बाल अवस्था में कर्मेन्द्रियाँ सक्रिय होने लगती हैं और काम चाहती हैं । यह ऐसा ही है जिस प्रकार भूख लगने पर पेट भोजन मांगता है । भूख इसलिए लगती है क्योंकि भोजन से शरीर की पुष्टि होती है । भूख लगने पर भोजन नहीं किया तो शरीर कृश होने लगता है, बलहीन होता है और अस्वस्थ भी होने लगता है । अच्छा भोजन नहीं होने पर शरीर बीमार भी होता है । उसी प्रकार बालअवस्था में कर्मन्द्रियाँ काम मांगती हैं क्योंकि यह उनकी आवश्यकता है । उस समय काम मिला और वह अच्छे से करना सिखाया तो वे सुख का अनुभव करती हैं, उन्हें अपने होने में सार्थकता का अनुभव होता है और वे स्वस्थ और कार्यक्षम होती हैं । अत: बालअवस्था की शिक्षा क्रियाआधारित होनी चाहिए । क्रिया सिखाना पहली बात है और क्रिया के माध्यम से अन्य बातें सीखना दूसरी बात है । | बाल अवस्था में कर्मेन्द्रियाँ सक्रिय होने लगती हैं और काम चाहती हैं । यह ऐसा ही है जिस प्रकार भूख लगने पर पेट भोजन मांगता है । भूख इसलिए लगती है क्योंकि भोजन से शरीर की पुष्टि होती है । भूख लगने पर भोजन नहीं किया तो शरीर कृश होने लगता है, बलहीन होता है और अस्वस्थ भी होने लगता है । अच्छा भोजन नहीं होने पर शरीर बीमार भी होता है । उसी प्रकार बालअवस्था में कर्मन्द्रियाँ काम मांगती हैं क्योंकि यह उनकी आवश्यकता है । उस समय काम मिला और वह अच्छे से करना सिखाया तो वे सुख का अनुभव करती हैं, उन्हें अपने होने में सार्थकता का अनुभव होता है और वे स्वस्थ और कार्यक्षम होती हैं । अत: बालअवस्था की शिक्षा क्रियाआधारित होनी चाहिए । क्रिया सिखाना पहली बात है और क्रिया के माध्यम से अन्य बातें सीखना दूसरी बात है । |