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== असत्य से सत्य की यात्रा ==
असत्य से सत्य की यात्रा
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कई लोग प्रश्न करते हैं कि परमात्मा ज्ञानस्वरूप है और विश्व में सब कुछ परमात्मा ही है तो फिर अज्ञान कहाँ से आया ? विश्व में जो कुछ भी है वह भी सब ज्ञानस्वरूप ही होना चाहिये । हम देखते हैं कि अज्ञानजनित समस्याओं से ही सारा विश्व ग्रस्त हो गया है । हम यदि कहें कि विश्व कि सारी समस्याओं का मूल ही अज्ञान है तो अनुचित नहीं है। इसे ठीक से समझना चाहिये । जब परमात्मा ने विश्वरूप बनने का प्रारंभ किया तो सर्व प्रथम द्वंद्व निर्माण हुआ । यह द्वंद्व क्या है ? यह युग्म है । एक दूसरे से जुड़ा हुआ है । एकदूसरे से विपरीत स्वभाववाला है । एकदूसरे को पूरक है । द्रन्द्र के दोनों पक्ष एकदूसरे के बिना अधूरे
 
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कई लोग प्रश्न करते हैं कि परमात्मा ज्ञानस्वरूप है
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और विश्व में सब कुछ परमात्मा ही है तो फिर अज्ञान कहाँ
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से आया ? विश्व में जो कुछ भी है वह भी सब ज्ञानस्वरूप
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ही होना चाहिये । हम देखते हैं कि अज्ञानजनित समस्याओं
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से ही सारा विश्व ग्रस्त हो गया है । हम यदि कहें कि विश्व
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कि सारी समस्याओं का मूल ही अज्ञान है तो अनुचित नहीं
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है। इसे ठीक से समझना चाहिये । जब परमात्मा ने
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विश्वरूप बनने का प्रारंभ किया तो सर्व प्रथम ट्रन्द्र निर्माण
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हुआ । यह ट्रन्द्र क्या है ? यह युग्म है । एक दूसरे से जुड़ा
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हुआ है । एकदूसरे से विपरीत स्वभाववाला है । एकदूसरे
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को पूरक है । द्रन्द्र के दोनों पक्ष एकदूसरे के बिना अधूरे
      
हैं । दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं । दोनों एक पूर्ण के ही दो
 
हैं । दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं । दोनों एक पूर्ण के ही दो
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सत्य की ओर जाना है । आभास से वास्तव की ओर जाना
 
सत्य की ओर जाना है । आभास से वास्तव की ओर जाना
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है । ट्रन्द्र से निट्ठंद्ठ की ओर जाना है । यही जीवन की यात्रा
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है । द्वंद्व से निट्ठंद्ठ की ओर जाना है । यही जीवन की यात्रा
    
है।
 
है।
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भी समाज परायण बनाता है । आज समाज और व्यक्ति के
 
भी समाज परायण बनाता है । आज समाज और व्यक्ति के
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बीच एक प्रकार का ट्रन्द्र निर्माण हुआ है । वास्तव में
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बीच एक प्रकार का द्वंद्व निर्माण हुआ है । वास्तव में
    
व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग होता है परन्तु आज व्यक्ति
 
व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग होता है परन्तु आज व्यक्ति

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