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| ४. सुविधा बनाये रखने में व्यय तो होगा ही परन्तु अच्छी सुविधा के लिये उदा. फिल्टर पेय जल, पंखे आदि के लिये अभिभावक खुशी से धन देने तैयार है क्योंकी उनके ही बच्चे इस सुविधा का उपभोग लेनेवाले है। प्र. ५, ६ व ७ प्रश्नो का उत्तर किसि से प्राप्त नहीं हुआ । | | ४. सुविधा बनाये रखने में व्यय तो होगा ही परन्तु अच्छी सुविधा के लिये उदा. फिल्टर पेय जल, पंखे आदि के लिये अभिभावक खुशी से धन देने तैयार है क्योंकी उनके ही बच्चे इस सुविधा का उपभोग लेनेवाले है। प्र. ५, ६ व ७ प्रश्नो का उत्तर किसि से प्राप्त नहीं हुआ । |
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− | ==== '''अभिमत''' ==== | + | ==== अभिमत ==== |
| जबाब सुनकर ऐसा लगा वास्तव में ज्ञानार्जन यह साधना है और साधना कभी भी अच्छे सुख सुविधाओं से प्राप्त नहीं होती । यह बात आज समाज भूल गया है ऐसा लगा । शिक्षक केवल पढाई का तथा व्यवस्था के संदर्भ में निर्देश देने का कार्य करेंगे ऐसा उनका मन बन गया है । अतः व्यवस्था निर्माण करने के प्रत्यक्ष सहयोग का विचार भी उनके मन में आता नहीं । आजकल शहरो में भीड के स्थान पर विद्यालय होते हैं अतः ध्वनि, प्रकाश, हवा, तापमान आदि के विषय में शास्त्रीय विचार जानते हुए भी सब शहरवासियों को वह असंभव लगता है । और गाँव में विद्यालय की जगह निसर्ग की गोद में तो होती है परंतु सारी व्यवस्था शास्त्रीय होते हुए भी उन्हें शास्त्र तो समझमे नहीं आता उल्टा शहर जैसे मंजिल के भवन आदि बनाने के लिये वे भी प्रयत्नशील रहते है । बिना कॉम्प्यूटर के अपना विद्यालय पिछडा है ऐसा हीनता का भाव उनके मन में होता है । जहा पवित्रता नहीं होती उस स्थान पर प्रसन्नता और शान्ति भी नहीं रहती यह तो सब जानते हैं । | | जबाब सुनकर ऐसा लगा वास्तव में ज्ञानार्जन यह साधना है और साधना कभी भी अच्छे सुख सुविधाओं से प्राप्त नहीं होती । यह बात आज समाज भूल गया है ऐसा लगा । शिक्षक केवल पढाई का तथा व्यवस्था के संदर्भ में निर्देश देने का कार्य करेंगे ऐसा उनका मन बन गया है । अतः व्यवस्था निर्माण करने के प्रत्यक्ष सहयोग का विचार भी उनके मन में आता नहीं । आजकल शहरो में भीड के स्थान पर विद्यालय होते हैं अतः ध्वनि, प्रकाश, हवा, तापमान आदि के विषय में शास्त्रीय विचार जानते हुए भी सब शहरवासियों को वह असंभव लगता है । और गाँव में विद्यालय की जगह निसर्ग की गोद में तो होती है परंतु सारी व्यवस्था शास्त्रीय होते हुए भी उन्हें शास्त्र तो समझमे नहीं आता उल्टा शहर जैसे मंजिल के भवन आदि बनाने के लिये वे भी प्रयत्नशील रहते है । बिना कॉम्प्यूटर के अपना विद्यालय पिछडा है ऐसा हीनता का भाव उनके मन में होता है । जहा पवित्रता नहीं होती उस स्थान पर प्रसन्नता और शान्ति भी नहीं रहती यह तो सब जानते हैं । |
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| === विद्यालय में प्रतियोगितायें === | | === विद्यालय में प्रतियोगितायें === |
− | '''१. प्रतियोगिताओं का शैक्षिक मूल्य क्या है ?'''
| + | १. प्रतियोगिताओं का शैक्षिक मूल्य क्या है ? |
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− | '''२. प्रतियोगिताओं का व्यावहारिक मूल्य क्या है ?'''
| + | २. प्रतियोगिताओं का व्यावहारिक मूल्य क्या है ? |
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− | '''३. प्रतियोगिताओं के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें ?'''
| + | ३. प्रतियोगिताओं के प्रति सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें ? |
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− | '''४. प्रतियोगिता की भावना कम करने के क्या उपाय करें ?'''
| + | ४. प्रतियोगिता की भावना कम करने के क्या उपाय करें ? |
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− | '''५. प्रतियोगितायें लाभ के स्थान पर हानि कैसे करती?'''
| + | ५. प्रतियोगितायें लाभ के स्थान पर हानि कैसे करती? |
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− | '''६. प्रतियोगितायें लाभकारी बनें इसलिये क्या क्या करना चाहिये ?'''
| + | ६. प्रतियोगितायें लाभकारी बनें इसलिये क्या क्या करना चाहिये ? |
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| ==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ==== | | ==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ==== |
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| [[Category:Education Series]] | | [[Category:Education Series]] |
| [[Category:धार्मिक शिक्षा : धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]] | | [[Category:धार्मिक शिक्षा : धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]] |
| + | [[Category:ग्रंथमाला 3 पर्व 3: विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ]] |