Line 1: |
Line 1: |
| {{One source|date=July 2020}} | | {{One source|date=July 2020}} |
| | | |
− | | + | == असत्य से सत्य की यात्रा == |
− | असत्य से सत्य की यात्रा | + | कई लोग प्रश्न करते हैं कि परमात्मा ज्ञानस्वरूप है और विश्व में सब कुछ परमात्मा ही है तो फिर अज्ञान कहाँ से आया ? विश्व में जो कुछ भी है वह भी सब ज्ञानस्वरूप ही होना चाहिये । हम देखते हैं कि अज्ञानजनित समस्याओं से ही सारा विश्व ग्रस्त हो गया है । हम यदि कहें कि विश्व कि सारी समस्याओं का मूल ही अज्ञान है तो अनुचित नहीं है। इसे ठीक से समझना चाहिये । जब परमात्मा ने विश्वरूप बनने का प्रारंभ किया तो सर्व प्रथम द्वंद्व निर्माण हुआ । यह द्वंद्व क्या है ? यह युग्म है । एक दूसरे से जुड़ा हुआ है । एकदूसरे से विपरीत स्वभाववाला है । एकदूसरे को पूरक है । द्रन्द्र के दोनों पक्ष एकदूसरे के बिना अधूरे |
− | | |
− | कई लोग प्रश्न करते हैं कि परमात्मा ज्ञानस्वरूप है | |
− | | |
− | और विश्व में सब कुछ परमात्मा ही है तो फिर अज्ञान कहाँ | |
− | | |
− | से आया ? विश्व में जो कुछ भी है वह भी सब ज्ञानस्वरूप | |
− | | |
− | ही होना चाहिये । हम देखते हैं कि अज्ञानजनित समस्याओं | |
− | | |
− | से ही सारा विश्व ग्रस्त हो गया है । हम यदि कहें कि विश्व | |
− | | |
− | कि सारी समस्याओं का मूल ही अज्ञान है तो अनुचित नहीं | |
− | | |
− | है। इसे ठीक से समझना चाहिये । जब परमात्मा ने | |
− | | |
− | विश्वरूप बनने का प्रारंभ किया तो सर्व प्रथम ट्रन्द्र निर्माण | |
− | | |
− | हुआ । यह ट्रन्द्र क्या है ? यह युग्म है । एक दूसरे से जुड़ा | |
− | | |
− | हुआ है । एकदूसरे से विपरीत स्वभाववाला है । एकदूसरे | |
− | | |
− | को पूरक है । द्रन्द्र के दोनों पक्ष एकदूसरे के बिना अधूरे | |
| | | |
| हैं । दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं । दोनों एक पूर्ण के ही दो | | हैं । दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं । दोनों एक पूर्ण के ही दो |
Line 52: |
Line 30: |
| सत्य की ओर जाना है । आभास से वास्तव की ओर जाना | | सत्य की ओर जाना है । आभास से वास्तव की ओर जाना |
| | | |
− | है । ट्रन्द्र से निट्ठंद्ठ की ओर जाना है । यही जीवन की यात्रा | + | है । द्वंद्व से निट्ठंद्ठ की ओर जाना है । यही जीवन की यात्रा |
| | | |
| है। | | है। |
Line 276: |
Line 254: |
| भी समाज परायण बनाता है । आज समाज और व्यक्ति के | | भी समाज परायण बनाता है । आज समाज और व्यक्ति के |
| | | |
− | बीच एक प्रकार का ट्रन्द्र निर्माण हुआ है । वास्तव में | + | बीच एक प्रकार का द्वंद्व निर्माण हुआ है । वास्तव में |
| | | |
| व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग होता है परन्तु आज व्यक्ति | | व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग होता है परन्तु आज व्यक्ति |