− | हमने जाना है कि समाज के सुख, शांति, स्वतंत्रता, सुसंस्कृतता के लिए समाज का धर्मनिष्ठ होना आवश्यक होता है। यहाँ मोटे तौर पर धर्म का मतलब कर्तव्य है। समाज धारणा के लिए कर्तव्यों पर आधारित जीवन अनिवार्य होता है। समाज धारणा के लिए धर्म-युक्त व्यवहार में आने वाली जटिलताओं को और फिर भी उसका अनुपालन कैसे किया जाता है, इसकी प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४३, लेखक - दिलीप केलकर</ref> | + | हमने जाना है कि समाज के सुख, शांति, स्वतंत्रता, सुसंस्कृतता के लिए समाज का धर्मनिष्ठ होना आवश्यक होता है। यहाँ मोटे तौर पर धर्म का मतलब कर्तव्य है। समाज धारणा के लिए कर्तव्यों पर आधारित जीवन अनिवार्य होता है। समाज धारणा के लिए धर्म-युक्त व्यवहार में आने वाली जटिलताओं को और फिर भी उसका अनुपालन कैसे किया जाता है, इसकी प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४३, लेखक - दिलीप केलकर</ref> |