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इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए।वास्तव में विद्यालय मे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में आचार्य और छात्रो के बीच आंतरक्रिया चलती है; अतः इन दोनो का ही विद्यालय होता है। प्रबंध समिती, शासन, प्रधानाचार्य अन्य कर्मचारी अभिभावक ये पाँच घटक पूरक बनना चाहिये।विद्यालय का परिचय गुरु के ही नाम से होता है ऐसी परंपरा भारत मे रही है। वसिष्ठ, सांदिपनी, द्रोणाचार्य इनके गुरुकुल उनके ही नाम से पहचाने जाते थे। टैगोर जी का शान्तिनिकेतन, तिलक जी का न्यूइंग्लिश स्कूल, गांधीजी का बुनियादी विद्यालय रहा है। इसलिए आचार्य और छात्र दोनों का ही विद्यालय अभिप्रेत है।
 
इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए।वास्तव में विद्यालय मे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में आचार्य और छात्रो के बीच आंतरक्रिया चलती है; अतः इन दोनो का ही विद्यालय होता है। प्रबंध समिती, शासन, प्रधानाचार्य अन्य कर्मचारी अभिभावक ये पाँच घटक पूरक बनना चाहिये।विद्यालय का परिचय गुरु के ही नाम से होता है ऐसी परंपरा भारत मे रही है। वसिष्ठ, सांदिपनी, द्रोणाचार्य इनके गुरुकुल उनके ही नाम से पहचाने जाते थे। टैगोर जी का शान्तिनिकेतन, तिलक जी का न्यूइंग्लिश स्कूल, गांधीजी का बुनियादी विद्यालय रहा है। इसलिए आचार्य और छात्र दोनों का ही विद्यालय अभिप्रेत है।
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प्रबंध समिति भवन आदि व्यवस्था करे। आज शासन अनुदान द्वारा आचार्यों की वेतनपूर्ति , प्रधानाचार्य आचार्यों को शैक्षिक मार्गदर्शन, अन्य कर्मचारी प्रशासकीय व्यवस्थाएँ सम्भालना, अभिभावक विद्यालय की आपूर्ति करना, इसमे सहायक बने। परंतु आज प्रबंधन समिति एवं शासन अपना अधिकार जमाने का कार्य करते है। इन सब घटकों का व्यवहारिक स्वरूप के संदर्भ मे प्रबंध समिति एवं शासन विद्यालय के संरक्षक प्रधानाचार्य आचार्य एवं कर्मचारियों के मार्गदर्शक तथा शासन प्रबंध समिती और विद्यालय के बीच सेतू के रूप में कार्य करे, अभिभावक का आचार्यों के साथ आत्मीय सबंध हो। विद्यालय मे श्रद्धा हो ऐसा मत प्रकट हुआ।
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प्रबंध समिति भवन आदि व्यवस्था करे। आज शासन अनुदान द्वारा आचार्यों की वेतनपूर्ति, प्रधानाचार्य आचार्यों को शैक्षिक मार्गदर्शन, अन्य कर्मचारी प्रशासकीय व्यवस्थाएँ सम्भालना, अभिभावक विद्यालय की आपूर्ति करना, इसमे सहायक बने। परंतु आज प्रबंधन समिति एवं शासन अपना अधिकार जमाने का कार्य करते है। इन सब घटकों का व्यवहारिक स्वरूप के संदर्भ मे प्रबंध समिति एवं शासन विद्यालय के संरक्षक प्रधानाचार्य आचार्य एवं कर्मचारियों के मार्गदर्शक तथा शासन प्रबंध समिती और विद्यालय के बीच सेतू के रूप में कार्य करे, अभिभावक का आचार्यों के साथ आत्मीय सबंध हो। विद्यालय मे श्रद्धा हो ऐसा मत प्रकट हुआ।
    
छात्र का विकास यह बात समान रूप से यह सभी को लागू चाहिये तथा सभी में घनिष्टता होनी चाहिये।
 
छात्र का विकास यह बात समान रूप से यह सभी को लागू चाहिये तथा सभी में घनिष्टता होनी चाहिये।
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विद्यार्थी, शिक्षक, संचालक और सरकार इन चार घटकों में विद्यालय किसका होता है ?
 
विद्यार्थी, शिक्षक, संचालक और सरकार इन चार घटकों में विद्यालय किसका होता है ?
* विद्यार्थी कहेंगे कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हम उसमें पढते हैं ।
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* विद्यार्थी कहेंगे कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हम उसमें पढते हैं।
* शिक्षक कहेंगे कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हम उसमें पढाते हैं ।
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* शिक्षक कहेंगे कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हम उसमें पढाते हैं।
* संचालक कहेंगे कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हमने उसे बनाया है ।
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* संचालक कहेंगे कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हमने उसे बनाया है।
* सरकार कहेगी कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हमने उसे मान्यता दी है ।
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* सरकार कहेगी कि विद्यालय हमारा है क्योंकि हमने उसे मान्यता दी है।
 
इस प्रकार सब कहेंगे कि विद्यालय हमारा है। तो फिर वास्तव में विद्यालय किसका होता है ?
 
इस प्रकार सब कहेंगे कि विद्यालय हमारा है। तो फिर वास्तव में विद्यालय किसका होता है ?
    
==== कसौटी क्या है ? ====
 
==== कसौटी क्या है ? ====
किसी विद्यार्थी पर तथाकथित अन्याय होता है, अथवा विद्यार्थी संघकी कोई बात नहीं मानी जाती है तब विद्यार्थी आन्दोलन करते हैं, हडताल करते हैं, विरोध प्रदर्शन करते हैं । विरोध प्रदर्शन में पथराव होता है, फर्नीचर तोडा जाता है, विद्यालय को भारी नुकसान पहुँचता है। तब विद्यालय किसका होता है ? क्या विद्यार्थियों का होता है ? यदि वह विद्यार्थियों का है तो उसे नुकसान कैसे पहुँचाया जा सकता है ?
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किसी विद्यार्थी पर तथाकथित अन्याय होता है, अथवा विद्यार्थी संघकी कोई बात नहीं मानी जाती है तब विद्यार्थी आन्दोलन करते हैं, हडताल करते हैं, विरोध प्रदर्शन करते हैं। विरोध प्रदर्शन में पथराव होता है, फर्नीचर तोडा जाता है, विद्यालय को भारी नुकसान पहुँचता है। तब विद्यालय किसका होता है ? क्या विद्यार्थियों का होता है ? यदि वह विद्यार्थियों का है तो उसे नुकसान कैसे पहुँचाया जा सकता है ?
    
बडे विद्यार्थियों की ही बात क्यों करें ? छोटे विद्यार्थी बेन्च और डेस्क पर कुछ लिखते हैं, पंखों के पंख मरोडते हैं, स्वीचों को तोडते हैं, दीवारों को गन्दा करते हैं, कूडा कहीं पर भी फैंकते हैं तब विद्यालय किसका होता है ? विद्यालय के भवन को यदि आग लग जाय तो किसकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?
 
बडे विद्यार्थियों की ही बात क्यों करें ? छोटे विद्यार्थी बेन्च और डेस्क पर कुछ लिखते हैं, पंखों के पंख मरोडते हैं, स्वीचों को तोडते हैं, दीवारों को गन्दा करते हैं, कूडा कहीं पर भी फैंकते हैं तब विद्यालय किसका होता है ? विद्यालय के भवन को यदि आग लग जाय तो किसकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?
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विद्यार्थी अपनी पढाई हेतु विद्यालय से जुडा है, विद्यालय के भवन से, व्यवस्थातन्त्र से, नीतिनियमों से उसका कोई लेना देना नहीं है। पढाई के कार्य में भी प्रत्यक्ष ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं, परीक्षा के परिणाम के साथ ही सम्बन्ध है। इसलिये परीक्षा समाप्त होते ही अध्ययन से, अध्यापकों से, विद्यालय की व्यवस्था से, विद्यालय की रीतिनीति से उसका सम्बन्ध समाप्त हो जाता है। परीक्षा में उत्तीर्ण होने के अलावा उसे और कुछ नहीं करना है । इसलिये विद्यालय के भवन को आग लगे, या शिक्षकों पर कोई आरोप लगे या विद्यालय की प्रतिष्ठा दांव पर लगे उसका कोई नुकसान नहीं होता। यह हकीकत बताती है कि विद्यालय विद्यार्थियों का तो नहीं है। वे विद्यालयके लिये कुछ भी नहीं करेंगे।
 
विद्यार्थी अपनी पढाई हेतु विद्यालय से जुडा है, विद्यालय के भवन से, व्यवस्थातन्त्र से, नीतिनियमों से उसका कोई लेना देना नहीं है। पढाई के कार्य में भी प्रत्यक्ष ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं, परीक्षा के परिणाम के साथ ही सम्बन्ध है। इसलिये परीक्षा समाप्त होते ही अध्ययन से, अध्यापकों से, विद्यालय की व्यवस्था से, विद्यालय की रीतिनीति से उसका सम्बन्ध समाप्त हो जाता है। परीक्षा में उत्तीर्ण होने के अलावा उसे और कुछ नहीं करना है । इसलिये विद्यालय के भवन को आग लगे, या शिक्षकों पर कोई आरोप लगे या विद्यालय की प्रतिष्ठा दांव पर लगे उसका कोई नुकसान नहीं होता। यह हकीकत बताती है कि विद्यालय विद्यार्थियों का तो नहीं है। वे विद्यालयके लिये कुछ भी नहीं करेंगे।
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शिक्षकों का भाव कैसा है ? हम सरकार के अथवा संचालकों के विद्यालय में नौकरी करते हैं। वेतन के बदले में पढाना हमारा काम है। पढाने के सम्बन्ध में जो नियम कानून हैं उनको हम मानेंगे, उनका पालन करेंगे । पढाने के सम्बन्ध में हमारे जो अधिकार हैं वे माँगेंगे । विद्यालय का समय पूरा हुआ हमारा काम भी पूरा हुआ । शेष समय हमारा है । उस शेष समय में विद्यालय का विचार करने की हमारी जिम्मेदारी नहीं।
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शिक्षकों का भाव कैसा है ? हम सरकार के अथवा संचालकों के विद्यालय में नौकरी करते हैं। वेतन के बदले में पढाना हमारा काम है। पढाने के सम्बन्ध में जो नियम कानून हैं उनको हम मानेंगे, उनका पालन करेंगे । पढाने के सम्बन्ध में हमारे जो अधिकार हैं वे माँगेंगे। विद्यालय का समय पूरा हुआ हमारा काम भी पूरा हुआ। शेष समय हमारा है। उस शेष समय में विद्यालय का विचार करने की हमारी जिम्मेदारी नहीं।
    
संचालक कहते हैं कि विद्यालय के भवन की मालिकी हमारी है, हमने शिक्षकों को नियुक्त किया है, हमने विद्यर्थियों को प्रवेश दिया है इसलिये हमारा अधिकार है परन्तु पढाने का काम हमारा नहीं है, उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है। अध्ययन विषयक, विद्यार्थियों के चरित्र विषयक कोई अनहोनी होती है तो उसकी जिम्मेदारी शिक्षकों और अभिभावकों की है । हम उनके विरुद्ध कार्यवाही करेंगे, उन्हें दण्ड देंगे।
 
संचालक कहते हैं कि विद्यालय के भवन की मालिकी हमारी है, हमने शिक्षकों को नियुक्त किया है, हमने विद्यर्थियों को प्रवेश दिया है इसलिये हमारा अधिकार है परन्तु पढाने का काम हमारा नहीं है, उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है। अध्ययन विषयक, विद्यार्थियों के चरित्र विषयक कोई अनहोनी होती है तो उसकी जिम्मेदारी शिक्षकों और अभिभावकों की है । हम उनके विरुद्ध कार्यवाही करेंगे, उन्हें दण्ड देंगे।
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परन्तु इससे आगे बात नहीं बढती ।
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परन्तु इससे आगे बात नहीं बढती।
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सरकार की तो कोई भूमिका बनती ही नहीं है ।
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सरकार की तो कोई भूमिका बनती ही नहीं है।
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शिक्षा संस्थाओं को लेकर चित्र आज ऐसा है। विद्यालय के भवन की मालिकी संचालकों की इसलिये उनका मालिकयत का सम्बन्ध, सरकार का नियन्त्रक के नाते सम्बन्ध. शिक्षकों का अपने वेतन का सम्बन्ध और विद्यार्थियों का अपनी परीक्षा से सम्बन्ध । इसमें विद्या कहाँ है ? विद्या की प्रतिष्ठा कहाँ है ? विद्या की साधना का तो प्रश्न ही नहीं है । ज्ञानसाधना का मिशन होने की सम्भावना ही नहीं है।
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शिक्षा संस्थाओं को लेकर चित्र आज ऐसा है। विद्यालय के भवन की मालिकी संचालकों की इसलिये उनका मालिकयत का सम्बन्ध, सरकार का नियन्त्रक के नाते सम्बन्ध. शिक्षकों का अपने वेतन का सम्बन्ध और विद्यार्थियों का अपनी परीक्षा से सम्बन्ध। इसमें विद्या कहाँ है ? विद्या की प्रतिष्ठा कहाँ है ? विद्या की साधना का तो प्रश्न ही नहीं है। ज्ञानसाधना का मिशन होने की सम्भावना ही नहीं है।
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देश में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय हैं जहाँ अध्ययन - अध्यापन अच्छा होता है और ज्ञानसाधना भी होती है परन्तु वह व्यक्तियों के कारण से होता है. व्यवस्था के कारण से नहीं। भले ही व्यक्तियों के कारण हो, उसका लाभ अवश्य होता है । परन्तु यह अपवाद रूप स्थिति है। सार्वत्रिक स्थिति तो सरोकार विहीनता की ही है ।
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देश में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय हैं जहाँ अध्ययन - अध्यापन अच्छा होता है और ज्ञानसाधना भी होती है परन्तु वह व्यक्तियों के कारण से होता है. व्यवस्था के कारण से नहीं। भले ही व्यक्तियों के कारण हो, उसका लाभ अवश्य होता है। परन्तु यह अपवाद रूप स्थिति है। सार्वत्रिक स्थिति तो सरोकार विहीनता की ही है।
    
==== इस का उपाय क्या है ? ====
 
==== इस का उपाय क्या है ? ====
 
शिक्षाक्षेत्र में नौकरी की व्यवस्था जब तक समाप्त नहीं होती तब तक परिस्थिति में सुधार नहीं हो सकता। घर में कोई नौकरी नहीं करता, काम सब करते हैं। घर में रहने का घर के सभी सदस्यों को जन्मसिद्ध अधिकार है। घर सबका है और सेवा करना ही सबका धर्म है। एकदूसरे के लिये सब काम करते हैं। घर की प्रतिष्ठा सबकी चिन्ता का विषय है। घर की बदनामी सबकी बदनामी है। मातापिता सन्तानों के लिये और सन्ताने मातापिता के लिये जीते हैं। तभी वह परिवार है । परिवार भावना, व्यवस्था और सम्बन्धों से बनता है। तीनों बातें एक ही स्थान पर केन्द्रित हुई है।
 
शिक्षाक्षेत्र में नौकरी की व्यवस्था जब तक समाप्त नहीं होती तब तक परिस्थिति में सुधार नहीं हो सकता। घर में कोई नौकरी नहीं करता, काम सब करते हैं। घर में रहने का घर के सभी सदस्यों को जन्मसिद्ध अधिकार है। घर सबका है और सेवा करना ही सबका धर्म है। एकदूसरे के लिये सब काम करते हैं। घर की प्रतिष्ठा सबकी चिन्ता का विषय है। घर की बदनामी सबकी बदनामी है। मातापिता सन्तानों के लिये और सन्ताने मातापिता के लिये जीते हैं। तभी वह परिवार है । परिवार भावना, व्यवस्था और सम्बन्धों से बनता है। तीनों बातें एक ही स्थान पर केन्द्रित हुई है।
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विद्यालय भी परिवार बनना चाहिये, तभी वह धार्मिक संकल्पना का विद्यालय बनेगा। व्यवस्था, नियन्त्रण, कार्य जब भिन्न भिन्न स्थानों पर केन्द्रित होंगे तब वह एकसंध परिवार नहीं बनेगा । वर्तमान व्यवस्था ही ऐसी बनी है जहाँ विद्यालय परिवार बनने की सम्भावना नहीं है।विद्यालय को परिवार मानने के लिये शिक्षकों और विद्यार्थियों का प्रबोधन करने की भावनात्मक बातें बहुत की जाती हैं परन्तु परिणाम दिखाई नहीं देता क्योंकि परिवार बनने के लिये जो एकसंघ व्यवस्था चाहिये उसकी हम बात नहीं करते । व्यवस्था विशृंखलता की और अनेक केन्द्री स्वार्थों की और भावना परिवार की ऐसी दो बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।
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विद्यालय भी परिवार बनना चाहिये, तभी वह धार्मिक संकल्पना का विद्यालय बनेगा। व्यवस्था, नियन्त्रण, कार्य जब भिन्न भिन्न स्थानों पर केन्द्रित होंगे तब वह एकसंध परिवार नहीं बनेगा। वर्तमान व्यवस्था ही ऐसी बनी है जहाँ विद्यालय परिवार बनने की सम्भावना नहीं है। विद्यालय को परिवार मानने के लिये शिक्षकों और विद्यार्थियों का प्रबोधन करने की भावनात्मक बातें बहुत की जाती हैं परन्तु परिणाम दिखाई नहीं देता क्योंकि परिवार बनने के लिये जो एकसंघ व्यवस्था चाहिये उसकी हम बात नहीं करते। व्यवस्था विशृंखलता की और अनेक केन्द्री स्वार्थों की और भावना परिवार की ऐसी दो बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।
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शिक्षक केन्द्रित विद्यालय ही इसका सही और परिणामकारी उपाय है । इस व्यवस्था के लिये शिक्षकों को सिद्ध और समर्थ बनना होगा तथा संचालकों और सरकार को अनुकूल। शिक्षकाधीन शिक्षा इसका सार्थक सूत्र है ।
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शिक्षक केन्द्रित विद्यालय ही इसका सही और परिणामकारी उपाय है। इस व्यवस्था के लिये शिक्षकों को सिद्ध और समर्थ बनना होगा तथा संचालकों और सरकार को अनुकूल। शिक्षकाधीन शिक्षा इसका सार्थक सूत्र है।
    
== विद्यालय का शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम ==
 
== विद्यालय का शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम ==
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# भ्रमण के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान का विकास किस प्रकार से होता है ?
 
# भ्रमण के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान का विकास किस प्रकार से होता है ?
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==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ====
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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
विद्याभारती केल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है । भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई महसूस हुई । फिर भी उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है । आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है । निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है । अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये । भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा ।
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विद्याभारती केवल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है। भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई महसूस हुई। फिर भी उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है। आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है। निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है। अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये। भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा।
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अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं । देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं । उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है । आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है ।
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अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं। देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं। उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है। आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है।
    
==== अभिमत ====
 
==== अभिमत ====
भ्रमण अर्थात् घूमना । शैक्षिक भ्रमण अर्थात् कुछ जानने समझने के लिए घूमना ।
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भ्रमण अर्थात् घूमना। शैक्षिक भ्रमण अर्थात् कुछ जानने समझने के लिए घूमना।
# उस दृष्टि से गाँव का साप्ताहिक बाजार, मेले, प्राचीन मन्दिर, अखाड़े, प्रेक्षणीय स्थान, जंगल, उद्याने, उपवन, बाँध, पर्वतारोहण, नदीकिनारा, समुद्रकिनारा, म्युझियम, कारखाने, गोशाला, फसल से भरी खेती, फल के बगीचे, निसर्गरम्य स्थान, प्रपात, गरमपानी के झरने इत्यादि प्रकार के स्थान शैक्षिक भ्रमण के लिए होने चाहिये ।।
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# उस दृष्टि से गाँव का साप्ताहिक बाजार, मेले, प्राचीन मन्दिर, अखाड़े, प्रेक्षणीय स्थान, जंगल, उद्याने, उपवन, बाँध, पर्वतारोहण, नदीकिनारा, समुद्रकिनारा, म्युझियम, कारखाने, गोशाला, फसल से भरी खेती, फल के बगीचे, निसर्गरम्य स्थान, प्रपात, गरमपानी के झरने इत्यादि प्रकार के स्थान शैक्षिक भ्रमण के लिए होने चाहिये।
# जहाँ जाना वहाँ क्या देखना, किससे मिलना, कैसी पूछताछ करना, उसकी विस्तृत चर्चा शिक्षकों ने विद्यार्थियों के साथ करनी चाहिये ।
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# जहाँ जाना वहाँ क्या देखना, किससे मिलना, कैसी पूछताछ करना, उसकी विस्तृत चर्चा शिक्षकों ने विद्यार्थियों के साथ करनी चाहिये।
 
# भ्रमण के समय अध्यापक और छात्र दोनों में समवयस्क जैसा व्यवहार हो परंतु अनुशासन, और आदरभाव भी होना जरूरी है।
 
# भ्रमण के समय अध्यापक और छात्र दोनों में समवयस्क जैसा व्यवहार हो परंतु अनुशासन, और आदरभाव भी होना जरूरी है।
# भ्रमण शैक्षिक होने के कारण सब विद्यार्थियों की सहभागिता अवश्य हो । क्षेत्रभेट करनेके लिए छात्रों की टोली बने ये टोलियाँ ३-४ स्थानों पर अलग अलग जाये । दूसरे दिन सब छात्र मिलकर चर्चा में सम्मिलित हों इस प्रकार का आयोजन करना चाहिये । भ्रमण खर्च सब कर सके ऐसा ही हो कभी कभी खर्चिले भ्रमण मे ऐच्छिकता से सम्मिलित होने का प्रावधान किया जाता है ऐसा न हो । ऐसा भ्रमण शैक्षिक नहीं होता है, मात्र मनोरंजन को दिया गया व्यावसायिक रूप ही है ।
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# भ्रमण शैक्षिक होने के कारण सब विद्यार्थियों की सहभागिता अवश्य हो। क्षेत्रभेट करनेके लिए छात्रों की टोली बने ये टोलियाँ ३-४ स्थानों पर अलग अलग जाये। दूसरे दिन सब छात्र मिलकर चर्चा में सम्मिलित हों इस प्रकार का आयोजन करना चाहिये। भ्रमण खर्च सब कर सके ऐसा ही हो कभी कभी खर्चिले भ्रमण मे ऐच्छिकता से सम्मिलित होने का प्रावधान किया जाता है ऐसा न हो। ऐसा भ्रमण शैक्षिक नहीं होता है, मात्र मनोरंजन को दिया गया व्यावसायिक रूप ही है।
शैक्षिक भ्रमण से इतिहास भूगोल समाजविज्ञान आदि विषयों का अध्ययन होता है । भ्रमण से पूर्व योग्य सूचनाएँ सावधानी एवं पूर्वजानकारी (स्थान संदर्भ में) और वापसी के बाद उस विषय में चर्चा लेखन प्रश्नावलियाँ तैयार करना आदि अवश्य करें।
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शैक्षिक भ्रमण से इतिहास भूगोल समाजविज्ञान आदि विषयों का अध्ययन होता है। भ्रमण से पूर्व योग्य सूचनाएँ सावधानी एवं पूर्वजानकारी (स्थान संदर्भ में) और वापसी के बाद उस विषय में चर्चा लेखन प्रश्नावलियाँ तैयार करना आदि अवश्य करें।
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कुंभ मेला, वेदपाठशाला आदि स्थानों में जाकर संस्कृति परिचय होता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास होता है । पूर्व के जमाने में संतवृन्द, शंकराचार्य पैदल यात्रा करते थे। उन्हें देशकाल परिस्थिति का आकलन होता था। वह शैक्षिक भ्रमण था। आज वह तत्व ध्यान में रखकर परिस्थिति एवं छात्रों की आयु क्षमता ध्यान में लेते हुए योग्य परिवर्तन करके विद्यालयों ने शैक्षिक भ्रमण की योजना बनानी चाहिये ।
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कुंभ मेला, वेदपाठशाला आदि स्थानों में जाकर संस्कृति परिचय होता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास होता है। पूर्व के जमाने में संतवृन्द, शंकराचार्य पैदल यात्रा करते थे। उन्हें देशकाल परिस्थिति का आकलन होता था। वह शैक्षिक भ्रमण था। आज वह तत्व ध्यान में रखकर परिस्थिति एवं छात्रों की आयु क्षमता ध्यान में लेते हुए योग्य परिवर्तन करके विद्यालयों ने शैक्षिक भ्रमण की योजना बनानी चाहिये।
    
==== विमर्श ====
 
==== विमर्श ====
 
===== शैक्षिक भ्रमण सम्बन्धी विचारणीय मुद्दे =====
 
===== शैक्षिक भ्रमण सम्बन्धी विचारणीय मुद्दे =====
आज हमने सभी बातों को उल्टा कर दिया है। उसमें भ्रमण का भी विषय समाविष्ट है । जरा इन मुद्दों पर विचार करें...
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आज हमने सभी बातों को उल्टा कर दिया है। उसमें भ्रमण का भी विषय समाविष्ट है। जरा इन मुद्दों पर विचार करें...
# शैक्षिक भ्रमण में से शैक्षिक शब्द छूट गया है, विस्मृत हो गया है। उसका कोई प्रयोजन नहीं रहा । अब केवल भ्रमण ही रह गया है जिसका उद्देश्य शैक्षिक नहीं है, मनोरंजन है, मजा करना है।
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# शैक्षिक भ्रमण में से शैक्षिक शब्द छूट गया है, विस्मृत हो गया है। उसका कोई प्रयोजन नहीं रहा। अब केवल भ्रमण ही रह गया है जिसका उद्देश्य शैक्षिक नहीं है, मनोरंजन है, मजा करना है।
 
# औपचारिकता के लिये अभी भी यह शैक्षिक भ्रमण है। भ्रमण यदि शैक्षिक है तो रेलवे की ओर से ५० प्रतिशत किराया कम हो जाता है, दस विद्यार्थियों पर एक शिक्षक की निःशुल्क यात्रा होती है। इसलिये सरकारी एवं विद्यालय के कार्यालयमें और रेलवे या अन्य यातायात के लिये यह शैक्षिक भ्रमण है, विद्यर्थियों और शिक्षकों - भ्रमण हेतु जाने वालों - के लिये यह मनोरंजन यात्रा है।  
 
# औपचारिकता के लिये अभी भी यह शैक्षिक भ्रमण है। भ्रमण यदि शैक्षिक है तो रेलवे की ओर से ५० प्रतिशत किराया कम हो जाता है, दस विद्यार्थियों पर एक शिक्षक की निःशुल्क यात्रा होती है। इसलिये सरकारी एवं विद्यालय के कार्यालयमें और रेलवे या अन्य यातायात के लिये यह शैक्षिक भ्रमण है, विद्यर्थियों और शिक्षकों - भ्रमण हेतु जाने वालों - के लिये यह मनोरंजन यात्रा है।  
# सबसे पहले यह दुविधा दूर करनी चाहिये । यह दुविधा अप्रामाणिकता है, दम्भ है, झूठ बोलकर लाभ लेने की वृत्ति प्रवृत्ति है। विद्यार्थियों पर इससे भ्रष्टाचार के संस्कार होते हैं।  
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# सबसे पहले यह दुविधा दूर करनी चाहिये। यह दुविधा अप्रामाणिकता है, दम्भ है, झूठ बोलकर लाभ लेने की वृत्ति प्रवृत्ति है। विद्यार्थियों पर इससे भ्रष्टाचार के संस्कार होते हैं।  
# विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों में शैक्षिक भ्रमण' शब्द परिचित, प्रचलित और प्रतिष्ठित करना चाहिये और विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण का अर्थ और उद्देश्य समझाना चाहिये ।
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# विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों में शैक्षिक भ्रमण' शब्द परिचित, प्रचलित और प्रतिष्ठित करना चाहिये और विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण का अर्थ और उद्देश्य समझाना चाहिये।
# इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, संस्कृति आदि विषयों के साथ भ्रमण कार्यक्रम को जाड़ना चाहिये । भिन्न भिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ उसे जोड़ना चाहिये । कक्षा और विषय के अनुसार विभिन्न गट बनाने चाहिये । गट में एक साथ कम संख्या होनी चाहिये ताकि व्यवस्था ठीक बनी रहे।  
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# इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, संस्कृति आदि विषयों के साथ भ्रमण कार्यक्रम को जाड़ना चाहिये। भिन्न भिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ उसे जोड़ना चाहिये। कक्षा और विषय के अनुसार विभिन्न गट बनाने चाहिये। गट में एक साथ कम संख्या होनी चाहिये ताकि व्यवस्था ठीक बनी रहे।  
 
# जब ठीक से प्रबोधन नहीं किया जाता है तब जहाँ जाते हैं उस दर्शनीय स्थान के दर्शन और अवलोकन तो एक और रह जाते हैं और यात्रा के दौरान का दंगा, खान पान, वेश और फैशन, फोटो सेशन, खरीदी आदि मुख्य बातें बन जाती हैं। विद्यार्थियों और शिक्षकों की इस मानसिकता का उपचार करने की आवश्यकता है। शिक्षकों का उपचार शिक्षाशास्त्रियों ने और विद्यार्थीयों का उपचार शिक्षकों ने करना चाहिये।  
 
# जब ठीक से प्रबोधन नहीं किया जाता है तब जहाँ जाते हैं उस दर्शनीय स्थान के दर्शन और अवलोकन तो एक और रह जाते हैं और यात्रा के दौरान का दंगा, खान पान, वेश और फैशन, फोटो सेशन, खरीदी आदि मुख्य बातें बन जाती हैं। विद्यार्थियों और शिक्षकों की इस मानसिकता का उपचार करने की आवश्यकता है। शिक्षकों का उपचार शिक्षाशास्त्रियों ने और विद्यार्थीयों का उपचार शिक्षकों ने करना चाहिये।  
# शैक्षिक भ्रमण देशदर्शन और संस्कृति दर्शन हेतु होता है, इतिहास दर्शन हेतु भी होता है ।
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# शैक्षिक भ्रमण देशदर्शन और संस्कृति दर्शन हेतु होता है, इतिहास दर्शन हेतु भी होता है।
 
# अपने ही नगर का भूगोल और दर्शनीय स्थान देखने से भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत होती है। आगे चलकर अपना जिला, अपना राज्य और अपने देश का भ्रमण करना चाहिये।  
 
# अपने ही नगर का भूगोल और दर्शनीय स्थान देखने से भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत होती है। आगे चलकर अपना जिला, अपना राज्य और अपने देश का भ्रमण करना चाहिये।  
 
# कुछ उदाहरण देखें:  
 
# कुछ उदाहरण देखें:  
## कक्षा में यदि शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ना है तो दो प्रकार से भ्रमण गट बन सकते हैं । एक गट महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के गढ़ और किले देखने के लिये और दसरा गट आगरा और दिल्ली के किले, जहाँ शिवाजी महाराज को औरंगजेबने कैद में रखा था और मिठाई की टोकरियों में बैठकर पुत्र के साथ वे कैद से भागकर वापस अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे थे।  
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## कक्षा में यदि शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ना है तो दो प्रकार से भ्रमण गट बन सकते हैं। एक गट महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के गढ़ और किले देखने के लिये और दसरा गट आगरा और दिल्ली के किले, जहाँ शिवाजी महाराज को औरंगजेबने कैद में रखा था और मिठाई की टोकरियों में बैठकर पुत्र के साथ वे कैद से भागकर वापस अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे थे।  
## संस्कृति विषय में बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम का वर्णन आता है। वहाँ जाकर उन्हें देखने की योजना बनानी चाहिये ।
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## संस्कृति विषय में बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम का वर्णन आता है। वहाँ जाकर उन्हें देखने की योजना बनानी चाहिये।
## दिल्ली का लोहस्तम्भ, अजंता की चित्रावलि, कैलास मन्दिर, वाराणसी की वेधशाला के अवशेष आदि भारत की कारीगरी के नमूने हैं, गौरवबिन्दु हैं। उन्हें देखने की योजना बना सकते हैं ।
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## दिल्ली का लोहस्तम्भ, अजंता की चित्रावलि, कैलास मन्दिर, वाराणसी की वेधशाला के अवशेष आदि भारत की कारीगरी के नमूने हैं, गौरवबिन्दु हैं। उन्हें देखने की योजना बना सकते हैं।
# इस प्रकार विशिष्ट उद्देश्यों को लेकर भ्रमण की योजना बनानी चाहिये । परन्तु भ्रमण हेतु जाने से पहले और आने के बाद बहुत सारी शैक्षिक गतिविधियों को भ्रमण के साथ जोड़ना आवश्यक है।  
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# इस प्रकार विशिष्ट उद्देश्यों को लेकर भ्रमण की योजना बनानी चाहिये। परन्तु भ्रमण हेतु जाने से पहले और आने के बाद बहुत सारी शैक्षिक गतिविधियों को भ्रमण के साथ जोड़ना आवश्यक है।  
 
# भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये।  
 
# भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये।  
# यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये । यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है । सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
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# यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये। यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है। सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
# भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये । एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।  
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# भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये। एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।  
# वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये ।
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# वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये।
# शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है । यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये ।
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# शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है। यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये।
# आजकल कुछ इण्टरनेशनल विद्यालय विद्यार्थियों को विदेश यात्रा के लिये ले जाते हैं। विदेशयात्रा यह शैक्षिक विषय नहीं है, विद्यालय में प्रवेश हेतु आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण की प्रेरणा देता है। फिर विद्यालयों में स्पर्धा होने लगती है। स्पर्धा के अनेक क्षेत्र खुल जाते हैं और शैक्षिक उद्देश्य उपेक्षित हो जाते हैं ।
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# आजकल कुछ इण्टरनेशनल विद्यालय विद्यार्थियों को विदेश यात्रा के लिये ले जाते हैं। विदेशयात्रा यह शैक्षिक विषय नहीं है, विद्यालय में प्रवेश हेतु आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण की प्रेरणा देता है। फिर विद्यालयों में स्पर्धा होने लगती है। स्पर्धा के अनेक क्षेत्र खुल जाते हैं और शैक्षिक उद्देश्य उपेक्षित हो जाते हैं।
# शैक्षिक भ्रमण को हम अध्ययन यात्रा का नाम भी दे सकते हैं । देश के अनेक भूषण रूप विद्वान, वैज्ञानिक, कारीगर, कलाकार आदि से भेंट कर उनके साथ वार्तालाप करना अध्ययन यात्रा का उद्देश्य हो सकता है। उदाहरण के लिये परम संगणक के जनक डॉ. विजय भटकर, महान वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ माशेलकर, वाराणसी के शास्त्री लक्ष्मण शास्त्री द्रविड, प्रसिद्ध सन्त मोरारी बापू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत, पू. रामदेव महाराज, दक्षिण की अम्मा माता अमृतानन्दमयी आदि अनेक महानुभाव हैं जो विद्यार्थियों के आदर्श बन सकते हैं और जिनसे मिलना विशिष्ट अनुभव हो सकता है । ये तो कुछ संकेत मात्र हैं । भारत तो ऐसे महापुरुषों की खान है।  
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# शैक्षिक भ्रमण को हम अध्ययन यात्रा का नाम भी दे सकते हैं। देश के अनेक भूषण रूप विद्वान, वैज्ञानिक, कारीगर, कलाकार आदि से भेंट कर उनके साथ वार्तालाप करना अध्ययन यात्रा का उद्देश्य हो सकता है। उदाहरण के लिये परम संगणक के जनक डॉ. विजय भटकर, महान वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ माशेलकर, वाराणसी के शास्त्री लक्ष्मण शास्त्री द्रविड, प्रसिद्ध सन्त मोरारी बापू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत, पू. रामदेव महाराज, दक्षिण की अम्मा माता अमृतानन्दमयी आदि अनेक महानुभाव हैं जो विद्यार्थियों के आदर्श बन सकते हैं और जिनसे मिलना विशिष्ट अनुभव हो सकता है। ये तो कुछ संकेत मात्र हैं। भारत तो ऐसे महापुरुषों की खान है।  
 
इसी प्रकार से अनेक सेवा प्रकल्प, निर्माण प्रकल्प, शिक्षा प्रकल्प चलते हैं जिन की भेंट करना ज्ञान में वृद्धि करना है।
 
इसी प्रकार से अनेक सेवा प्रकल्प, निर्माण प्रकल्प, शिक्षा प्रकल्प चलते हैं जिन की भेंट करना ज्ञान में वृद्धि करना है।
    
===== दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता =====
 
===== दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता =====
शैक्षिक दृष्टि से यदि विचार करने लगें तो शैक्षिक । भ्रमण के विषय में हम अनेक नई बातें सोच सकते हैं । केवल दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। शिक्षा के ठहरे हुए पानी को प्रवाहित करने से सडाँध दूर होगी और शैक्षिक गतिविधियाँ परिष्कृत होंगी।
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शैक्षिक दृष्टि से यदि विचार करने लगें तो शैक्षिक। भ्रमण के विषय में हम अनेक नई बातें सोच सकते हैं। केवल दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। शिक्षा के ठहरे हुए पानी को प्रवाहित करने से सडाँध दूर होगी और शैक्षिक गतिविधियाँ परिष्कृत होंगी।
    
देश में कुछ जाने और जानने योग्य स्थान  
 
देश में कुछ जाने और जानने योग्य स्थान  
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# कुरुक्षेत्र, हरियाणा जहाँ महाभारत का युद्ध हुआ था और भगवान श्रीकृष्णने गीता का उपदेश दिया था।  
 
# कुरुक्षेत्र, हरियाणा जहाँ महाभारत का युद्ध हुआ था और भगवान श्रीकृष्णने गीता का उपदेश दिया था।  
 
# नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश जहाँ आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व ८८,००० ऋषि एकत्रित हुए थे और बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था।
 
# नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश जहाँ आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व ८८,००० ऋषि एकत्रित हुए थे और बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था।
# विवेकानन्द शिला स्मारक, कन्याकुमारी जहाँ बैठकर स्वामीजीने तीन दिन ध्यान किया था ।
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# विवेकानन्द शिला स्मारक, कन्याकुमारी जहाँ बैठकर स्वामीजीने तीन दिन ध्यान किया था।
 
# जगन्नाथपुरी, उडीसा जहाँ भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है।  
 
# जगन्नाथपुरी, उडीसा जहाँ भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है।  
 
# कामाख्या मन्दिर, असम जहाँ देवी कामाख्या शक्तिपीठ है।
 
# कामाख्या मन्दिर, असम जहाँ देवी कामाख्या शक्तिपीठ है।
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==== विमर्श ====
 
==== विमर्श ====
जब से भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व स्थापित हुआ है तब से विचार के क्षेत्र में घालमेल शुरू हो गया है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका अनुवाद की है । धार्मिक भाषाओं के संकल्पनात्मक शब्दों के अंग्रेजी अनुवाद इसके खास उदाहरण हैं । उदाहरण के लिये 'धर्म' का अनुवाद ‘रिलीजन' और 'संस्कृति' का अनुवाद 'कल्चर' किया जाता है । यदि केवल अनुवाद तक ही बात सीमित रहती है तब बहत चिन्ता की बात नहीं रहती है । यदि अंग्रेजी भाषी लोग ‘संस्कृति' को 'कल्चर' के रूप में और 'धर्म' को ‘रिलीजन' के रूप में समझते हैं तब सीमित समझ उनकी ही समस्या बनेगी । परन्तु हुआ यह है कि हम धार्मिक 'धर्म' को 'रिलीजन' और 'संस्कृति' को 'कल्चर' समझने लगे हैं । अंग्रेजी को ही मानक के रूप में प्रतिष्ठित करने का और उसे प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का कार्य हमारे देश का बौद्धिक जगत तथा सरकार करती है । परिणाम स्वरूप सामान्यजन को भी उसका स्वीकार करना ही पड़ता है । भले ही हम धार्मिक भाषा में संस्कृति' बोले, हमारे मनमस्तिष्क में उसकी समझ 'कल्चर' के रूप में ही होती है ।
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जब से भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व स्थापित हुआ है तब से विचार के क्षेत्र में घालमेल शुरू हो गया है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका अनुवाद की है। धार्मिक भाषाओं के संकल्पनात्मक शब्दों के अंग्रेजी अनुवाद इसके खास उदाहरण हैं। उदाहरण के लिये 'धर्म' का अनुवाद ‘रिलीजन' और 'संस्कृति' का अनुवाद 'कल्चर' किया जाता है। यदि केवल अनुवाद तक ही बात सीमित रहती है तब बहत चिन्ता की बात नहीं रहती है। यदि अंग्रेजी भाषी लोग ‘संस्कृति' को 'कल्चर' के रूप में और 'धर्म' को ‘रिलीजन' के रूप में समझते हैं तब सीमित समझ उनकी ही समस्या बनेगी । परन्तु हुआ यह है कि हम धार्मिक 'धर्म' को 'रिलीजन' और 'संस्कृति' को 'कल्चर' समझने लगे हैं। अंग्रेजी को ही मानक के रूप में प्रतिष्ठित करने का और उसे प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का कार्य हमारे देश का बौद्धिक जगत तथा सरकार करती है। परिणाम स्वरूप सामान्यजन को भी उसका स्वीकार करना ही पड़ता है। भले ही हम धार्मिक भाषा में संस्कृति' बोले, हमारे मनमस्तिष्क में उसकी समझ 'कल्चर' के रूप में ही होती है।
    
इसलिये प्रथम आवश्यकता ‘संस्कृति' को 'कल्चर' से मुक्त कर संस्कृति' के ही अर्थ में समझने की है।
 
इसलिये प्रथम आवश्यकता ‘संस्कृति' को 'कल्चर' से मुक्त कर संस्कृति' के ही अर्थ में समझने की है।
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संस्कृति के दो आयाम हैं । एक तो वह धर्म का कृतिरूप है । वह धर्म की प्रणाली है । तभी वह सबका भला करने वाली, सबका कल्याण करनेवाली बनती है । दूसरी ओर वह सुन्दर है । अतः संस्कृति में कल्याणकारी और सुन्दर ऐसे दोनों रूप प्रकट होते हैं।
 
संस्कृति के दो आयाम हैं । एक तो वह धर्म का कृतिरूप है । वह धर्म की प्रणाली है । तभी वह सबका भला करने वाली, सबका कल्याण करनेवाली बनती है । दूसरी ओर वह सुन्दर है । अतः संस्कृति में कल्याणकारी और सुन्दर ऐसे दोनों रूप प्रकट होते हैं।
   −
जीवन के हर व्यावहारिक आविष्कार में यह स्वरूप प्रकट होता है । भोजन स्वादिष्ट, हृद्य, सात्त्विक और पौष्टिक होता है. अकेला स्वादिष्ट या अकेला सात्त्विक नहीं, वस्त्र और अलंकार शरीर का रक्षण और पोषण करते हैं साथ ही शोभा भी बढाते हैं और दृष्टि को आनन्द का अनुभव भी करवाते हैं; नृत्य, गीत-संगीत, आनन्द भी देते हैं और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं । श्रेय और प्रेय को एकदूसरे में ओतप्रोत बनाने की यह धार्मिक सांस्कृतिक दृष्टि है जो बर्तन साफ करने के, पानी भरने के, मिट्टी कूटने के, भूमि जोतने के, कपडा बुनने के, लकडी काटने के कामों में सुन्दरता, आनन्द, मुक्ति की साधना और लोककल्याण के सभी आयामों को एकत्र गूंथती है । यह समग्रता का दर्शन है ।
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जीवन के हर व्यावहारिक आविष्कार में यह स्वरूप प्रकट होता है। भोजन स्वादिष्ट, हृद्य, सात्त्विक और पौष्टिक होता है.अकेला स्वादिष्ट या अकेला सात्त्विक नहीं, वस्त्र और अलंकार शरीर का रक्षण और पोषण करते हैं साथ ही शोभा भी बढाते हैं और दृष्टि को आनन्द का अनुभव भी करवाते हैं; नृत्य, गीत-संगीत, आनन्द भी देते हैं और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। श्रेय और प्रेय को एकदूसरे में ओतप्रोत बनाने की यह धार्मिक सांस्कृतिक दृष्टि है जो बर्तन साफ करने के, पानी भरने के, मिट्टी कूटने के, भूमि जोतने के, कपडा बुनने के, लकडी काटने के कामों में सुन्दरता, आनन्द, मुक्ति की साधना और लोककल्याण के सभी आयामों को एकत्र गूंथती है। यह समग्रता का दर्शन है।
   −
अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है । ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं । उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं । संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं । अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है । इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
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अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है। ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं। उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं। संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं। अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है। इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
   −
साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपडे की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपडे पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये ।
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साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपडे की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपडे पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये।
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दूसरी आवश्यकता मनोभावों को शुद्ध करने की होती है ।
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दूसरी आवश्यकता मनोभावों को शुद्ध करने की होती है।
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विद्यालय में समाजसेवा के कार्य भी सांस्कृतिक कार्यक्रम ही कहे जाने चाहिये । समाजप्रबोधन हेतु प्रभातफेरी, ग्रन्थों की शोभायात्रा और पूजन, यज्ञ, जन्मदिनोत्सव, कृष्णजन्माष्टमी जैसे उत्सव, मेले सत्संग आदि सब सांस्कृतिक कार्यक्रम ही हैं । विद्यालय में मन्दिर, पुस्तकालय, कक्षाकक्ष, प्रवेशद्वार आदि का सुशोभन भी सांस्कृतिक गतिविधि ही कहा जायेगा । अतिथियों का मन्त्रोच्चार सहित स्वागत पुष्पार्पण आदि भी सांस्कृतिक कार्य ही है।
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विद्यालय में समाजसेवा के कार्य भी सांस्कृतिक कार्यक्रम ही कहे जाने चाहिये। समाजप्रबोधन हेतु प्रभातफेरी, ग्रन्थों की शोभायात्रा और पूजन, यज्ञ, जन्मदिनोत्सव, कृष्णजन्माष्टमी जैसे उत्सव, मेले सत्संग आदि सब सांस्कृतिक कार्यक्रम ही हैं। विद्यालय में मन्दिर, पुस्तकालय, कक्षाकक्ष, प्रवेशद्वार आदि का सुशोभन भी सांस्कृतिक गतिविधि ही कहा जायेगा। अतिथियों का मन्त्रोच्चार सहित स्वागत पुष्पार्पण आदि भी सांस्कृतिक कार्य ही है।
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परन्तु पुष्पगुच्छ अर्पण यदि प्लास्टिक के या सुगन्धरहित फूलों का है तो वह सांस्कृतिक नहीं है, मन्त्रोच्चार यदि अशुद्ध और बेसूरे हैं तो वे सांस्कृतिक नहीं है, रंगोली यदि सुरुचिपूर्ण और कलात्मक नहीं है तो वह सांस्कृतिक नहीं है । सामान्य वेशभूषा भी यदि शालीन नहीं है तो वह सांस्कृतिक नहीं है ।।
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परन्तु पुष्पगुच्छ अर्पण यदि प्लास्टिक के या सुगन्धरहित फूलों का है तो वह सांस्कृतिक नहीं है, मन्त्रोच्चार यदि अशुद्ध और बेसूरे हैं तो वे सांस्कृतिक नहीं है, रंगोली यदि सुरुचिपूर्ण और कलात्मक नहीं है तो वह सांस्कृतिक नहीं है । सामान्य वेशभूषा भी यदि शालीन नहीं है तो वह सांस्कृतिक नहीं है।
   −
सम्पूर्ण विद्यालय परिसर यदि स्वच्छ, सुशोभित, शान्त सौहार्दपूर्ण, स्वागतोत्सुक है तो वह सांस्कृतिक है । यही संस्कारक्षम वातावरण है ।
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सम्पूर्ण विद्यालय परिसर यदि स्वच्छ, सुशोभित, शान्त सौहार्दपूर्ण, स्वागतोत्सुक है तो वह सांस्कृतिक है। यही संस्कारक्षम वातावरण है।
   −
संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व के सारे निम्न स्तर के, निकृष्ट दर्जे के तत्वों को दूर कर उसे शिष्ट, सभ्य, शुद्ध, उच्च, उत्कृष्ट बनाती है । यही उसका विकास है । शिक्षा के इस प्रकार का विकास अपेक्षित है । यह विकास शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सभी स्तरों पर होता है । ऐसा विकास सिद्ध होता है इसलिये धर्म और संस्कृति को साथ साथ बोलने का प्रचलन है ।
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संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व के सारे निम्न स्तर के, निकृष्ट दर्जे के तत्वों को दूर कर उसे शिष्ट, सभ्य, शुद्ध, उच्च, उत्कृष्ट बनाती है। यही उसका विकास है। शिक्षा के इस प्रकार का विकास अपेक्षित है। यह विकास शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सभी स्तरों पर होता है। ऐसा विकास सिद्ध होता है इसलिये धर्म और संस्कृति को साथ साथ बोलने का प्रचलन है।
   −
विद्यालय के सांस्कृतिक स्वरूप की संकल्पना को ही प्रथम सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता है । मनोयोग से इन बातों का चिन्तन करने से यह किया जा सकता है, सतही बातचीत या विचार से यह नहीं होता है ।
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विद्यालय के सांस्कृतिक स्वरूप की संकल्पना को ही प्रथम सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता है । मनोयोग से इन बातों का चिन्तन करने से यह किया जा सकता है, सतही बातचीत या विचार से यह नहीं होता है।
    
== विद्यालय की प्रतिष्ठा ==
 
== विद्यालय की प्रतिष्ठा ==
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# समसम्बन्ध न होने पर कितने समझौते करने चाहिये ?
 
# समसम्बन्ध न होने पर कितने समझौते करने चाहिये ?
 
# प्रतिष्ठा के मापदण्ड किस आधार पर बनते हैं ?
 
# प्रतिष्ठा के मापदण्ड किस आधार पर बनते हैं ?
चार पाँच विद्यालयों को यह प्रश्नावली भेजी थी । परंतु किसी से भी उत्तर प्राप्त नहीं हुए । प्रश्न तो सरल थे । उसका शब्दार्थ और ध्वन्यार्थ भी हम समझते तो है परंतु आज शिक्षा की गाडी जो अत्यंत विपरीत पटरी पर जा रही है इसके कारण सत्य तो जानते है व्यवहार उलटा हो रहा है यह जानकर सरल प्रश्न भी उत्तर लिखने में कठीन लगते होंगे ऐसा अनुमान है ।
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चार पाँच विद्यालयों को यह प्रश्नावली भेजी थी। परंतु किसी से भी उत्तर प्राप्त नहीं हुए। प्रश्न तो सरल थे। उसका शब्दार्थ और ध्वन्यार्थ भी हम समझते तो है परंतु आज शिक्षा की गाडी जो अत्यंत विपरीत पटरी पर जा रही है इसके कारण सत्य तो जानते है व्यवहार उलटा हो रहा है यह जानकर सरल प्रश्न भी उत्तर लिखने में कठीन लगते होंगे ऐसा अनुमान है।
    
=== अभिमत ===
 
=== अभिमत ===
विद्या + आलय संधि से विद्यालय शब्द बनता है । आलय का अर्थ घर । ज्ञान का विद्या का घर अर्थात्‌ स्थान विद्यालय कहलाता है ।
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विद्या + आलय संधि से विद्यालय शब्द बनता है। आलय का अर्थ घर। ज्ञान का विद्या का घर अर्थात्‌ स्थान विद्यालय कहलाता है।
   −
जहाँ ज्ञान की प्रतिष्ठा हो, ज्ञान की पतरित्रता को जानते हुए सभी व्यवहार हो, तेजस्वी, मेधावि, जिज्ञासु एवं विनयशील छात्र हो वास्तव मे वहीं गौरवशाली एवं प्रतिष्ठित विद्यालय होता है ।
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जहाँ ज्ञान की प्रतिष्ठा हो, ज्ञान की पतरित्रता को जानते हुए सभी व्यवहार हो, तेजस्वी, मेधावि, जिज्ञासु एवं विनयशील छात्र हो वास्तव मे वहीं गौरवशाली एवं प्रतिष्ठित विद्यालय होता है।
    
=== विमर्श ===
 
=== विमर्श ===
    
==== विद्यालय साधनास्थली है ====
 
==== विद्यालय साधनास्थली है ====
विद्यालय शिक्षक एवं छात्रो की साधनास्थली है । तपस्थली है । अतः वह पवित्र स्थान है । जहाँ छात्र का शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास होता है वह गौरवप्राप्त विद्यालय होता है । पर्यावरण, स्वच्छता, अन्याय का प्रतिकार करना इस प्रकार समाज को सुल्यवस्थित रखनेवाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जिसका सक्रीय सहयोग हो वह प्रतिष्ठित विद्यालय है । विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र है इसलिए समाज को मार्गदर्शन करना उसका दायित्व बनता है । हिन्दुत्व का दूष्टीकोन एवं हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह रखनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होता है ।
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विद्यालय शिक्षक एवं छात्रो की साधनास्थली है। तपस्थली है। अतः वह पवित्र स्थान है। जहाँ छात्र का शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास होता है वह गौरवप्राप्त विद्यालय होता है। पर्यावरण, स्वच्छता, अन्याय का प्रतिकार करना इस प्रकार समाज को सुल्यवस्थित रखनेवाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जिसका सक्रीय सहयोग हो वह प्रतिष्ठित विद्यालय है । विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र है इसलिए समाज को मार्गदर्शन करना उसका दायित्व बनता है। हिन्दुत्व का दूष्टीकोन एवं हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह रखनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होता है।
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परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है । अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है । प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है । प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है । बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है । अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है । ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना धार्मिक शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है ।
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परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है। अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है। प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है। प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है। बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है। अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है। ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना धार्मिक शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है।
    
==== तक्षशिला विद्यापीठ ====
 
==== तक्षशिला विद्यापीठ ====
“चाणक्य' धारावाहिक जब देखते हैं तब एक बात की ओर ध्यान आकर्षित होता है । राज्यसभा में हो या विद्रतसभा में, तक्षशिला विद्यापीठ का नामोट्लेख होता है तब सबके हाथ श्रद्धा और आदर के भाव से जुड़ जाते हैं । यह श्रद्धा और आदर किस बात के लिये हैं ? वहाँ की श्रेष्ठ ज्ञान साधना और ज्ञानपरम्परा के लिये । काल के प्रवाह में तक्षशिला विद्यापीठ एक ऐसा एकमेवाद्धितीय विद्यापीठ है, एक ऐसा सार्वकालीन विक्रम स्थापित करनेवाला विद्यापीठ है जिसने लगभग ग्यारहसौ वर्षों तक अपनी श्रेष्ठ ज्ञानपरम्परा बनाये रखी और सम्पूर्ण विश्व में अपनी श्रेष्ठता स्थापित की । देशविदेश के विद्वज्जन इस विद्यापीठ में अध्ययन हेतु आते थे ।
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“चाणक्य' धारावाहिक जब देखते हैं तब एक बात की ओर ध्यान आकर्षित होता है। राज्यसभा में हो या विद्रतसभा में, तक्षशिला विद्यापीठ का नामोट्लेख होता है तब सबके हाथ श्रद्धा और आदर के भाव से जुड़ जाते हैं। यह श्रद्धा और आदर किस बात के लिये हैं ? वहाँ की श्रेष्ठ ज्ञान साधना और ज्ञानपरम्परा के लिये। काल के प्रवाह में तक्षशिला विद्यापीठ एक ऐसा एकमेवाद्धितीय विद्यापीठ है, एक ऐसा सार्वकालीन विक्रम स्थापित करनेवाला विद्यापीठ है जिसने लगभग ग्यारहसौ वर्षों तक अपनी श्रेष्ठ ज्ञानपरम्परा बनाये रखी और सम्पूर्ण विश्व में अपनी श्रेष्ठता स्थापित की। देशविदेश के विद्वज्जन इस विद्यापीठ में अध्ययन हेतु आते थे।
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अर्थात्‌ विद्यालय की प्रतिष्ठा का सबसे पहला मापदण्ड उसकी ज्ञान साधना है, उसका अध्ययन और अध्यापन है ।
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अर्थात्‌ विद्यालय की प्रतिष्ठा का सबसे पहला मापदण्ड उसकी ज्ञान साधना है, उसका अध्ययन और अध्यापन है।
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आज भी विद्यालय जाने जाते हैं उनकी पढाई से । वर्तमान समय के अनुसार ये मानक बोर्ड और युनिवर्सिटी की परीक्षाओं के परिणाम पढाई के मानक हैं । कितने अधिक संख्या में विद्यार्थी कितने अधिक अंकों से परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए इस बात को प्रसिद्धि दी जाती है क्योंकि उसीसे प्रतिष्ठा होती है, उसीसे मान्यता होती है, उसीसे पुरस्कार प्राप्त होते हैं । कितने विविध प्रकार के विषय पढाये जाते हैं, कितनी विद्याशाखायें हैं, इसकी भी दखल ली जाती है । कितना और कैसा अनुसन्धान होता है, देश- विदेश की शोधपत्रिकाओं में कितने शोधपत्र छपते हैं, कितने आन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रप्त होते हैं यह प्रतिष्ठा का विषय है ।
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आज भी विद्यालय जाने जाते हैं उनकी पढाई से। वर्तमान समय के अनुसार ये मानक बोर्ड और युनिवर्सिटी की परीक्षाओं के परिणाम पढाई के मानक हैं। कितने अधिक संख्या में विद्यार्थी कितने अधिक अंकों से परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए इस बात को प्रसिद्धि दी जाती है क्योंकि उसीसे प्रतिष्ठा होती है, उसीसे मान्यता होती है, उसीसे पुरस्कार प्राप्त होते हैं। कितने विविध प्रकार के विषय पढाये जाते हैं, कितनी विद्याशाखायें हैं, इसकी भी दखल ली जाती है। कितना और कैसा अनुसन्धान होता है, देश- विदेश की शोधपत्रिकाओं में कितने शोधपत्र छपते हैं, कितने आन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्रप्त होते हैं यह प्रतिष्ठा का विषय है।
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यह सारा शोधकार्य, विभिन्न विद्याशाखायें, परीक्षा के परिणाम, पुरस्कार आदि सब अध्यापकों के कारण से होता है । अतः विद्यालय की प्रतिष्ठा उसके शिक्षकों से होती है । तक्षशिला विद्यापीठ भी चाणक्य और जीवक जैसे शिक्षकों के कारण प्रतिष्ठित हुआ ।
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यह सारा शोधकार्य, विभिन्न विद्याशाखायें, परीक्षा के परिणाम, पुरस्कार आदि सब अध्यापकों के कारण से होता है। अतः विद्यालय की प्रतिष्ठा उसके शिक्षकों से होती है। तक्षशिला विद्यापीठ भी चाणक्य और जीवक जैसे शिक्षकों के कारण प्रतिष्ठित हुआ।
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शिक्षकों की प्रतिष्ठा उनके ज्ञान, चरित्र और कर्तृत्व के कारण होती है, होनी चाहिये ।
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शिक्षकों की प्रतिष्ठा उनके ज्ञान, चरित्र और कर्तृत्व के कारण होती है, होनी चाहिये।
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अध्यापन कौशल जिसके कारण समर्थ विद्यार्थी तैयार होते हैं, जिस समर्थ समाज का निर्माण करते हैं और ज्ञान का एक पीढी से हस्तान्तरण होकर ज्ञान परम्परा बनती है और ज्ञानधारा नित्य प्रवाहित रहती है; स्वाध्याय, जिसके कारण अध्यापक अधिकाधिक ज्ञानवान बनते हैं और अनुसन्धान, जिसके कारण ज्ञान परिष्कृत होता रहता है, समृद्ध बनता है और युगानुकूल बनता है शिक्षक की प्रतिष्ठा के विषय हैं । अर्थात्‌ जो अध्यापन कला में कुशल नहीं वह विद्वान भले ही हो, शिक्षक नहीं; जो स्वाध्याय न करता हो वह न अच्छा विद्वान है न अच्छा शिक्षक, और जो अनुसन्धान नहीं करता वह श्रेष्ठ शिक्षक नहीं बन सकता ।
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अध्यापन कौशल जिसके कारण समर्थ विद्यार्थी तैयार होते हैं, जिस समर्थ समाज का निर्माण करते हैं और ज्ञान का एक पीढी से हस्तान्तरण होकर ज्ञान परम्परा बनती है और ज्ञानधारा नित्य प्रवाहित रहती है; स्वाध्याय, जिसके कारण अध्यापक अधिकाधिक ज्ञानवान बनते हैं और अनुसन्धान, जिसके कारण ज्ञान परिष्कृत होता रहता है, समृद्ध बनता है और युगानुकूल बनता है शिक्षक की प्रतिष्ठा के विषय हैं। अर्थात्‌ जो अध्यापन कला में कुशल नहीं वह विद्वान भले ही हो, शिक्षक नहीं; जो स्वाध्याय न करता हो वह न अच्छा विद्वान है न अच्छा शिक्षक, और जो अनुसन्धान नहीं करता वह श्रेष्ठ शिक्षक नहीं बन सकता।
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==== श्रेष्ठ शिक्षक विद्यालय की प्रतिष्ठा है । ====
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==== श्रेष्ठ शिक्षक विद्यालय की प्रतिष्ठा है। ====
विद्यालय की प्रतिष्ठा इसमें है कि श्रेष्ठ शिक्षकों का आदर होता है, जहाँ शिक्षकों का सम्मान नहीं, स्वतन्त्रता नहीं वह विद्यालय अच्छा नहीं माना जाता । जो शिक्षक नौकरी करने के लिये तैयार हो जाते हैं वे शिक्षक शिक्षक नहीं और जो शिक्षकों को नौकर बनने के लिये मजबूर करती है वह व्यवस्था श्रेष्ठ व्यवस्था नहीं । ऐसी व्यवस्था में शिक्षकों का सम्मान भी नौकरों के सम्मान की तरह किया जाता है। ऐसे विद्यालय की धार्मिक मानकों के अनुसार कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाश्चात्य मानकों के अनुसार भले ही हो ।
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विद्यालय की प्रतिष्ठा इसमें है कि श्रेष्ठ शिक्षकों का आदर होता है, जहाँ शिक्षकों का सम्मान नहीं, स्वतन्त्रता नहीं वह विद्यालय अच्छा नहीं माना जाता । जो शिक्षक नौकरी करने के लिये तैयार हो जाते हैं वे शिक्षक शिक्षक नहीं और जो शिक्षकों को नौकर बनने के लिये मजबूर करती है वह व्यवस्था श्रेष्ठ व्यवस्था नहीं । ऐसी व्यवस्था में शिक्षकों का सम्मान भी नौकरों के सम्मान की तरह किया जाता है। ऐसे विद्यालय की धार्मिक मानकों के अनुसार कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाश्चात्य मानकों के अनुसार भले ही हो।
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शिक्षकों और विद्यार्थियों का चरित्र विद्यालय की प्रतिष्ठा का विषय है । शिक्षकों में शराब, जुआ, भ्रष्टाचार जैसे व्यसन न हों, अध्यापन कार्य में अप्रामाणिकता न हो और आचारविचार श्रेष्ठ हों यह शिक्षकों का चरित्र है और शिक्षकों के प्रति आदर और श्रद्धा हो, अध्ययन में तत्परता और परिश्रमशीलता हों तथा सद्गुण और सदाचार हों यह विद्यार्थियों का चरित्र है । इस विद्यालय में परीक्षा में कभी नकल नहीं होती, परीक्षा विषयक कोई भ्रष्टाचार नहीं होता, जिस विद्यालय के विद्यार्थियों को ट्यूशन या कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं होती, जिस विद्यालय में विद्यार्थियों के प्रवेश या शिक्षकों की नियुक्ति हेतु डोनेशन नहीं लिया जाता, जिस विद्यालय में अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवाकर कम वेतन नहीं दिया जाता आदि बातें जब सुनिश्चित होती हैं तब वह विद्यालय समाज में प्रतिष्ठित होता है ।
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शिक्षकों और विद्यार्थियों का चरित्र विद्यालय की प्रतिष्ठा का विषय है। शिक्षकों में शराब, जुआ, भ्रष्टाचार जैसे व्यसन न हों, अध्यापन कार्य में अप्रामाणिकता न हो और आचारविचार श्रेष्ठ हों यह शिक्षकों का चरित्र है और शिक्षकों के प्रति आदर और श्रद्धा हो, अध्ययन में तत्परता और परिश्रमशीलता हों तथा सद्गुण और सदाचार हों यह विद्यार्थियों का चरित्र है । इस विद्यालय में परीक्षा में कभी नकल नहीं होती, परीक्षा विषयक कोई भ्रष्टाचार नहीं होता, जिस विद्यालय के विद्यार्थियों को ट्यूशन या कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं होती, जिस विद्यालय में विद्यार्थियों के प्रवेश या शिक्षकों की नियुक्ति हेतु डोनेशन नहीं लिया जाता, जिस विद्यालय में अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवाकर कम वेतन नहीं दिया जाता आदि बातें जब सुनिश्चित होती हैं तब वह विद्यालय समाज में प्रतिष्ठित होता है।
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इतिहास में तक्षशिला एक और बात के लिये प्रतिष्ठित है। समाज और शास्त्रों की रक्षा के लिये समाज को, विद्वानों को, शिक्षकों को और गणराज्यों को संगठित कर अत्याचारी सम्राट को पटुश्रष्ट कर उसके स्थान पर योग्य सम्राट को अभिषिक्त करने का दायित्व आचार्य चाणक्य के नेतृत्व में विद्यापीठ ने निभाया । यह ज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं, ज्ञान का दायित्व और कर्तृत्व है । अपने इस दायित्व को निभानेवाला करनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ।
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इतिहास में तक्षशिला एक और बात के लिये प्रतिष्ठित है। समाज और शास्त्रों की रक्षा के लिये समाज को, विद्वानों को, शिक्षकों को और गणराज्यों को संगठित कर अत्याचारी सम्राट को पटुश्रष्ट कर उसके स्थान पर योग्य सम्राट को अभिषिक्त करने का दायित्व आचार्य चाणक्य के नेतृत्व में विद्यापीठ ने निभाया। यह ज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं, ज्ञान का दायित्व और कर्तृत्व है। अपने इस दायित्व को निभानेवाला करनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
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ज्ञान और चरित्र के साथ साथ समाज को मार्गदर्शन करना, समाज का संगठन करना और समाज की सेवा करना विद्यालय का काम है। प्राकृतिक आपदाओं के समय सेवाकार्य करना, सामाजिक-सांस्कृतिक संकटों में समाज को सही दिशा देना और समाज की सुस्थिति हेतु राज्य को सहायता करना विद्यालय की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है ।
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ज्ञान और चरित्र के साथ साथ समाज को मार्गदर्शन करना, समाज का संगठन करना और समाज की सेवा करना विद्यालय का काम है। प्राकृतिक आपदाओं के समय सेवाकार्य करना, सामाजिक-सांस्कृतिक संकटों में समाज को सही दिशा देना और समाज की सुस्थिति हेतु राज्य को सहायता करना विद्यालय की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है।
    
==== प्रतिष्ठा के आज के मापदण्ड ====
 
==== प्रतिष्ठा के आज के मापदण्ड ====
परन्तु आजकल स्थिति कुछ विपरीत भी बनी है । आज विद्यालय उनके भवन, सुविधाओं और विद्यार्थी संख्या से जाने जाते हैं । विद्यालय परिसर जितना विशाल, विद्यालय का भवन जितना भव्य, भवनों की संख्या जितनी अधिक, वाहन जितने अधिक, विद्यालय की सुविधायें जितनी अद्यतन और इन सबके अनुपात में विद्यालय का शुल्क जितना ऊँचा उतनी विद्यालय की प्रतिष्ठा भी अधिक |
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परन्तु आजकल स्थिति कुछ विपरीत भी बनी है। आज विद्यालय उनके भवन, सुविधाओं और विद्यार्थी संख्या से जाने जाते हैं । विद्यालय परिसर जितना विशाल, विद्यालय का भवन जितना भव्य, भवनों की संख्या जितनी अधिक, वाहन जितने अधिक, विद्यालय की सुविधायें जितनी अद्यतन और इन सबके अनुपात में विद्यालय का शुल्क जितना ऊँचा उतनी विद्यालय की प्रतिष्ठा भी अधिक
    
अंग्रेजी माध्यम प्रतिष्ठा का और एक विषय है । जितनी कम आयु में अंग्रेजी पढाया जाता है उतनी अधिक प्रतिष्ठा होती है । अंग्रेजी के साथ साथ यदि अन्य विदेशी भाषायें भी सिखाई जाती हैं तो और भी अच्छा है। विद्यालय में यदि विदेशी छात्र पढ़ते हैं तो वह भी गौरव का विषय बनता है । विदेशी मेहमान आते हैं तो प्रतिष्ठा बढती है ।
 
अंग्रेजी माध्यम प्रतिष्ठा का और एक विषय है । जितनी कम आयु में अंग्रेजी पढाया जाता है उतनी अधिक प्रतिष्ठा होती है । अंग्रेजी के साथ साथ यदि अन्य विदेशी भाषायें भी सिखाई जाती हैं तो और भी अच्छा है। विद्यालय में यदि विदेशी छात्र पढ़ते हैं तो वह भी गौरव का विषय बनता है । विदेशी मेहमान आते हैं तो प्रतिष्ठा बढती है ।
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