवं आचर्य गुरुजनों को इस ख़ुशी के अवसर पर भोज के लिए आमंत्रित किया | सभी लोग महाराज के साथ सेनापति के निवास पर भोज के लिए पहुचें | नन्हे बालक के दर्शन के लिए सभी बालक के नजदीक गये जो की पालने में लेता हुआ था |

नन्हे बालक देखकर सभी बालक की प्रशंसा करने लगे , महाराज ने भी बालक की सुन्दरता की प्रशंसा की | तेनालीरामा ने भी बालक की प्रशंसा की , तेनाली रमा ने कहा सेनापति जी यहाँ बालक एकदम आपका स्वरुप है इसके मुख को देखकर लगता है यह आपकी तरह शूरवीर होगा | महाराज ने कहा यह कैसे कह सकते हो तेनालीरामा आपको कैसे पता है केवल मुख को देखकर आप यह कैसे कह सकते है | तेनाली रामा ने कहा महाराज किसी को देखकर हम यह अवलोकन कर सकते है | वहा पर इस विषय पर खूब चर्चा होती है |

सभी बालक को बहुत आशीर्वाद देते है औए स्वादिस्ट भोजन का आनंद लेकर चले गये | अगले दिन प्रातः में जब महाराज प्रांगण में टहल रहे थे तभी वह महाराज के चाटुकार आये जो तेनालीरामा को हमेशा निचा दिखने का प्रयास करते थे
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